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महज 6 साल की उम्र में खो दीं आंखें पर हिम्मत नहीं हारीं, कड़ी मेहनत कर बनीं देश की पहली दृष्टिबाधित महिला आईएएस

Published - Tue 15, Oct 2019

महाराष्‍ट्र के उल्‍हासनगर की निवासी प्रांजल केरल कैडर में नियुक्‍त होने वाली देश की पहली नेत्रहीन आईएएस अफसर हैं। प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773वीं रैंक हासिल की थी।

नई दिल्ली। मजबूत इरादा और भरपूर हौसला हो तो कोई भी मंजिल हासिल करना मुश्किल नहीं होता। इसमें शारीरिक और आर्थिक कमजोरी भी बाधा नहीं बन सकती। ये बातें महाराष्ट्र की रहने वालीं प्रांजल पाटिल पर एकदम सटीक बैठतीं हैं। प्रांजल ने महज 6 वर्ष की उम्र में अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी, लेकिन अपने सपनों को कभी अपनी आंखों के सामने से ओझल नहीं होने दिया। आखिरकार उन्हें उनकी मंजिल मिल ही गई। प्रांजल पाटिल ने आईएएस बनकर न केवल अपने सपनों में रंग भरा, बल्कि देश की पहली दृष्टिबाधित आईएएस अफसर बनने का गौरव भी हासिल किया है। प्रांजल ने सोमवार 14 अक्तूबर 2019 को तिरुवनंतपुरम में उप कलेक्टर का पद ग्रहण किया। महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली प्रांजल की आंखों की रोशनी बचपन से ही कमजोर थी। लेकिन 6 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी आंखें पूरी तरह से खो दी। जिंदगी में हुए इतने बड़े बदलाव के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आज वह देश-दुनिया की सभी लड़कियों के लिए मिसाल बन गईं हैं।  बचपन से ही कड़ी मेहनत में विश्वास रखने वालीं प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773 वां रैंक हासिल की थी।

कभी पराजित महसूस न करें, न कभी हिम्मत हारें : प्रांजल पाटिल
 देश की पहली दृष्टिबाधित महिला आईएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल ने सोमवार को उप कलक्टर का पद संभालते हुए कभी पराजित महसूस नहीं करने और हिम्मत नहीं हारने की सीख दी है। केरल काडर की 30 वर्षीय अधिकारी ने कहा, हमारे बुलंद हौसले और निरंतर प्रयासों से एक दिन वह मौका जरूर मिलता है जो हमें कामयाबी की ओर ले जाता है। इसलिए कभी खुद को पराजित महसूस नहीं करना चाहिए। थोड़ी बाधाएं जरूर आती हैं, लेकिन इनसे निराश होकर हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है। हमें मन लगाकर बस अपनी मंजिल की ओर देखना चाहिए। महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली प्रांजल ने अपनी आंखों की रोशनी नहीं होने को कभी भी अपने लक्ष्य के बीच में नहीं आने दिया। 

रेलवे ने नौकरी देने से कर दिया था इनकार
इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी स्कॉलर्स रहीं प्रांजल पाटिल ने बताया कि बेशक मैं आंखों की रोशनी न होने के चलते इस दुनिया के रंगों को देख नहीं सकती, लेकिन उन्हें महसूस करती हूं। पिछला साल बेहद कड़वे अनुभवों से बीता। प्रांजल ने भावुक होते हुए बताया कि महज छह साल की उम्र में अचानक आंखों की रोशनी चली जाने के बाद से मैं अपनी मां ज्योति पाटिल की आंखों से दुनिया को देख रही हूं। यूपीएससी परीक्षा 2015 में 773 रैंक लाने के बाद भी रेलवे मंत्रालय ने मुझे नौकरी देने से इनकार कर दिया। इसके लिए उन्होंने मेरी सौ फीसदी नेत्रहीनता को आधार बनाया था। इस घटना के बाद मैंने जिद ठान ली थी कि मैं अपने सपने को टूटने नहीं दूंगी। यूपीएससी परीक्षा की दोबारा तैयारी शुरू की और मैंने 124वां रैंक हासिल की। प्रांजल के पिता एलजी पाटिल सरकारी कर्मचारी हैं, जबकि मां ज्योति घरेलू महिला हैं।

दो बार पास की यूपीएससी
प्रांजल पाटिल ने कड़ी मेहनत से दो बार यूपीएससी परीक्षा पास की। 2016 में उन्हें ऑल इंडिया 773वीं रैंक हासिल हुई थी। उन्होंने दोबारा मेहनत की और पिछले साल रैंकिंग में सुधार के साथ 124वां स्थान प्राप्त किया। जिसके बाद ट्रेनिंग के दौरान उन्हें एर्नाकुलम का सहायक कलक्टर नियुक्त किया गया।

प्रांजल ने मुंबई के सेंट जेवियर से किया था बीए
प्रांजल ने मुबंई के दादर स्थित श्रीमति कमला मेहता स्कूल से पढ़ाई की है। यह स्कूल प्रांजल जैसे खास बच्चों के लिए था। यहां पढ़ाई ब्रेल लिपि में होती थी। प्रांजल ने यहां से 10वीं तक की पढ़ाई की। फिर चंदाबाई कॉलेज से आर्ट्स में 12वीं की, जिसमें प्रांजल के 85 फीसदी अंक आए। बीए की पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज का रुख किया।

ग्रेजुएशन करने के दौरान आईएएस बनने की ठानी
ग्रेजुएशन के दौरान प्रांजल और उनके एक दोस्त ने पहली दफा यूपीएससी के बारे में एक लेख पढ़ा। प्रांजल ने यूपीएससी की परीक्षा से संबंधित जानकारियां जुटानी शुरू कर दीं। उस वक्त प्रांजल ने किसी से जाहिर तो नहीं किया, लेकिन मन ही मन आईएएस बनने की ठान ली। बीए करने के बाद वह दिल्ली पहुंचीं और जेएनयू से एमए किया। इस दौरान प्रांजल ने आंखों से अक्षम लोगों के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर 'जॉब ऐक्सेस विद स्पीच' की मदद ली।