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105 साल की रतनबाई कभी नहीं गईं स्कूल पर कंठस्थ हैं भगवद गीता के 700 श्लोक

Published - Fri 05, Mar 2021

आस्था में बड़ी शक्ति होती है। यह बात तो आपने कई बार सुनी होगी, लेकिन इसे चरितार्थ कर दिखाया है राजस्थान की बुजुर्ग महिला रतनबाई ने। 105 साल की हो चुकीं रतनबाई कभी स्कूल नहीं गईं। वह निरक्षर हैं। इसके बावजूद भागवान में आस्था होने के कारण उन्होंने दूसरों से सुन-सुनकर श्रीमद् भगवद गीता के 700 श्लोक मुंह जुबानी याद कर लिए हैं। वह अब आस-पास के लोगों को भी इन श्लोकों को सुनाकर उन्हें इनका अर्थ भी समझाती हैं।

नई दिल्ली। किसी काम को करने का जज्बा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। राजस्थान के रावतभाटा के चारभुजा में रहने वालीं 105 साल की रतनबाई को देख आप खुद यह बात कहेंगे। वह पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उन्होंने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा है। इसके बावजूद वह श्रीमद भगवद गीता के श्लोकों को धारा प्रवाह सुनाती हैं। उन्हें गीता के श्लोकों को सुनाते देख आप यकीन नहीं कर सकेंगे कि वह निरक्षर हैं। यह उनकी लगन का ही नतीजा है कि उन्होंने दूसरों से सुन-सुनकर श्लोकों को न केवल कंठस्थ कर लिया है, बल्कि उनका अर्थ भी अच्छे से समझती और समझाती हैं।
 
मंदिर में सुन-सुनकर याद किए श्लोक

गीता के श्लोकों को याद करने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा है। निरक्षर रतनबाई जब 25 साल की थीं, तब वह चारभुजा मंदिर में दर्शन करने गई थीं। यहां उन्होंने गीता के श्लोक सुने और एक दो को वहां बैठकर सीखा भी। उन्हें गीता के श्लोक काफी अच्छे लगे। वह इन्हें याद करना चाहती थीं। लेकिन दिक्कत यह थी कि वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं। ऐसे में वह श्लोकों को पढ़ें कैसे। फिर उन्होंने तय किया कि वह रोज मंदिर जाएंगी और श्लोक सुनकर याद करेंगी। रतनबाई ने ऐसा ही किया। वह रोज कुछ श्लोक याद कर लेती थीं और उनका अध्ययन करती थीं। कुछ दिनों में उन्हें कई श्लोक कंठस्थ हो गए। धीरे-धीरे उन्होंने गीता के 18 अध्याय के 700 श्लोकों को याद कर डाला।  

अब भी रोजाना पैदल जाती हैं मंदिर

उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी भागवान और भगवद गीता में आस्था कम नहीं हुई हैं। रतनबाई को सुनने में परेशानी होती है और आंखों से कम दिखता है। लेकिन वह अब भी पूरी तरह स्वस्थ्य हैं। रतनबाई सुबह से ही पूजा-पाठ में लीन हो जाती हैं। वह आज भले 105 साल की हो गई हैं, लेकिन आज भी उनके अंदर वही उत्साह है जो 25 साल की उम्र में था। वह रोजाना रावतभाटा के प्रसिद्ध चारभुजा मंदिर तक पैदल जाती हैं और सीढ़ियां चढ़कर भगवान की आराधना करती हैं।