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प्रभा के हौसले ने बंजर पहाड़ को बना दिया हरा-भरा

Published - Fri 12, Jun 2020

रुद्रप्रयाग की प्रभा देवी सेमवाल की उम्र 76 साल है, लेकिन इस उम्र में भी उनका हौसला पहाड़ जैसा है और इसी हौसले के कारण उन्होंने बंजर पहाड़ को हरा भरा कर दिखाया।

parbha devi semval

देहरादून: अक्सर कहा जाता है कि पहाड़ पर जिंदगी पहाड़ जैसी होती है और इससे घबराकर लोग पहाड़ को छोड़ रहे हैं। लेकिन  रुद्रप्रयाग की प्रभा देवी सेमवाल को देखकर ऐसा नहीं लगता। प्रभा देवी  रुद्रप्रयाग के पसालत गांव में रहती हैं और पहाड़ पर जंगलों को सहेजने में जुटी हुई हैं। उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि आज उन्होंने एक बंजर पहाड़ को अपने मेहनत से हरा-भरा बना दिया है। वो अपने लगाए हुए पेड़ों को अच्छी तरह पहचानती हैं और उनसे बच्चों की तरह प्यार करती हैं। प्रभा का कहना है कि जंगल है तो जीवन है।

उम्र को दी मात और लिखी नई इबारत
प्रभा देवी ने पूरा जीवन यही गुजार दिया। लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग, जंगलों की आग और अन्य कारणों से उनके सामने ही पहाड़ बंजर हो गए। पहाड़ों को बदहाल होता देखा प्रभा ने ठान लिया कि वो अपने पहाड़ों को फिर से हरा भरा बनाएंगी और लोगों को दिखा देंगी की मेहनत से सबकुछ किया जा सकता है। प्रभा को अपना जन्मदिन तो याद नहीं, लेकिन इतना जरूर याद है कि उन्होंने पहाड़ में कहां और कितने और कौन-कौन से पेड़ रोपे हैं। पिछले पचास साल से पेड़ों की सेवा कर रहीं प्रभा अब 76 साल की हो चुकी हैं, लेकिन बढ़ती उम्र ने उनके कदमों को नहीं रोका है और आज भी वो जंगल संवारने का काम कर रही हैं।

घटते जंगलों को देखकर ठाना
प्रभा बताती है कि उनके सामने ही पहाड़ों पर अंधाधुंध कटाई शुरू हो चुकी थी। लोग जंगलों को काट तो रहे थे, लेकिन किसी ने ये नहीं सोचा कि जब जंगल नहीं बचेंगे,तब क्या होगा। इसी सोच के बीच उनकी दिलचस्पी इसमें जगी और उन्होंने बंजर हुए पहाड़ में रीठा, बांस, बुरांश, दालचीनी आदि के पेड़ लगाए। कुछ सालों में ही उनकी मेहनत रंग लाई और पहाड़ पर हरियाली साफ दिखने लगी। प्रभा बताती हैं कि उन्होंने खेती करने की जगह पेड़ रोपने को चुना और खुशी है कि उनकी मेहनत रंग लाई।

बच्चे हैं विदेश में पर वो नहीं जाना चाहतीं
प्रभा के बेटे और बेटी अपनी मेहनत और लगन के बल पर विदेश में अच्छी नौकरी कर रहे हैं और वहीं रहते हैं। वो चाहते हैं कि मां उनके साथ रहे और कई बार वो उनकोले जाने का प्रयास कर चुके हैं, लेकिन प्रभा अपने पहाड़ और पेड़ों को छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहतीं। वो कहती हैं कि जब जिंदगी यहां बिता दी, तो मौत भी यहीं आए तो अच्छा है।