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राधामणि घर-घर किताबें बांटती हैं ताकि श्रमिक महिलाएं पढ़ सकें 

Published - Mon 10, May 2021

राधामणि बचपन में अपने पिता को अखबरा और रोचक कहानियां पढ़ कर सुनाया करती थी। क्योंकि उनके पिता पढ़ नहीं सकते थे। उनमें पढ़ाई पढ़ाई न कर पाने की कसक थी। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को दसवीं तक पढ़ाया। आज राधामणि लोगों के अंदर पढ़ने की रुचि जगाने के लिए घर-घर जाकर किताबें बांटने का काम करती हैं।

kp Radhamani

केरल के वयनाड की रहने वाली केपी राधामणि के पिता पढ़ नहीं सकते थे। मगर उनमें पढ़ने की इच्छा बहुत होती थी। जब भी अखबार देखते थे तो उनका पढ़ने का मन करने लगता था। तब वह यह जानने के लिए कि इसमें क्या लिखा है अपनी बेटी राधामणि को बुलाते थे। राधामणि अपने पिता को अखबार पढ़कर सुनाती थी। यही नहीं वह अपने पिता को हर रोज किताबों में लिखी दिलचस्प कहानियां पढ़कर भी सुनाती थी। शायद यहीं वजह है कि राधामणि को पढ़ाई का महत्व पता है और वह चाहती है कि हर व्यक्ति पढ़-लिख सके। राधामणि ने दसवीं तक पढ़ाई किया और उसके बाद उनका विवाह हो गया। पढ़ाई में उनकी रुचि को उनके पति ने भी सराहा और इस क्षेत्र में आगे काम करने से कभी नहीं रोका। ससुराल आकर वह गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम का हिस्सा बन गईं। थोड़े दिन उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस में भी काम किया। जब आदिवासी इलाकों में छोटे बच्चों को पढ़ाने की योजना शुरू हुई, तो वह उसका हिस्सा बनीं। बाद में जब राज्य पुस्तकालय परिषद की पहल पर महिलाओं को अपने घरों में किताबें ले जाकर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना शुरू हुई, तो उन्होंने उसमें काम करना शुरू कर दिया। इसके तहत वह घर-घर जाकर महिलाओं को किताबें बांटती हैं, फिर वापस लेकर आती हैं। पिछले कई वर्षों से यह काम चल रहा है। इस काम के लिए वह रोजाना 4 किलोमीटर पैदल चलती हैं। लोग कहते हैं कि किसी गाड़ी का सहारा क्यों नहीं लेती। इस पर वह जवाब देती हैं कि जब मैं पैदल चल सकती हूं तो गाड़ी से प्रदूषण क्यों बढ़ाना। वह कहती हैं कि आज भी अगर मैं इतनी फिट हूं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं पैदल चलती हूं। 

शुरुआती चुनौतियां 

शुरुआत में तो महिलाओं ने किताबें पढ़ने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। वे केवल कुछ स्थानीय पत्रिकाएं ही पढ़ती थीं। लेकिन राधामणि उन्हें लगातार कहानी और उपन्यासों के बारे में बताती रहती थी, जिसके चलते वे धीरे-धीरे उपन्यासों में भी दिलचस्पी लेने लगीं। अब वे खुद अच्छे-अच्छे उपन्यासों और कहानी की किताबों के बारे में पूछती रहती हैं।

दिहाड़ी श्रमिक महिलाएं 

पुस्तकालय के साथ आसपास के गांवों से सौ से अधिक लोग जुड़े हैं, जिनमें तकरीबन नब्बे महिलाएं हैं। पुस्तकालय के साथ जुड़ी ज्यादातर महिलाएं मनरेगा योजना के तहत दिहाड़ी मजदूरी का काम करती हैं। वे रविवार को घर पर रहती हैं और इस तरह उनके लिए किताबों को पढ़ने का यह सबसे अच्छा समय होता है।

लॉकडाउन में जारी

स्तकालय के सदस्यों तक किताबें पहुंचाने के लिए वह हर रोज तीन से चार किलोमीटर तक पैदल यात्रा करती हैं और घर-घर जाकर किताबें पहुंचाती हैं। कोरोना वायरस महामारी भी उनके काम को नहीं रोक पाई। क्योंकि महामारी के शुरुआती दिनों में, जो लोग किताबें पढ़ने के आदी हो गए थे, लॉकडाउन के दौरान पढ़ने के लिए किताबें लेने वे उनके घर तक पहुंच जाते थे। किताबें बांटने के अलावा वह स्थानीय पर्यटक स्थलों के लिए टूर गाइड का भी काम करती हैं।