केरल की ऋत्विका ने वर्ल्ड बैंक की नौकरी छोड़कर नेताओं के विकास कार्यों पर काम कर रही हैं। उनका मकसद हैं कि नेताओं द्वारा जनता को बेहतर सुविधा दी जाए। वह सौ सांसदों के विकास कार्यों को देख रही हैं।
ऋत्विका भट्टाचार्य के पिता केरल में बड़े नेता है। ऐसे में उनके घर में नेताओं का आना जाना लगा रहता था। ये बात उस समय की है, जब वह महज बारह साल की थीं। एक दिन उनके घर कांग्रेस के मनीष तिवारी पहुंचे थे। तब ऋत्विका भट्टाचार्य ने उनसे कहा कि वह नेताओं के साथ काम करना चाहती हैं। ये सुनकर मनीष ने कहा कि पहले पढ़-लिख लो। बात यूं ही हंसी में टाल दी गई, लेकिन ऋत्विका भट्टाचार्य के मन में ये बात घर कर गई थी कि उन्हें इसी क्षेत्र में कुछ करना है।
अमेरिका में भी किया काम
उनकी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में हुई। कॉलेज जाने की उम्र होने पर पिता ने उनको हावॅर्ड पढ़ने के लिए भेज दिया। यहां ऋत्विका भट्टाचार्य ने अमेरिकी सीनेटर कैथरीन हैरिस के क्षेत्र में भी काम किया। यहां भी उन्होंने राजनेताओं के क्षेत्र में काम करना जारी रखा। इसी बीच उन्हें वर्ल्ड बैंक में काम करने का मौका मिला। दिल्ली में पली-बढ़ी ऋत्विका अफसरशाही को भली-भांति जानती थीं। उस समय 22 साल की हो चुकीं ऋत्विका ने स्वनीति नाम से एक एनजीओ की भी शुरुआत की। ये एनजीओ सांसदों को विकास कार्यों की पहचान करने में मदद करता था। उन्होंने वर्ल्ड बैंक की नौकरी छोड़ी और देश लौट आईं। उन्होंने यहां सांसदों के विकास कार्यों को देखना शुरू किया। वो तब चर्चा में आईं, जब पूर्व रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी के संसदीय क्षेत्र में जूट मिलों में मजदूरों को सांस संबंधी परेशानी का मुद्दा उन्होंने उठाया। फिर इस मामले को उन्हें सौंपा गया। ऋत्विका ने वहां रिसर्च किया और पाया कि मजदूरों को सांस संबंधी परेशानी छोटी-छोटी लापरवाही के कारण हो रही है। उन्होंने मजदूरों को सुझाया कि मास्क से मुंह ढंकना और मशीनों से थोड़ा दूर रहकर काम करना मजदूरों के लिए बेहद है। उन्होंने मिल में पोस्टर लगाकर मजदूरों को जागरूक किया। इससे मजदूरों को बहुत फायदा भी मिला। इस तरह धीरे-धीरे उन्होंने अन्य सांसदों के क्षेत्रों में भी काम देखना शुरू किया। अपने काम को करने के लिए उन्होंने 'ताम्रपत्र' और दूसरे का 'जिज्ञासा' नाम के टूल बना रखे हैं। 'ताम्रपत्र' में सभी सरकारी स्कीमों का डेटाबेस है और दूसरे का 'जिज्ञासा' ये अलग-अलग दलों के काम का लेखा-जोखा रखता है। इस तरह वह पचास लाख भारतीयों को सुविधाएं दिलाने व नेताओं से काम कराने में मदद कर रही हैं। अभी तक उनकी संस्था ने सांसदों और राज्य-जिला प्रशासन के साथ 50 लाख आम भारतीयों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाला कार्य किया है। दरअसल यह संस्था कृषि, शिक्षा, आजीविका, नवीकरणीय ऊर्जा, सामाजिक कल्याण, जल, स्वास्थ्य और पोषण जैसे क्षेत्रों में विश्लेषण और अनुसंधान करती है और सांसदों के साथ मिलकर उन पर कार्य करती है, ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ हर समुदाय तक पहुंच सके, साथ ही उनकी समस्याओं की जानकारी हासिल हो सके। उनके इस काम से उन्हें काफी प्रसिद्धी भी मिली है और उन्हें फोर्ब्स की लिस्ट 30 अंडर 30 में शामिल किया गया था। 2009 में बनी स्वानीति इनिशेटिव 10 साल से यह काम कर रही हैं और अब इससे कई सांसद, विधायक और स्थानीय प्रशासन जुड़ गए हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.