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ताइवान की निडर राष्ट्रपति साई इंग-वेन चीन को देती रहतीं हैं झटका, कोरोना से भी जीती जंग

Published - Sun 24, May 2020

ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन एक सशक्त और निडर महिला है। 20 मई को उन्होंने देश के राष्ट्रपति पद की कमान दूसरी बार संभाली। साई इंग-वेन के प्रयास से ही ताइवान ने काफी हद तक कोरोना से जंग जीत ली है। उन्होंने वुहान में आए मामले के दौरान ही सबक लेते हुए अपने देश की सभी सीमाओं को सील कर दिया था। यही कारण है कि आज इस देश में कोरोना संक्रमित की संख्या और मौतों का आंकड़ा बेहद कम है। उनकी इस कामयाबी को पूरी दुनिया देख रही है। उन्होंने पूरी दुनिया को आत्मविश्वास और निडरता का पाठ पढ़ाया है। उन्होंने हमेशा चीन के गलत फैसलों का निडरता से विरोध किया और वह कभी उसके सामने झुकने वालों में से नहीं हैं। अपने इसी अंदाजों से वह पूरी दुनिया में एक सशक्त महिला नेता के रूप में उभरी हैं।

ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन

नई दिल्ली। ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन अपने सशक्त और अडिग फैसले के कारण पूरी दुनिया में जानी जाती हैं। उन्होंने हाल ही में 20 मई को अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की और इस अवसर पर चीन को स्पष्ट संदेश दिया। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक ताइवान, चीन के नियम-कायदे कभी कबूल नहीं करेगा और चीन को इस हकीकत के साथ शांति से जीने का तरीका खोजना होगा। वैसे तो ये मौका कोरोना वायरस की लड़ाई में ताइवान की जीत के जश्न का भी था।  जनवरी में हुए चुनाव में राष्ट्रपति साई इंग-वेन को ताइवान के मतदाताओं ने दूसरा मौका दिया था। इसकी शुरूआत 20 मई से हुई। ताइवान को अलग-थलग करने की चीन की मुहिम की राष्ट्रपति साई इंग-वेन कट्टर आलोचक रही हैं। साई इंग-वेन ताइवान को एक संप्रभु देश के तौर पर देखती हैं और उनका मानना है कि ताइवान... 'वन चाइना' का हिस्सा नहीं है। चीन उनके इस रवैये को लेकर नाराज रहता है। साल 2016 में वो जब से सत्ता में आई हैं, चीन, ताइवान से बातचीत करने से इनकार करता रहा है। इतना ही नहीं चीन ने इस द्वीप पर आर्थिक, सैनिक और कूटनीतिक दबाव भी बढ़ा दिया है।  चीन का मानना है कि ताइवान उसका क्षेत्र है। चीन का कहना है कि जरूरत पड़ने पर ताकत के जोर उस पर कब्जा किया जा सकता है। हॉन्ग कॉन्ग की ही तरह ताइवान में 'एक देश, दो व्यवस्थाओं' वाले मॉडल को लागू करने की बात की जाती रही है। जिसमें चीन का राज स्वीकार करने पर ताइवान को कुछ मुद्दों पर आज़ादी रखने का हक होगा। इसका वेन ने हमेशा विरोध किया है। 

दोबारा राष्ट्रपति बनीं साई इंग-वेन बोलीं- चीन से वार्ता नहीं
 चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने रिकार्ड रेटिंग के साथ अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने चीनी राष्ट्रपति के साथ सह-अस्तित्व के आधार पर बातचीत की पेशकश करते हुए स्पष्ट किया कि लोकतांत्रिक ताइवान किसी भी सूरत में चीनी नियम-कायदे स्वीकार नहीं करेगा और चीन को इस सच्चाई के साथ शांति से जीने का तरीका खोजना होगा। ताइवान की 63 वर्षीय राष्ट्रपति ने ताइपेई में आयोजित एक परेड के दौरान कहा कि वह चीन के साथ बातचीत कर सकती हैं लेकिन एक देश-दो सिस्टम के मुद्दे पर नहीं। साई के पहले कार्यकाल के दौरान चीन ने ताइवान से सभी प्रकार के रिश्तों को खत्म कर दिया था, क्योंकि चीन हमेशा से ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश बताता है। साई इंग-वेन ने कहा, वे चीन के संप्रभुता के दावे को दृढ़ता से खारिज करती हैं और संभवत: चीन रिश्तों को बिगाड़ने के लिए मंच बना रहा है लेकिन वह इसमें कभी सफल नहीं हो सकेगा। 

क्या है चीन-ताइवान विवाद, क्यों चल रही है तनातनी
1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने शियांग काई शेक के नेतृत्व वाले कॉमिंगतांग सरकार का तख्तापलट कर दिया था। उस समय कम्युनिस्ट पार्टी के पास मजबूत नौसेना नहीं थी। इसलिए उन्होंने समुद्र पार कर इस द्वीप पर अधिकार नहीं किया। तब से चीन इस द्वीप को अपना अभिन्न अंग मानता है लेकिन ताइवान खुद को स्वतंत्र देश मानता है। ताइवान हमेशा चीन के किसी भी प्रकार के प्रभुत्व से इंकार करता रहा है। 

कैसे जीती कोरोना से जंग 
चीन से सटे ताइवान ने कोरोनावायरस की गंभीरता को समझते हुए पहले ही एहतियाती कदम उठा लिए थे। जिसके कारण उनके यहां पीड़ितों की संख्या 50 से ऊपर नहीं पहुंच सकी।
चीन के वुहान और हुबेई प्रांत से शुरू हुआ कोरोनावायरस का संक्रमण अब दुनिया के लगभग सभी देशों में पहुंच चुका है। अमेरिका, इटली, ईरान, स्पेन आदि देशों में सबसे अधिक मौतें हो चुकी हैं मगर एक बड़ा सवाल यह है कि चीन से सटे ताइवान ने ऐसा क्या किया जिसकी वजह से वहां कोरोना महामारी नहीं बन सका। दरअसल चीन में जैसे ही कोरोना पीड़ितों के मामले बढ़ने लगे ताइवान ने अपने यहां के नागरिकों पर चीन, हांगकांग और मकाउ जाने पर बैन लगा दिया। इतना ही नहीं, ताइवान की सरकार ने सर्जिकल मास्क के निर्यात पर भी रोक लगा दी ताकि देश में इसकी कमी ना हो सके। उसी का नतीजा रहा कि वहां मास्क कम नहीं हुए, हालात खराब नहीं होने पाए। सरकार ने अपने संसाधनों को बहुत सोच समझ कर इस्तेमाल किया। ताइवान की सरकार ने नेशनल हेल्थ इंश्योरेंश, इमिग्रेशन और कस्टम के डेटा को कलेक्ट किया, लोगों की ट्रैवल हिस्ट्री को जोड़ा। जिससे इससे जोड़कर मेडिकल अधिकारी पता लगा पाए कि किन-किन लोगों को संक्रमण हो सकता है, उसके बाद उसी हिसाब से उपाय किए गए। यरस पर कंट्रोल के लिए सेना की बटालियन को छिड़काव के लिए उतार दिया गया। स्कूलों में सभी को मास्क पहनकर आना अनिवार्य कर दिया गया। 

शुरूआत में ही लगा दिया था यात्रा पर बैन 
यात्रा पर बैन लगने के कारण चीन से सटे होने के बावजूद ताइवान में मात्र 50 मामले ही सामने आए थे, जिस पर वहां के मंत्रालय ने एहतियाती कदम उठाते हुए काबू पा लिया। अब दुनिया का हर देश ये जानना चाह रहा है कि आखिर चीन से सटे होने के बावजूद ताइवान ने ऐसा क्या-क्या काम किया जिसकी वजह से उनके यहां ऐसे मामलों में बढ़ोतरी नहीं हुई और किसी के मरने की भी खबर नहीं आई। जबकि जनवरी माह में जब चीन में कोरोनावायरस का संक्रमण शुरू हुआ था, उसी समय जानकारों ने उम्मीद जताई थी कि चीन से सटे सभी शहर इसका शिकार होंगे और वहां मौतों का आंकड़ा काफी रहेगा। चीन के बाद सबसे ज्यादा मामले ताइवान में ही देखने को मिलेंगे लेकिन शुरूआत में ही जहां चीन में 80 हजार से भी ज्यादा मामले सामने आए थे वहीं ताइवान ने इसे सिर्फ 50 मामलों पर ही रोके रखा था हालांकि बाद में थोड़ी बढ़ोत्तरी हुई।। स्वास्थ्य महकमे के जानकारों का कहना है कि ताइवान ने जिस फुर्ती के साथ वायरस की रोकथाम के लिए कदम उठाए, यह उसी का नतीजा था। 

सार्स एपिडेमिक के बाद बनाया नेशनल हेल्थ कमांड सेंटर 
अमेरिका की स्टैनफॉर्ड यूनिवर्सिटी के डॉक्टर जेसन वैंग का कहना है कि ताइवान ने बहुत जल्दी मामले की गंभीरता को पहचान लिया था। साल 2002 और 2003 में सार्स एपिडेमिक के बाद ताइवान ने नेशनल हेल्थ कमांड सेंटर स्थापित किया, ताइवान को अहसास हो गया था कि कोरोना अगली महामारी बनेगी, इसी को ध्यान में रखते हुए पहले से तैयारी कर ली गई थी।

चीन के दबाव में ताइवान से कई देशों ने तोड़ा नाता
चीन के दबाव में 15 देशों ने ताइवान के साथ अपने राजनयिक संबंध ख़त्म कर दिए हैं लेकिन ताइवान ने अथक प्रयास करके अंतरराष्ट्रीय पटल पर वैधता हासिल करने के लिए बहु-पक्षीय संस्थाओं जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य देशों की ओर से पहचान हासिल कर ली है। पिछली सरकार जो कि चीन से बेहतर संबंध रखना चाहती थी, उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन में `चाईनीज़ ताइपेई' के नाम से ऑब्ज़र्वर का दर्जा हासिल था, लेकिन 2016 के बाद से जब साइ-इंग-वेन सत्ता में आई हैं तब से इन्हें वापस नहीं बुलाया गया है। इसके बाद से हर साल ताइवान ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के देशों से बात करके बैठक में शामिल होने के लिए पूरी कोशिशें कीं और इसी का नतीजा है कि अब ताइवान के समर्थन में उठने वाली आवाज़ें स्पष्ट और तेज़ हो चुकी हैं। यह वेन की ही कोशिशों का नतीजा है। 

कोरोना से जीत के बाद बदला दृष्टिकोण
विशेषज्ञ कहते हैं कि पहले अन्य देश ये सोचते थे कि ताइवान के लिए चीन को नाराज़ नहीं किया जा सकता है, वह गणित कोविड-19 के बाद बदल गया है। कोरोना पर साई इंग-वेन के प्रयासों के बाद अब उनके प्रति अन्य देशों का दृष्टिकोण बदल चुका है। ताइवान को कोरोना वायरस से निपटने में प्रशंसनीय सफलता मिली है। ताइवान में 2.3 करोड़ लोगों की आबादी में सिर्फ़ 440 मामले हैं और सात लोगों की मौत हुई है। इसके लिए सीमाओं पर नियंत्रण, विदेशी नागरिकों के आने पर प्रतिबंध और ताइवान लौट रहे लोगों के लिए अनिवार्य क्वारंटीन जैसे क़दमों को श्रेय दिया जा रहा है। वेन ने इस मुद्दे पर अपनी जनता का पूरा विश्वास हासिल किया है। इस सफलता ने ताइवान को दुनिया के स्वास्थ्य पर फैसला करने वाले देशों में शामिल होने के लिए एक नया मौका और वजह दी है। 

story by ANTIMA SINGH