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प्रियंका गुंजिकर बना रही हैं ईको फ्रेंडली घर

Published - Mon 20, Jan 2020

एसी से निकलने वाली गैंसों के कारण पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है। पयार्वरण की इसी समस्या को देखते हुए पुणे की रहने वाली वास्तुकार प्रियंका गुंजिकर ने अपने साथी ध्रुवंग हिंगमिरे के साथ मिलकर कुछ अलग करने की ठानी और दोनों ने ऐसे घर डिजाइन करने शुरू किए जो पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से बने और इसमें एसी-पंखे की जरूरत नहीं है।

priyanka

पुणे की आर्किटेक्ट प्रियंका गुंजिकर ऐसे सीमेंट रहित ईको फ्रेंडली घरों का निर्माण करने में जुटी हैं, जिसमें न एसी की जरूरत होगी और न पंखे की। इसका मकसद पर्यावरण की सुरक्षा करना है। शहर हो या गांव आजकल बिना एसी के कोई नहीं रहता। एसी से निकलने वाली गैंसों के कारण पर्यावरण को गंभीर नुकसान होता है। पयार्वरण की इसी समस्या को देखते हुए पुणे की रहने वाली वास्तुकार प्रियंका गुंजिकर ने अपने साथी ध्रुवंग हिंगमिरे के साथ मिलकर कुछ अलग करने की ठानी और दोनों ने ऐसे घर डिजाइन करने शुरू किए जो पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री से बने और इसमें एसी-पंखे की जरूरत नहीं है। उनके इस प्रयास से जहां पर्यावरण की दिशा में काम हो रहा है, वहीं मजदूरों को रोजगार भी मिल रहा है।
तीन साल पहले की थी शुरुआत
दोनों ने मिलकर तीन साल पहले  ‘बिल्डिंग इन मड’ अभियान की शुरुआत की थी। इस शुरुआत का मकसद ईको फ्रेंडली घर बनाना था। शुरुआत से लेकर अब तक वह अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल कर छह घरों का निर्माण कर चुके हैं। उनके कई प्रोजेक्ट चल भी रहे हैं। उन्होंने मुंबई और पुणे के बीच कामशेत शहर के पास थोरन गांव में अपना ईको फ्रेंडली घर बनाया है। दोनों ने मिलकर जंगल की एक पहाड़ी पर ढलान का मुआयना किया और वहां मौजूद प्राकृतिक चीजों के बारे में जानकारी जुटाई। उन्हें वहां काले पत्थर मिले। उन्होंने ईंटो और पत्थरों को सीमेंट की जगह मिट्टी से जोड़ा और मिट्टी के गारे के साथ काले पत्थरों की चिनाई की। लकड़ी के तौर पर उन्होंने ऐन, हिडू, जामुल और शिवा, इत्यादि। और सबसे ऊपर, हमने मिट्टी की छत वाली टाइलों का इस्तेमाल किया। इसके बाद उन्होंने पारंपरिक चूने के प्लास्टर को निर्माण के लिए बहुत अच्छा विकल्प माना और चूने के प्लास्टर किया। सीमेंट पर्यावरण के लिहाज से भी अच्छा नहीं है, जबकि चूना पूरी तरह से रिसाइकिल हो जाता है और अधिक थर्मल इन्सुलेशन वैल्यू रखता है। गर्मी के मौसम में चूना गर्मी को रोकने में मदद करता है और सर्दियों में घर को गर्म रखने में मदद करता है। अपने प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद, हमने घर के अंदर और बाहर के तापमान का निरीक्षण किया। हाल ही में, यहां बाहर का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था, लेकिन घर के अंदर का तापमान सिर्फ 25 डिग्री था। ऐसे में आपको एयर कंडीशनर की भी आवश्यकता नहीं है। यहां तक कि गर्मियों में भी, सबसे ऊपर के कमरे के अलावा, हम और कहीं पंखों का भी उपयोग नहीं करते हैं। उनका यह प्रोजेक्ट लगभग दो साल पहले शुरू हुआ था। पुणे में जन्मे और पले-बढ़े, ध्रुवंग ने मुंबई में रचना संसद एकेडमी ऑफ आर्किटेक्चर से पढ़ाई की और यहीं पर उनकी मुलाकात प्रियंका से हुई थी। कॉलेज में, वे एक ब्रिटिश मूल के सीनियर भारतीय आर्किटेक्ट, मालकसिंह गिल से बहुत प्रभावित थे। मालकसिंह गिल, प्रसिद्ध लॉरेंस विल्फ्रेड “लॉरी” बेकर के छात्र थे। वे पर्यावरण प्रेमी होने के साथ-साथ संस्कृति के प्रति एक संवेदनशील आर्किटेक्ट भी थे। ध्रुवंग के माता-पिता भी ख्यातिप्राप्त आर्किटेक्ट हैं, जो आवासीय/वाणिज्यिक परियोजनाओं पर काम करते हैं। जहाँ उनके माता-पिता ने उन्हें एक आर्किटेक्ट बनने के लिए प्रेरित किया, वहीं आज उन्होंने जो रास्ता चुना है, वह मालकसिंह से प्रेरित है। प्रियंका एक गोल्ड मेडलिस्ट थीं, जिन्होंने उनके साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।
खुद करने हैं निरीक्षण
जब भी प्रियंका और ध्रुवंग को कोई प्रोजेक्ट मिलता है, वे उस स्थान की और उसके आस-पास के इलाकों का खुद जाकर निरीक्षण करते हैं। साथ ही, वहां पर बने घरों को, उनमें इस्तेमाल हुई सामग्रियों का और इस सामग्री को कहां से खरीदा जा सकता है और निर्माण- तकनीक आदि का अध्ययन करते हैं। अगर मिट्टी का घर बनाने के लिए जलवायु क्षेत्र के आधार पर, विभिन्न तरीकों का प्रयोग किया जाता है। प्राकृतिक सामग्रियों के लिए वो महाराष्ट्र के अंदरूनी हिस्सों में पाए जाने वाले बेसाल्ट पत्थर, तो कोई तटीय क्षेत्रों में लाल पत्थर (जिसे लेटराइट के नाम से भी जाना जाता है) उसका इस्तेमाल करता है। वह निर्माण में इस्तेमाल होने वाली लकड़ी को पॉलिश नहीं करते। क्योंकि इससे घर बहुत सारे केमिकल्स/रसायनों के प्रभाव में आ जाता है। इसके अलावा पॉलिश करने से लकड़ी में बहुत से परिवर्तन होते हैं, जिन्हें फिर बदला नहीं जा सकता। इसलिए वे पॉलिश की बजाय, पारंपरिक तेल का इस्तेमाल करते हैं। उनकी डिजाइन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जितना संभव हो सके, वे घर को उतना ही देशी/स्थानीय बनाने का प्रयास करते हैं।