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वह राज्य जहां मनाया जाता है धरती के पीरियड्स का उत्सव

Published - Fri 14, Jun 2019

पर्व का पहला दिन होता है पहिली रज, दूसरा वाला दिन मिथुन संक्रांति और तीसरा दिन जिस दिन पीरियड्स खत्म माने जाते हैं उसको कहते हैं बासी-रज।

रज-पर्व : जब 3 दिनों के लिए धरती को आते हैं पीरियड्स
नई दिल्ली। ओडिशा का सबसे बड़ा त्योहार रज-पर्व बृहस्पतिवार से शुरू हो गया। तीन दिन तक चलने वाले इस उत्सव को नारी शक्ति से जोड़ा जाता है। ओडिशा के लोग मानते हैं कि इस दौरान पृथ्वी को पीरियड्स आते हैं। इसलिए यह त्योहार औरत होने की फीलिंग को सेलिब्रेट करता है। पर्व का पहला दिन होता है पहिली रज, दूसरा वाला दिन मिथुन संक्रांति और तीसरा दिन जिस दिन पीरियड्स खत्म माने जाते हैं उसको कहते हैं बासी-रज। घरों के आस-पास और गांव भर में जगह-जगह झूले लगते हैं। मेला लगता है। इन तीन दिनों में लड़कियां अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहनती हैं, सजती हैं, मेहंदी लगाती हैं, झूला झूलती हैं, घर के काम से उनको इन 3 दिनों की छुट्टी मिल जाती है। अपने दोस्तों के साथ दिन भर बैठ कर बातें करती हैं, हंसती हैं, खूब मस्ती करती हैं। इस त्योहार को किसानों और फसलों से भी जुड़ा माना जाता है। पीरियड्स होने का मतलब है कि लड़की एक नई जिंदगी को पैदा करती है, वैसे ही इस त्योहार का मतलब है कि हमारी पृथ्वी उपजाऊ है, इसमें फसलें उग सकती हैं। इस त्योहार से पहले सारी फसलें काटी जा चुकी होती हैं। इस दौरान किसान आराम करते हैं, घर की औरतें भी आराम करती हैं और साथ ही जमीन भी आराम करती है।
निश्चित तौर पर किसी भी ऐसे व्यक्ति के लिए यह मानना बहुत कठिन होगा जो कथित तौर पर खुद को आधुनिक विचारधारा वाला मानता है। लेकिन स्थानीय लोगों का इस बात पर प्रबल विश्वास है कि तीन दिन भूदेवी को भी एक आम स्त्री की तरह रजस्वला से गुजरना पड़ता है।
जब पीरियड्स की वजह से लड़कियां डिप्रेशन में जा रही हों, पीरियड्स के बारे में बात करना ‘बहुत अजीब’ लगता हो, ऐसे में हमारे ही देश में रज-पर्व जैसे त्योहार मनाए जाते हों, तो अच्छा लगता है।

पौराणिक मान्यता
ओडिशा के लोग इस पौराणिक मान्यता पर बहुत विश्वास रखते हैं कि भूदेवी, भगवान विष्णु की पत्नी हैं और आषाढ़ मास के तीन दिन वह रजस्वला होती हैं। इन तीन दिनों के लिए राज्य में कृषि संबंधी सभी कार्यों को रोककर इस समय को “रज” या “रजो” त्योहार के तौर पर बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। विशेषकर ओडिशा के तटीय क्षेत्र, पुरी, कटक, बालासोर, ब्रह्मपोर आदि में रहने वाली महिलाओं के बीच में यह त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

घर के काम से स्वतंत्र
रजो पर्व की सबसे खास बात यह है कि स्थानीय लोग इन तीन दिनों के लिए घर की स्त्रियों या लड़कियों को घर के काम से स्वतंत्र कर देते हैं।

कुंवारी लड़कियां
कुंवारी लड़कियां पैरों में आलता लगाकर, नए-नए कपड़े और आभूषण पहनती हैं, खूब खेलती और झूले झूलती हैं। स्त्रियां इस बात को लेकर खुश रहती हैं कि इन तीन दिनों के लिए उन्हें घर की जिम्मेदारियों से स्वतंत्रता मिलती हैं।

सबसे दिलचस्प बात
सबसे दिलचस्प और हैरानी की बात यह है कि इन तीनों के लिए घर की सारी बागडोर पुरुषों के हाथ में होती है, वहीं रसोई में खाना भी बनाते हैं और घर की सफाई भी करते हैं।

मासिकधर्म की पीड़ा
रज के तीन दिनों के लिए धरती पर नंगे पैर चलने को निषेध माना गया है क्योंकि इस दिन भूदेवी मासिकधर्म की पीड़ा से गुजर रही होती है।

सोजा-बोजा
रज के आरंभ होने से पहले सोजा-बोजा यानि साज-बाज मनाया जाता है जिसमें घर की साज-सजावट की जाती है।

रज पर्व का पहला दिन
रज पर्व का पहला दिन “पहिली रजो” कहा जाता है, यह मासिक धर्म के पहले दिन के रूप में देखा जाता है। इस दिन कुंवारी लड-अकियां धरती पर नंगा पांव नहीं रखतीं।

दूसरा दिन
दूसरा दिन “रजो संक्रांति” कहा जाता है, और तीसरा दिन बासी रजो के नाम से बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

वासुमति गाधुआ
सोजा-बोजा से शुरू हुए इस पर्व का समापन वासुमति गाधुआ अर्थात भूदेवी स्नान के साथ होता है। इस दिन घर में मीठे पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें चावल के आटे से बना पोडापीड़ा और चाकुली पीठा अवश्य शामिल होता हैं।

नई पैदावार
भारत में धरती को हमेशा स्त्री का दर्जा दिया गया है। जिस तरह सामनय स्त्री के रजस्वला होने के बाद इस बात का अनुमान लगा लिया जाता है कि वह संतानोत्पत्ति करने में सक्षम है उसी तरह आषाढ़ मास के उन तीन दिनों के बाद, जब भूदेवी रजस्वला होती है, खेतों में बीज डाली जाती है ताकि नई पैदावार हो सके।

तीसरा दिन
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार रजस्वला होने के तीसरे दिन स्त्री बाल धोकर ही रसोई में प्रवेश कर सकती है या फिर किसी शुभ कार्य में भाग ले सकती है, उसी प्रकार रजो उत्सव के तीसरे दिन सभी स्त्रियां फिर से घर के काम की जिम्मेदारी संभाल लेती हैं।
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