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सरपंच प्रवीण ने बदली पंचायत की तस्वीर, गांव के बच्चे बोलते हैं फर्राटेदार संस्कृत और अंग्रेजी

Published - Mon 25, Jan 2021

उच्च शिक्षा के बाद अच्छी नौकरी मिलते ही युवा गांवों से मुंह मोड़ लेते हैं। यही वजह है कि देश के कई गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। युवाओं के एक बड़े तबके की इस सोच से अलग कुछ ऐसे युवा भी हैं, जो गांवों की तरक्की के लिए खुद आगे आ रहे हैं। ऐसी ही एक युवा सरपंच हैं हरियाणा की प्रवीण कौर। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने गांव में रहकर पंचायत की तस्वीर बदलने की ठानी। महज 21 साल की उम्र में सरपंच बनने वाली प्रवीण की मेहनत की बदौलत है आज उनकी पंचायत में शहरों की तरह सुविधाएं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस सरपंच बिटिया की तारीफ कर चुके हैं। आइए जानते हैं इस युवा सरपंच और उसके कामों के बारे में...

  •  गांव की हर गली को सीसीटीवी से किया लैस, सोलर लाइट से रात में जगमगाती है पूरी पंचायत

नई दिल्ली। हरियाणा के कैथल जिले में एक ग्राम पंचायत है ककराला-कुचिया। दो गांवों से मिलकर बनी इस पंचायत में तकरीबन 1200 लोग रहते हैं। साल 2016 तक इस पंचायत को काफी पिछड़ी माना जाता था। यहां बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। लेकिन अब इस पंचायत की तस्वीर बदल चुकी है। कहने को आज भले ही ककराला और कुचिया दोनों गांव हों, लेकिन कई मायनों में ये शहरों से भी आगे हैं। यहां गली-गली में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, सोलर लाइट्स हैं, वाटर कूलर है, लाइब्रेरी है। ग्राम पंचायत के बच्चे हिंदी, अंग्रेजी के साथ फर्राटेदार संस्कृत भी बोलते हैं। इन सबका श्रेय जाता है यहां की युवा सरपंच प्रवीण कौर की मेहनत और लगन को। प्रवीण शहर में पली-बढ़ीं हैं। उन्होंने साल 2016 में कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने के बजाए अपने गांव की तस्वीर बदलने का फैसला किया।

गांव वालों की परेशानी देख किया फैसला

प्रवीण कौर के मुताबिक, मैं शहर में पली-बढ़ी जरूर हूं, लेकिन गांव से मेरा लगाव शुरू से रहा है। बचपन में जब मैं गांव आती थी, तब यहां सड़कें नहीं थीं। अच्छे स्कूल नहीं थे, पीने के लिए पानी की दिक्कत थी। गांव की महिलाओं को दूर से पानी भरकर लाना पड़ता था। इन दिक्कतों को देखकर मैंने उसी समय तय कर लिया था कि पढ़-लिखकर कुछ बनूंगी, तो गांव के लिए जरूर काम करूंगी। वह बताती हैं कि साल 2016 में जब वह इंजीनियरिंग कर रही थीं, तो गांव के कुछ लोग उनके पापा से मिलने आए थे। उन लोगों को गांव के प्रति मेरे लगाव की जानकारी थी। उन्हीं लोगों ने मुझे सरपंच बनाने का प्रस्ताव रखा। दरअसल, तब सरकार ने यह नियम बना दिया था कि पढ़े-लिखे लोग ही सरपंच बनेंगे। मेरे गांव में कोई और पढ़ा-लिखा नहीं था। जब पापा ने मुझसे इस बारे में बात की तो शुरू में मैं तैयार नहीं हुई। मुझे लगता था कि मेरी उम्र काफी कम है, शायद मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं संभाल पाऊं, लेकिन पापा ने हौंसला बढ़ाया, तो मैं तैयार हो गई।

महज 21 साल की उम्र में बनीं सरपंच

साल 2016 में ग्राम पंचायत ककराला-कुचिया का चुनाव हुआ तो प्रवीण बिना किसी परेशानी के जीत गईं। इस समय उनकी उम्र महज 21 साल थी। प्रवीण को हरियाणा की सबसे कम उम्र की सरपंच बनने का गौरव भी हासिल है। प्रवीण बताती हैं कि, सरपंच बनने के बाद मैंने गांव में घूमना शुरू किया, लोगों से मिलना और उनकी दिक्कतों को समझना शुरू किया। कुछ दिन बाद मैंने मोटे तौर पर एक लिस्ट तैयार कर ली कि मुझे क्या-क्या करना है। सबसे पहले मैंने सड़कें ठीक कराईं, लोगों को पानी की दिक्कत न हो, इसलिए जगह- जगह वाटर कूलर लगवाया।

पंचायत में सीसीटीवी और सोलर लाइट्स लगवाई

प्रवीण बतातीं हैं कि जब मैं सरपंच बनी थी, तब गांव की महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। ज्यादातर लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं, उनके लिए सुरक्षा बड़ा मुद्दा था। उन्हें डर लगता था कि कहीं उनके साथ कोई गलत काम न कर दे। इसलिए मैंने महिलाओं की सुरक्षा के लिए गांव में सीसीटीवी कैमरे लगवाए। बिजली थी, लेकिन बहुत कम समय के लिए आती थी, तो मैंने सोलर लाइट की व्यवस्था की। अब महिलाएं और लड़कियां बिना किसी डर के कहीं भी जा सकती हैं, रात में भी और दिन में भी।

बच्चों को किताब की कमी न हो इसलिए खुलवाई लाइब्रेरी

प्रवीण कहती हैं कि पंचायत की लड़कियां जागरूक हो गईं हैं। हर लड़की पढ़ने जाती है। मेरे काम को देखकर वो लोग भी आगे बढ़ना चाहती हैं। गांव के बच्चों को किताब की कमी न हो, इसलिए ग्राम पंचायत में लाइब्रेरी खोली गई है। गांव के बच्चे अपना ज्यादातर समय वहीं गुजारते हैं। पहले गांव में 10वीं तक स्कूल था, अब अपग्रेड होकर 12वीं तक हो गया है।

हर बच्चा बोलता है संस्कृत

ग्राम पंचायत ककराला-कुचिया की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यहां के बच्चे संस्कृत बोलते हैं, छोटे-बड़े सभी। प्रवीण बताती हैं कि इसकी शुरुआत तब हुई जब महर्षि बाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति हमारे गांव आए। उन्होंने कहा कि हम आपके गांव को संस्कृत ग्राम बनाना चाहते हैं। मैंने कहा कि इससे अच्छी क्या बात होगी, फिर संस्कृत के शिक्षक रखे गए और पढ़ाई शुरू हो गई। प्रवीण के साथ 4 और महिलाएं उनके काम में सहयोग करती हैं। उन्होंने महिलाओं के लिए अलग से एक कमेटी भी बनाई है, जिसमें गांव की महिलाएं अपनी बात रखती हैं, अपनी परेशानियां शेयर करती हैं।

पीएम मोदी कर चुके हैं सम्मानित

ग्राम पंचायत ककराला-कुचिया की सरपंच प्रवीण कौर को पीएम मोदी साल 2017 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर सम्मानित कर चुके हैं। पीएम ने प्रवीण की तारीफ करते हुए अन्य युवाओं को भी गांवों के विकास के लिए आगे आने की अपील की थी।