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जयंती खुद आगे बढ़ीं और अन्य महिलाओं को भी हुनरमंद बनाया

Published - Fri 21, May 2021

ओडिशा की जयंती प्रधान ने पराली से मशरूम उगाकर बेकार लगने वाली पराली को भी कमाई का साधन बना दिया।

नई दिल्ली। ओडिशा में बारगढ़ जिले के गोड़भगा गांव में एक महिला किसान हैं जयंती प्रधान। जंयती मशरूम की खेती करती हैं। इस खेती में उन्होंने पराली जैसी बेकार चीज का इस्तेमाल किया और लोगों को भी सिखाया। इसी के दम पर पर लाखों रुपये तक कमा लेती हैं। जयंती ने धान और गेहूं की खेती से अलग कुछ और करने की ठानी। किसान परिवार में जन्मीं जयंती के पिता की इच्छा थी कि बेटी खूब पढ़े और आगे बढ़े। जयंती ने बॉटनी से ग्रेजुएशन किया और ‘ऑनट्रप्रन्योर मैनेजमेंट’ में एमबीए की डिग्री की। एक कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़ने के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। जंयती ने कम लागत में ज्यादा मुनाफे की खेती की ओर ध्यान दिया और उनकी तलाश मशरूम की खेती पर जाकर खत्म हुई। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से मशरूम की खेती और उनके बीज तैयार करने की ट्रेनिंग ली। इस तरह, उन्होंने साल 2003 में मशरूम की खेती शुरू कर दी।
पराली का किया इस्तेमाल
जयंती के क्षेत्र में धान प्रमुखता से उगाया जाता है, तो खेत से बची पराली को किसान जला देते थे। जयंती ने इस पराली का इस्तेमाल मशरूम उगाने के लिए किया। धान की पुआल के बेड बनाकर जो मशरूम उगाई जाती है, उसे ‘पैरा मशरूम’ (पैडी स्ट्रॉ या चायनीज़ मशरूम) कहते हैं। जयंती ने ‘पैडी स्ट्रॉ मशरूम’ उगाने की शुरुआत की। धान के किसानों के लिए जो पुआल बेकार कचरे के सामान थी, वह जयंती के लिए मशरूम उगाने का मुफ्त साधन बन गई।
सात महीने तक मुफ्त में बांटी मशरूम
मार्केटिंग की जानकारी न होने के कारण शुरुआत के सात महीने तक लोगों को मुफ्त में मशरूम बांटी। इसके पीछे एक उद्देश्य ग्राहक बनाना भी था। लोगों को जानकारी हुई, तो उनकी मार्केटिंग भी होती रही। मार्केट में उनकी मशरूम की डिमांड बढ़ी तो कमाई भी होने लगी। मशरूम की मार्केटिंग करके-करते, वह बहुत से किसानों और महिलाओं से भी जुड़ गईं। जयंती ने उन सभी को मशरूम की खेती के बारे में बताया और ट्रेनिंग दी। उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र का साथ मिला वो गांव-गांव जाकर मशरूम की ट्रेनिंग देने लगीं। इसी दौरान उन्होंने करीब सौ महिला समूह बनाए। प्रत्येक में कम से कम आठ महिलाएं थीं।
खाद बनाना भी सीखा
जिस पुआल से वो मशरूम की फसल लेती थीं, तीन चार फसल के बाद पुआल काली पड़ जाती थी। वो उसे फेंकने के बजाय उसका इस्तेमाल वर्मी कमपोस्ट यूनिट में करती थीं। उन्होंने कहा, “किसानों और महिलाओं को मशरूम की ट्रेनिंग देने के साथ-साथ, हमने उन्हें केंचुआ खाद तथा मशरूम के खाद्य उत्पाद बनाने और पशुपालन की भी ट्रेनिंग दी है। उनका खुद का एक ट्रेनिंग सेंटर है, जिसमें एक बार में 50 लोग रुककर, ट्रेनिंग ले सकते हैं।
सालाना पांच लाख कमा लेती हैं जयंती
जंयती ने 2013 में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने के बाद पैरा मशरूम की खेती शुरू की थी। पहली बार घर के बाहर खाली प्लॉट में काम शुरू किया और धीरे-धीरे अपने प्लांट लगा लिए। वह साल में मशरूम से पांच लाख तक कमा लेती हैं। मशरूम की खेती में सफलता हासिल करने के बाद, जयंती ने ‘एकीकृत मॉडल’ पर काम करना शुरू किया। 2008 में उनकी शादी, कालाहांडी के बीरेंद्र प्रधान से हुई, जो एक सरकारी नौकरी करते थे। लेकिन, 2013 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़कर कृषि की राह अपना ली। जयंती और बीरेंद्र बारगढ़ और कालाहांडी, दोनों जगह काम कर रहे हैं। बारगढ़ में उनका मशरूम फार्म, ट्रेनिंग सेंटर, वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट और पौधों की नर्सरी का सेटअप है। वहीं, कालाहांडी में पांच एकड़ जमीन पर तालाब खुदवाकर केतला और रोहू जैसी मछलियों को पालते हैं। इसके अलावा, हम मुर्गी पालन, बत्तख पालन, और बकरी पालन भी करते हैं।”
मशरूम के पापड़, बड़ी और अचार भी
मशरूम की खेती के अलावा जयंती  मशरूम की प्रोसेसिंग करके पापड़, अचार, बड़ी और पाउडर जैसे खाद्य उत्पाद भी बनाती हैं। ये खाद्य उत्पाद सिर्फ स्थानीय लोगों को ही बेचे जाते हैं। वह अपने खाद्य उत्पादों की कोई ऑनलाइन मार्केटिंग या बिक्री नहीं करती हैं। जयंती चालीस लोगों को रोजगार भी दे रही हैं। उनका सालाना टर्नओवर बीस लाख है। उन्हें  कृषि विज्ञान केंद्र से ‘बेस्ट मशरूम फार्मर’ का सम्मान मिला हुआ है। इसके अलावा, उन्हें थाईलैंड में अंतरराष्ट्रीय संगठन, ‘फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ‘ द्वारा भी सम्मानित किया गया है। उन्हें नीति आयोग द्वारा ‘विमन ट्रांसफॉर्मिंग अवॉर्ड 2019‘ से भी नवाजा गया है।