पूरे विश्व में जब मास्क को लेकर बहस जारी है। उसी बीच भारत की एक महिला ने घरेलू मास्क को उपयोगी बताकर न केवल गरीबों को राहत दी है बल्कि देश को मास्क की होने वाली कमी से भी बचाया है। उनकी इसी सोच के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी भी मुंह पर घरेलू मास्क यानि गमछा लपेटे नजर आए। उनकी देखा-देखी जनता भी बाजारू मास्क के बजाय अब घरेलू मास्क या मुंह पर कपड़ा लपेटने की विधि अपना रही है। यह सब संभव हो पा रहा है एक महिला बायोकेमिस्ट शैलजा वी गुप्ता के कारण।
नई दिल्ली। शैलजा वी गुप्ता एक वैज्ञानिक हैं और वर्तमान में वह भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के ऑफिस में कार्यरत हैं। उनका काम सरकार के लिए नीतियों को बनाना और तकनीक के बेहतर इस्तेमाल संबंधी सुझाव देना है। 11 अप्रैल को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब देश भर के नेताओं से वीडियो कॉन्फ्रेंसंग के ज़रिए बात कर रहे थे उस वक्त उन्होंने घरेलू सफेद मास्क का इस्तेमाल किया था। इससे पहले, उनकी सरकार ने घनी आबादी वाले शहरों में रहने वाले लोगों से अपील की थी कि घर से बाहर निकलते वक्त कोरोना संक्रमण से सुरक्षा के लिए घरेलू मास्क का इस्तेमाल करें। मास्क के इस्तेमाल को लेकर भारत ने इससे पहले अलग नज़रिया अपनाया था, पहले सरकार की ओर से कहा गया था कि केवल संक्रमित लोगों को ही मास्क पहनना है। इस नीतिगत बदलाव और घरेलू मास्क के इस्तेमाल पर ज़ोर देने के पीछे इस बायोकेमिस्ट महिला शैलजा की अहम भूमिका रही है। 58 साल की शैलजा ने गरीबों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए घरेलू मास्क पर जोर दिया और इसे घर-घर तक पहुंचाया।
मास्क के उपयोग पर बहस
शैलजा ने बताया, भीड़-भाड़ वाली जगह पर संक्रमण पर अंकुश के लिए घरेलू मास्क का उपयोग सही उपाय है। जो लोग झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं उन्हें तो सस्ता और आसान उपाय चाहिए। ऐसे में घरेलू मास्क लोगों को संक्रमण से बचा सकता है। वैसे दुनिया भर में बचाव के उपाय के लिहाज से घरेलू मास्क और दूसरे मास्क के उपयोग को लेकर बहस जारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि मास्क पहनने से कोरोना से बचाव के पक्ष में बहुत ज़्यादा सबूत नहीं मिले हैं। बावजूद उसके कई दिनों ने मास्क को अनिवार्य कर दिया है। चीन, हॉन्गकॉन्ग सहित कई एशियाई देशों ने अपने यहां मास्क के प्रयोग को अनिवार्य किया है। इस बहस में कहा जा रहा है कि बहुत सारे संक्रमित लोगों में संक्रमण के लक्षण नहीं दिखे हैं, ऐसे में अनजाने रूप में फैलने वाले संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए मास्क ज़रूरी है। कोरोना से बुरी तरह प्रभावित अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी मास्क का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया गया है।
जहां सामाजिक दूरी मुश्किल, वहां जरूरी है मास्क
अमरीकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने लोगों से उन सार्वजनिक जगहों पर घरेलू मास्क पहनने की सिफारिश की है, जहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल हो। यह सलाह कम्युनिटी ट्रांसमिशन की आशंका वाले जगहों को ध्यान में रखकर दी गई है। भारत जैसे मुल्क में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट्स (पीपीई) की कमी है और सर्जिकल मास्क खरीदना हर किसी के लिए संभव नहीं है, ऐसे में शैलजा गुप्ता के मुताबिक घरेलू मास्क से लोगों को बचाने में मदद मिलेगी और इसका हर कोई आसानी से उपयोग कर सकेगा।
आईआईटी की पूर्व छात्रा हैं शैलजा
शैलजा गुप्ता भारत के शीर्ष इंजीनियरिंग कॉलेज इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी की पूर्व छात्रा हैं। वह देश के सबसे अभावग्रस्त इलाक़ों में भी काम कर चुकी है। शैलजा मुंबई के सबसे बड़े झुग्गी झोपड़ी वाले धारावी में आउटरीच ऑफिसर के तौर पर पर काम कर चुकी हैं। इस इलाक़े में उन्होंने गरीब तबके के बच्चों को सस्ते माइक्रोस्कोप से जीवाणुओं के बारे में जागरूक किया ।
घर-घर पहुंचाया मास्क
जब भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने लगा, तो शैलजा गुप्ता ने घर पर मास्क बनाने के तरीक़े का एक मैन्युएल तैयार किया और भारत की 22 आधिकारिक भाषाओं में उसका अनुवाद कराया। इसके अलावा कोरोना संक्रमण के खिलाफ हर रणनीति में वह घरेलू मास्क को ज़रूरी हिस्से के तौर पर अपनाने की सलाह देती रहीं। अपने तर्क को दमदार बनाने के लिए शैलजा अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में मास्क के इस्तेमाल से जुड़े शोध पत्रों का हवाला भी देती हैं। चेक गणराज्य और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में घरेलू मास्क का इस्तेमाल लगातार किया जा रहा है। चेक गणराज्य में तो मास्क के बिना बाहर निकलना गैर कानूनी है।
सस्ता उपाय है घरेलू मास्क
शैलजा गुप्ता के मुताबिक़ घरेलू मास्क किसी भी रंग के नए या पुराने सूती कपड़े से बनाया जा सकता है। उनके मुताबिक़ नौ गुना सात इंच की साइज में काटे गए कपड़े में चार डोरियां लगाने भर से फेस मास्क तैयार हो जाता है। इस घरेलू मास्क के ज़रिए मुंह और नाक को ढका जा सकता है। घरेलू मास्क को नियमित तौर पर साबुन और पानी से धोते रहना चाहिए। इसे हमेशा लगाया जा सकता है। अगर दो मास्क बना लिए जाएं तो बेहतर रहेगा। दूसरी ओर प्लास्टिक फैब्रिक से बने डिस्पोजेबल सर्जिकल मास्क की क़ीमत दस रुपए है। डॉक्टरों और नर्सों के इस्तेमाल वाले एन95 मास्क की कीमत किसी दिहाड़ी मज़दूर के एक दिन की आमदनी से भी ज्यादा 500 रुपए के करीब है। भारत सरकार ने यह भी कहा है कि देश के 27 राज्यों के करीब 78 हजार स्वयंसेवी समूहों द्वारा दो करोड़ घरेलू मास्क तैयार कर लिए गए हैं। जिन्हें वितरित किया जा रहा है।
देश को एक अरब मास्क की जरूरत
शैलजा के अनुसार देश को जल्दी ही ऐसे एक अरब मास्क की जरूरत होगी। देश के अखबार समूह ने लोगों से अपना मास्क खुद बनाने की अपील करते हुए मास्क इंडिया अभियान ही शुरू कर दिया है। अधिकारियों के मुताबिक इस अभियान का पूरा श्रेय शैलजा गुप्ता को जाता है। भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन के अनुसार फेस मास्क की जरूरत को लेकर शैलजा की सोच स्पष्ट थी। उन्होंने अपनी टीम से एक प्रभावी मैन्युएल तैयार कराया। इस अभियान को आगे ले जाने को लेकर उनमें दृढ़ता थी, उनकी कोशिशों के चलते परिणाम साकारात्मक रहे और लोग घरेलू मास्क को खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे जनता और सरकार दोनों को फायदा है। शैलजा इसे घर-घर में लोकप्रिय बनाने में जुटी हुई हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.