वर्ष 1984 में एक बड़ी चूक संदीप कौर ने की, वह बब्बर खालासा के झांसे में आकर उससे जुड़ गईं और आतंक की राह पर चल पड़ीं। लेकिन उग्रवाद की आंधी ने उनसे न केवल उनका पति छीन लिया, बल्कि उन्हें सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया। जेल जाने के बाद संदीप को अपनी गलती का अहसास हुआ और उनकी जिंदगी ने यू-टर्न ले लिया। संदीप ने फैसला किया कि जेल से निकलने के बाद वह अब किसी और का परिवार नहीं बिखरने देंगी। किसी बच्चे को बेसहारा दर-दर की ठोकरें नहीं खाने देंगी। अपने फैसले पर अडिग संदीप आज सैकड़ों बेसहारा बच्चों की अभिभावक की भूमिका निभा रहीं हैं।
नई दिल्ली। परिवर्तन की बयार में हम कई बार अपने जज्बातों पर काबू नहीं रख पाते। ऐसे में सही-गलत का फैसला करने से भी चूक होना लाजिमी है। लेकिन बाद में जो अपनी भूल को सुधार कर दूसरों की जिंदगी संवारने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दे उसे ही समाज में मिसाल कहा जाता है। वर्ष 1984 में एक ऐसी चूक की थी संदीप कौर ने। इस दौर में पंजाब में खालिस्तान की मांग को लेकर अलगाववादियों का ग्रुप बब्बर खालासा काफी सक्रिय था। वह युवाओं को भड़का कर संगठन से जोड़ने के लिए भारत के खिलाफ तरह-तरह के दुष्प्रचार कर उनके हाथों में हथियार थमा रहे थे। बब्बर खालासा के झांसे में आकर सैकड़ों युवाओं ने बंदूकें भी उठा ली थीं। इन्हीं युवाओं में से एक थीं संदीप कौर। वह उग्रवादी संगठन से जुड़ी और आतंक की राह पर चल पड़ीं। यह तक नहीं सोचा कि आगे क्या होगा। अपनी जिंदगी का सबसे अहम फैसला यानि शादी करने का फैसला भी संदीप ने जज्बाती होकर ही उठाया। लेकिन उग्रवाद की आंधी ने उनसे न केवल उनका पति छीन लिया, बल्कि उन्हें सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया। जेल जाने के बाद संदीप को अपनी गलती का अहसास हुआ और उनकी जिंदगी ने यू-टर्न ले लिया। संदीप ने फैसला किया कि जेल से निकलने के बाद वह अब किसी और का परिवार नहीं बिखरने देंगी। किसी बच्चे को बेसहारा दर-दर की ठोकरें नहीं खाने देंगी। अपने फैसले पर अडिग संदीप आज सैकड़ों बेसहारा बच्चों की अभिभावक की भूमिका निभा रहीं हैं। उन्हें मां-बाप, भाई-बहन और दोस्त जैसा प्यार देकर उनकी जिंदगी संवार रही हैं।
बब्बर खालसा से जुड़ने के लिए की शादी
संदीप कौर बहुत की कम उम्र में चरमपंथी बब्बर खालसा संगठन से जुड़ गईं। हालांकि उस दौर में बब्बर खालसा की पकड़ पंजाब में उतनी नहीं थी, लेकिन संगठन तेजी से अपना विस्तार कर रहा था। उसका फोकस ऐसे युवाओं पर था, जो न मरने में हिचकें और न मारने में। संगठन ने खुद से जुड़ने वालीं महिलाओं के लिए एक शर्त रखी थी। इस शर्त के मुताबिक संगठन में शामिल होने से पहले महिला को संगठन के ही किसी युवक से शादी करनी होगी। लिहाजा, संदीप ने बिना कुछ सोचे-समझे बब्बर खालसा में सक्रिय सदस्य धर्म सिंह काश्तीवाल से शादी कर ली। हालांकि यह शादी बहुत लंबी नहीं चली और 1992 में पुलिस ने धर्म सिंह को एक मुठभेड़ में मार गिराया। हालांकि तब तक संदीप एक बेटे की मां बन चुकी थीं।
जेल में मासूम बेटा मिलने आया तो बदल गई सोच
पति की मौत के कुछ महीने बाद ही संदीप कौर को हथियारों की आपूर्ति के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वह चार साल के जेल की सजा संगरूर जेल में काट रही थीं। इस दौरान उनका एक रिश्तेदार उनके मासूम बेटे को लेकर उनसे मिलाने के लिए जेल आता था। सलाखों के पीछे से इस तरह बेटे मुलाकात के दौरान एक बाद संदीप के दिमाग में यह विचार आया कि चरमपंथी गतिविधियों में लोगों के परिवार का, उनके बच्चों का क्या हाल होता होगा, उनकी देखरेख कौन करता होगा, माता-पिता के मारे जाने या फिर जेल हो जाने पर बच्चों को लालन-पालन कौन करता होगा। इन्हीं सवालों ने संदीप कौर की जिंदगी और सोच दोनों को बदल कर रख दिया। उन्होंने जेल में ही फैसला किया कि जेल से बाहर आने के बाद अनाथ बच्चों के लिए काम करूंगी। वर्ष 1996 में संदीप जेल से बाहर आईं, तो उनके उनकी जिंदगी का मकसद और मंजिल दोनों साफ थी। संदीप ने सुल्तानविंड में अपने पति धर्म सिंह के नाम पर ‘भाई धर्म सिंह खालसा चैरिटेबल ट्रस्ट’ की शुरुआत की। वो बच्चों को ट्रस्ट में लाकर, उनका दाखिला शिक्षण संस्थानों में कराने लगीं।
बच्चियों को न केवल आश्रय दिया, बल्कि उच्च शिक्षा भी दिलाई
संदीप कौर ने ‘भाई धर्म सिंह खालसा चैरिटेबल ट्रस्ट’ में 250 से ज्यादा लड़कियों को न केवल आश्रय दिया, बल्कि उनका दाखिला उच्च शिक्षण संस्थानों में कराकर उन्हें डॉक्टरी, इंजीनियरिंग और लॉ की पढ़ाई भी कराई। इनमें से कई बेटियां आज भी कई कॉलेजों में पढ़ाई कर रही हैं। संदीप ने यहीं से अपनी जिम्मेदारी से किनारा नहीं किया, इन बच्चियों की शादी भी कराई, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित किया जा सके। यह क्रम आज भी अनवरत जारी है। अब पंजाब और केंद्र सरकार भी संदीप कौर के सराहनीय कार्य में उनके साथ कदम से कदम मिलाकर सहयोग कर रही है। संदीप के कार्यों को देखते हुए वर्ष 2015 में निर्मला सीतारमण ने उन्हें ‘सबसे प्रेरणादायक महिला’ का खिताब से नवाज चुकी हैं। भाई धर्म सिंह ट्रस्ट बच्चियों के साथ तकरीबन 1000 अनाथ बच्चों की देखरेख और पढ़ाई का जिम्मा वर्तमान में उठा रहा है। संदीप कौर ने एक बच्ची को गोद भी ले रखा है।
खुद के संघर्ष पर लिख चुकीं हैं 2 किताबें
संदीप कौर ने अपने संघर्ष पर आधारित दो किताबें भी लिखी हैं। पहली किताब का नाम ‘बिखरे पैंडे’ और दूसरी का नाम ‘ओड़क सच’ है। इन किताबों में संदीप ने यह बताने की कोशिश की है कि चरमपंथी दौर के कारण किस तरह की दिक्कतें उन्हें झेलनी पड़ीं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.