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कौन थीं शुकंतला देवी, जिनका किरदार विद्या बालन ने निभाया

Published - Thu 06, Aug 2020

हाल ही में विद्या बालन की एक मूवी रिलीज हुई है। जिसमें उन्होंने शकुंतला देवी का किरदार निभाया है। आइए जानें, आखिर कौन थीं शकुंतला देवी। जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा, फिर भी गणित के सवालों को चुटकियों में हल कर देती थीं। इस कारण उन्हें मानव कंप्यूटर भी कहा जाता है।

नई दिल्ली। चार नवंबर 1929 में एक कन्नड़ परिवार के घर एक बच्ची ने जन्म लिया था। हस्तविद्या के जानकार घर के ही एक बुजुर्ग ने इस बच्ची की हथेली देखते हुए कहा था कि इसे भगवान का वरदान मिला हुआ है। परिवार ने सोचा शायद बेटी बड़ी गायिका या नृत्यांगना बनेगी,  लेकिन उस समय यह कोई समझ नहीं पाया कि शकुंतला देवी बड़ी होकर परिवार ही नहीं देश का नाम भी ऊंचा करेंगी। वो भी एक ऐसे विषय में जिसे लड़कियों की समझ से दूर माना जाता है। एक गणितज्ञ, ज्योतिषी, लेखिका, बांसुरी वादक ऐसी खूबी किसी विलक्षण प्रतिभा वाले ही व्यक्ति में ही हो सकती है। गणितज्ञ ऐसी कि उन्होंने 13 अंक वाले दो नंबरों का गुणन केवल 28 सेकंड में बता कर 1982 में अपना नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में दर्ज करा लिया था। उनकी ज्योतिष विद्या से अपने भविष्य की राह तलाशने के लिए बड़े-बड़े नेता उनसे सलाह लेते थे और वैज्ञानिक उनकी क्षमता को समझने के लिए सवालों की झड़ी लगा देते थे। 21 अप्रैल 2013 को उनका निधन हो गया। 

विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं
कहते हैं शकुंतला की गणित में इस विलक्षण प्रतिभा को उनके पिता ने तीन साल की उम्र में ही पहचान लिया था जब वह उनके साथ ताश खेल रही थीं। छोटी उम्र होने के बावजूद जिस गति से वे अंक याद कर पा रही थी वो पिता को अद्भुत लगा और जब वे पांच साल की हुईं तो वे गणित के सवाल ही सुलझाने लगी।  एक साझात्कार में उन्होंने बताया था कि पड़ोस के बच्चे भी उनकी मदद मांगने आते थे और धीरे-धीरे लोगों तक उनकी इस विशेष प्रतिभा की खबर पहुंचने लगी। शकुंतला के मुताबिक उन्होंने चार साल की उम्र से पहले ही यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर में एक बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लिया और यही उनकी देश-विदेश में गणित के ज्ञान के प्रसार की पहली सीढ़ी बनी।

स्कूली पढ़ाई से रहीं दूर 
शकुंतला देवी के पिता सर्कस में करतब दिखाते थे। शकुंतला कभी स्कूल नहीं गई थी। एक बार जब उसने पूछा गया था कि आपने लंदन में गणित के सवाल को क्रमवार लिखकर समझाया लेकिन आप स्कूल तो गई नहीं हैं, तो इसके जवाब में उन्होंने कहा था, यही तो बात है न , मैं अंग्रेज़ी भी बोलती हूं लेकिन मैंने कभी स्कूल में पढ़ाई नहीं की। मैंने अंग्रेज़ी में उपन्यास भी लिखे हैं। तमिल में मैंने कहानियां भी लिखी हैं लेकिन कभी तमिल की तालीम नहीं ली। जब ये पूछा गया कि आपको भाषा भी ऐसे ही आ गई तो उनका कहना था, "भाषा तो मैं बात करते-करते सीख गई। हिंदी मुझे पढ़नी लिखनी तो नहीं आती लेकिन मैं बात कर लेती हूं। मैंने कोई पढ़ाई नहीं की है बस मुझे ये सब अभ्यास से आ गया था।

सेकेंड में देतीं थी जवाब
अपनी प्रतिभा को भगवान की देन बताने वाली शकुंतला देवी गणित को एक कॉन्सेप्ट और लॉजिक मानती थी और इसे दुनिया की सच्चाई मानती थी। उन्होंने अपने इस हुनर का प्रदर्शन दुनिया भर के कॉलेज, थिएटर, रेडियो और टेलीविज़न शो पर भी किया। अमेरिका में 1977 में उन्होंने कंप्यूटर से मुकाबला किया। 188132517 का घनमूल बताकर उन्होंने जीत हासिल की थी। 1980 में लंदन के इंपीरियल कॉलेज में 13 अंकों वाली दो संख्या चुनी गई। वो नंबर थे 7,686,369,774,870 और 2,465,099,745,779, इनका गुणनफल निकालना था। शकुंतला देवी ने इसका जवाब तुरंत बता दिया। इसी तरह लंबी-लंबी गणनाओं से सबको हैरान कर देने वाली शकुंलता पर 1988 में कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान के प्रोफ़ेसर आर्थर जेंसन ने अध्ययन किया था।  जेंसन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उनके नोटबुक पर उत्तर लिखने से पहले ही शकुंतला जवाब दे देती थीं। 

'मानव कंप्यूटर' कहा जाता है
शकुंतला देवी के गणित को ज्ञान को देखते हुए उन्हें मानव कंप्यूटर कहा जाता था। उनके ज्योतिष ज्ञान के भी लोग कायल थे और उनके अनुसार रुस और चीन के अलावा वह पूरी दुनिया घूम चुकी थीं। वह भगवान में पूर्ण आस्था रखती थीं। 

सितारवादक रविशंकर थे पसंद
एक साझात्कार में उन्होंने सितार वादक से जुड़ा किस्सा सुनाते हुए कहा था कि एक बार मैं मुंबई एयरपोर्ट पर बैठी थी और बहुत थकी हुई थी। मेरी फ्लाइट भी देर रात की थी। मेरे बगल में भी एक व्यक्ति बैठा हुआ था जो काफी थका हुआ लग रहा था और उनके पास सितार था। मैंने पूछा कि ये क्या है? उस व्यक्ति ने मुझे जवाब दिया कि ये सितार है। मैंने कहा कि मुझे सितारवादक रवि शंकर बहुत पसंद हैं और अगर तुम्हें भी सितार इतना ही पसंद है तो तुम्हें रवि शंकर से सितार सीखना चाहिए। इस पर उन्होंने मुझे जवाब दिया कि मेरा ही नाम रवि शंकर है और हम दोनों मुस्कराने लगे। जब जहाज तक जाने के लिए वे बस में चढ़े तो रवि शंकर ने पूछा - मे आई नो योर नेम प्लीज। तो उन्होंने जवाब दिया था - शकुंतला देवी।

समलैंगिकता पर लिखी किताब
शकुंतला देवी गणित के अलावा कुकरी पर भी किताबें लिख चुकी हैं। उन्होंने वर्ष 1977 में दी वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्शुअल्स किताब लिखी थी, जिसे भारत में समलैंगिकता पर पहली किताब भी कहा जाता है।