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गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा दिलाने की मुहिम छेड़ने वाली समीना बानो

Published - Fri 18, Oct 2019

लखनऊ की समीना बानो ने अमेरिका में अच्छी खासी नौकरी छोड़कर देश के गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की मुहिम शुरू की। अभी तक शमीना बीस हजार बच्चों का प्राइवेट स्कूल में दाखिला करवा चुकी हैं। उनकी ही कोशिशों के कारण सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को ‘माई स्कूल, माई वॉयस’ का अधिकार मिला है।

लखनऊ। प्राइवेट स्कूल में शिक्षा का सपना गरीब तबके के बच्चों के लिए एक सपना ही होता है। किसी तरह स्कूल में दाखिला मिल भी जाए, लेकिन मंहगी फीस देना उनके बस की बात नहीं होती। जबकि इससे उलट तो देश में लाखों बच्चे ऐसे हैं, जो शिक्षा से वंचित ही रह जाते हैं। इन बच्चों की ओर ध्यान सबका जाता है, लेकिन कोई कुछ करता नहीं है। खासकर अमेरिका जैसे देश में नौकरी करने वाले लोग अमेरिका की चमक-दमक और अच्छी सैलरी छोड़कर आना ही नहीं चाहते, लेकिन लखनऊ की समीना बानो ने ऐसा किया। उन्होंने अमेरिका की नौकरी भी छोड़ी और एक अभियान चलाकर गरीब बच्चों का प्राइवेट स्कूलों दाखिला दिलाकर दिखा दिया कि अगर कुछ करने की ठान ली जाए, तो कोई भी राह मुश्किल नहीं होती। समीना के पिता एयरफोर्स में ऑफिसर थे। इसी कारण समीना की पढ़ाई देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई। कम्प्यूटर इंजीनियर समीना ने पहले आईआईएम बेंगलुरु से एमबीए किया और उसके बाद एमएनसी कंपनी में काम करने के लिये वो अमेरिका चली गई। शुरूआत में उन्हें अमेरिका में नौकरी और जिंदगी काफी अच्छी लगी, मन ही मन वह खुद से कहतीं कि वतन वापिस लौट जाना चाहिए। वो सोचतीं कि मेरे माता-पिता ने इतनी अच्छी शिक्षा दी। इस कारण आज मैं यहां तक पहुंची हूं, लेकिन भारत में आज भी बहुत सारे ऐसे बच्चे हैं जिनको अच्छी शिक्षा तो क्या, वो स्कूल भी नहीं जा पाते हैं। इसी सोच के साथ साल 2012 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी और वापस अपने वतन लौट आईं। भारत आने के बाद उन्होंने अपनी इच्छा माता-पिता से जाहिर की। हालांकि विदेशी नौकरी छोड़कर आने के कारण परिजन कुछ खफा तो थे, लेकिन उनके नेक विचार जानकार उनका गुस्सा भी दूर हो गया। परिवार पुणे में रहता था, तो उन्होंने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए यहीं कुछ करने की ठानी। इसी बीच एक दोस्त ने चुनौती दी कि अगर करना है तो उत्तर प्रदेश में करके दिखाएं। समीना ने इस चुनौती को स्वीकार किया और लखनऊ आ गईं। यहां उनके एक रिश्तेदार रहते थे। कुछ दिन बाद उन्होंने एक किराये का घर लिया और लखनऊ में शिक्षा की हालत जानने दौरान उनकी मुलाकात लखनऊ के विनोद यादव से हुई। वे भी इसी क्षेत्र में काम कर रहे थे। 
दोनों ने मिलकर इस अभियान को आगे बढ़ाने की ठानी। सबसे पहले उन्होंने शुरुआत झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले तकरीबन पचास बच्चों को पढ़ाने के साथ की। इसी दौरान उन्हें लगा कि अगर वो इस काम को आगे नहीं बढ़ाएंगी, तो और बच्चों को लाभ नहीं मिलेगा और उन्होंने साथी विनोद के साथ मिलकर  ‘भारत अभ्युदय फाउंडेशन’ की स्थापना की। संस्था के माध्यम से वह सरकार के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए सिस्टम और पॉलिसी में तालमेल बनाकर उसे सही तरह से लागू करवाने के लिए काम करने लगी। ‘शिक्षा के अधिकार कानून’ के मुताबिक निजी स्कूलों को अपने यहां पच्चीस प्रतिशत गरीब बच्चों को दाखिला देना जरूरी होता है, जो आमतौर पर स्कूल वाले नहीं करते। उन्होंने इसी दिशा पर काम करना शुरू किया। इसका असर ये हुआ कि कुछ ही महीनों में वह यूपी के पचास जिलों के बीस हजार बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने में कामयाब रहीं। समीना छात्रों को वोकेशनल ट्रेनिंग भी कराती हैं। उन्होंने यूनिसेफ के साथ मिलकर यूपी के  150 निजी स्कूलों के शिक्षकों और प्रिसंपल के साथ वर्कशॉप भी की है। इस वर्कशॉप का मकसद अमीर-गरीब बच्चों के बीच का फासला कम करना था। वह  क्राउड फंडिग के जरिये मैं संस्था का आर्थिक खर्च
जुटाती हैं। उन्होंने सामाजिक एकता के लिए ‘बडी’नाम से एक मुहिम शुरू की गई है। जिसके जरिये गरीब बच्चों को ऐसे परिवारों के साथ जोड़ा गया है जो आर्थिक तौर पर सम्पन्न हैं और इस परिवार के सदस्य इन बच्चों की पढ़ाई में मदद करते हैं।