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हजारों पेड़ों की मां : वृक्षमाता सालुमारदा थिमक्का

Published - Sat 12, Oct 2019

वृक्ष माता के रूप में मशहूर कर्नाटक की इस बुजुर्ग पर्यावरणविद् ने पति के मौत के बाद अपनी सारी जिंदगी पेड़-पौधों के नाम कर दी। थिमक्का कहती हैं, मेरे बच्चों के रूप में पेड़ सबको फल और छाया दे रहे हैं।

 नई दिल्ली। यदि आपसे कोई पूछे कि आपने जीवन में कितने पेड़ लगाए हैं तो शायद आप कहेंगे की एक, दो या फिर दस। हो सकता है किसी ने हजार लगाए हों, लेकिन सालूमरदा थिमक्का ने आठ हजार पेड़ लगाए हैं। उनकी देखभाल और मौसम के हिसाब से उन्हें बचाकर रखना भी इनकी जिम्मेदारी थी। वृक्ष माता के रूप में मशहूर कर्नाटक की इस बुजुर्ग पर्यावरणविद् ने पति के मौत के बाद अपनी सारी जिंदगी पेड़-पौधों के नाम कर दी। थिमक्का कहती हैं, मेरे बच्चों के रूप में पेड़ सबको फल और छाया दे रहे हैं...

कर्नाटक के तुमकुर जिले के गुबी तालुक में जन्मीं सालुमारदा थिमक्का के माता-पिता आर्थिक रूप से कमजोर थे। चूंकि तब शिक्षा का इतना प्रसार नहीं था, तो उनकी कोई स्कूली शिक्षा नहीं हुई। घर पर आर्थिक सहयोग के लिए कई बार वह घर के पास मौजूद खदान में आकस्मिक मजदूर के रूप में काम भी कर लेती थीं। लगभग बीस वर्ष की आयु में उनका विवाह कर्नाटक के रामनगर जिले के मगदी तालुक के हुलिकल निवासी चिकैया से हुआ। मजदूरी करने वाला पति भी पढ़ा-लिखा नहीं था। विवाह के कुछ वर्ष बाद सालुमारदा थिमक्का को पता चला कि वह कभी मां नहीं बन सकतीं। ससुराल वालों का व्यवहार उनके प्रति बदल गया, आए दिन उनको ताने-सुनने को मिलने लगे। हालात यहां तक पहुंच गए कि एक दिन सालुमारदा थिमक्का ने आत्महत्या करने का मन बना लिया। तब पति ने समझाया और अकेलापन दूर करने के लिए उन्हें पौधों को अपना बच्चा मानने की सलाह दी और साथ ही ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद सालुमारदा थिमक्का ने पौधे लगाकर उनकी देखभाल अपने बेटों की तरह करनी शुरू कर दी।

साल दर साल बढ़ाती गईं पौधे लगाने की संख्या
सालुमारदा थिमक्का  कहती हैं, हमारे गांव के पास बरगद के पुराने पेड़ थे। हमने उन पेड़ों से नए पौधे उगाए। पहले वर्ष हमने दस पौधे तैयार किए, जिन्हें पड़ोसी गांव के पास करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर लगाया। दूसरे वर्ष में पंद्रह और तीसरे वर्ष करीब बीस बरगद के पौधे रोप दिए। प्रतिदिन सुबह मैं और मेरे पति खेतों में काम करने के लिए एक साथ निकलते थे और दोपहर बाद सड़क किनारे पेड़ लगाते थे। इन पौधों को हम मानसून के समय लगाते थे, ताकि इनकी सिंचाई के लिए अधिक परेशानी का सामना न करना पड़े और उनके बढ़ने के लिए पर्याप्त वर्षा जल उपलब्ध हो सके। साथ ही इन पौधों के पास कांटेदार झाड़ियों से बाड़ लगाकर उन्हें मवेशियों को चराने से भी बचाया। इस तरह तकरीबन तीस वर्ष में चार सौ से ज्यादा बरगद के पेड़ जबकि अन्य प्रजाति के आठ हजार से ज्यादा पौधे तैयार हो गए। वर्ष 1991 में मेरे पति की मृत्यु हो गई, जिसके बाद मैंने अपनी जिंदगी इन पौधों के नाम कर दी। अब इन पौधों से बड़े हो चुके पेड़ों की देखभाल कर्नाटक सरकार कर रही है।

लोगों ने नाम दिया 'सालूमरादा'
थिमक्का बताती हैं, मेरे द्वारा लगाए गए बरगद के पेड़ बागपल्ली-हलागुरु सड़क के चौड़ीकरण के लिए काट दिए जाने के खतरे में आ गए थे। मैंने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री से इस परियोजना पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। परिणामस्वरूप, सरकार ने तकरीबन साल पुराने इन पेड़ों को बचाने के विकल्पों की तलाश करने का निर्णय लिया। मेरी उम्र तकरीबन 107 वर्ष है, पर पौधारोपण का जज्बा मेरे भीतर अब भी बरकरार है। लगभग चार किलोमीटर का क्षेत्र अब काफी हरा-भरा हो गया है। पौधे लगाने की वजह से लोगों ने मुझे थीमक्‍का के बजाय 'सालूमरादा' नाम से बुलाना शुरू कर दिया। यह एक कन्‍नड़ शब्‍द है, जिसका अर्थ होता है 'वृक्षों की पंक्ति'। लोग अचानक आते हैं, फिर वे मुझे कार में समारोह में ले जाते हैं। वह मुझे पुरस्कार देते हैं और मुझे वापस छोड़ जाते हैं, हालांकि मैं इन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए हमेशा तैयार रहती हूं। पर मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि लोग मुझे पदक और उपहारों से क्यों नवाजते हैं। मुझे बहुत सारे पुरस्कारों से नवाजा गया। मेरे जीवन पर किताब भी लिखी गई। कर्नाटक सरकार भी मेरे नाम पर प्रकृति संरक्षण के लिए योजनाएं संचालित कर रही है। पर बिना पौधारोपण किए, इन पुरस्कारों, योजनाओं, किताबों का कोई मतलब नहीं है।

पद्म सम्मान लेते हुए राष्ट्रपति को दिया आशीर्वाद
राष्ट्रपति भवन अपने प्रोटोकॉल के लिए मशहूर है। जब कोई वहां अवार्ड लेने जाता है तो उसे हजारो नियम समझाएं जाते हैं और सब फालो भी करते हैं। इस साल मार्च महीने में जब साल्लुमरदा थिमक्का को पद्म श्री पुरस्कार मिला तो वह यह सम्मान लेने राष्ट्रपति भवन गईं। जब उनका नाम पुकारा गया तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद प्रोटोकॉल तोड़कर खुद चलकर उन तक पहुंचे और उन्हें सम्मानित किया। इस पर थिमक्का ने अपने बेटे जैसे राष्ट्रपति के माथे को छूकर उन्हें आशीर्वाद दिया। समारोह में मौजूद प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े नेताओं के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। वो पल ऐतिहासिक हो गया।

इन सम्मानों से भरा है साल्लुमरदा थिमक्का का घर
पद्म श्री पुरस्कार – 2019
हम्पी विश्वविद्यालय द्वारा नादोजा पुरस्कार- 2010
राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार – 1995
इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार – 1997  (वृक्षमित्र - “वृक्षों का मित्र”)
वीरचक्र प्रशस्ति पुरस्कार – 1997
कर्नाटक सरकार के महिला और बाल कल्याण विभाग से सम्मान प्रमाण पत्र
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी, बंगलुरू से प्रशंसा का प्रमाण पत्र।
कर्नाटक कल्पवल्ली पुरस्कार – 2000
गॉडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार – 2006
आर्ट ऑफ लिविंग संगठन द्वारा विशालाक्षी पुरस्कार
होविनाहोल फाउंडेशन -2015 द्वारा विश्वम्मा पुरस्कार
2016 में बीबीसी की 100 महिलाओं में से एक
आई एंड यू बीइंग टुगेदर फाउंडेशन द्वारा शी के डिवाइन अवार्ड से सम्मानित
पेरिस रथना पुरस्कार
ग्रीन चैंपियन पुरस्कार
वृक्षाथम पुरस्कार