वैसे तो हिंदू समाज में महिलाएं श्मशान घाट नहीं जातीं लेकिन मुंबई पुलिस में नायक के पद पर कार्यरत संध्या शिलवंत इस संक्रमण के दौर में लोगों के अंतिम संस्कार कर रही हैं। उन्हें यह पुण्य का काम लगता है और वह कभी घबराती नहीं हैं। वह एक कोरोना पॉजिटिव का भी अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। एक ही दिन में चार लोगों को मुखाग्नि देने के बाद वह सुर्खियों में आईं। इसके बाद आजकल हर तरफ उनकी चर्चा हो रही है।
नई दिल्ली। संध्या न केवल दिलेर हैं बल्कि एक सकारात्मक सोच वाली महिला भी हैं। वह मुंबई पुलिस में नायक के पद पर तैनात हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी उनकी तारीफ करते हुए ट्वीट किया था कि शाहूनगर पुलिस स्टेशन की कॉन्स्टेबल संध्या शिलवंत ने एक दिन में चार लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया। इस तरह से उन्होंने इस संक्रमण काल में आठ लोगों के अंतिम संस्कार किए हैं। अगर आपके मन में सोशल कमिटमेंट हो तो हर तरह के भय के दरवाजे बंद हो जाते हैं, उनके ये शब्द सिर्फ पुलिस विभाग के लिए ही नहीं सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। देशमुख के इस ट्वीट के बाद उनकी खूब प्रशंसा हो रही है।
एक कोरोना पॉजिटिव सहित एक दिन में चार अंतिम संस्कार करके आईं सुर्खियों में
संध्या शाहू नगर पुलिस थाने में एक्सिडेंटल डेथ रिपोर्ट या एडीआर का काम संभालती हैं। वह सुर्खियों में तब आईं जब कोविड-19 के दौर में उन्होंने एक दिन में चार शवों का अंतिम संस्कार किया, जिसमें से एक कोरोना पॉजिटिव भी पाया गया था। वह बताती हैं कि 14 मई के दिन उन्होंने चार शवों का अंतिम संस्कार किया। इसके अलावा 24 अप्रैल को 2 और 26 मई को दो का अंतिम संस्कार किया। इस तरह संक्रमण काल में वह अब तक आठ लोगों को अग्नि दे चुकी हैं। हालांकिक एडीआर में वह दो साल से काम कर रहीं हैं। इस कार्यकाल में वह अभी तक कुल 20 लोगों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं।
किसी बात से नहीं लगता डर, रिपोर्ट आई निगेटिव
संध्या कहती हैं कि मैं अपने विचारों को सकारात्मक रखती हूं, बस। मैं जिस विभाग में हूं इसके लिए मुझे लोकमान्य तिलक अस्पताल जाना ही पड़ता है। वहां हर तरह के केस आते हैं जिसमें कोविड के भी होते हैं और संक्रमित होने का डर भी रहता है लेकिन ऐसे डर के जिंदगी तो नहीं जी जा सकती। संध्या बताती हैं कि महाराष्ट्र में केस बढ़े हैं। ऐसे में हम पुलिसकर्मियों के भी टेस्ट करवाए गए, जिसमें कई पुलिसकर्मियों में टेस्ट पॉजिटिव आए और जब मेरा टेस्ट हुआ तो वो निगेटिव आया। मैंने दिमाग में आने ही नहीं दिया कि मुझे कोरोना हो सकता है। अब जब पुलिसकर्मियों में मामले सामने आ रहे हैं, इससे स्टाफ की कमी भी हो रही है, ऐसे में अगर मैं डर जाऊंगी और ऑफिस आना बंद कर दूंगी तो कैसे चलेगा? इस डर से एहतियात के साथ बाहर निकलना होगा, तभी जीत मिलेगी।
काम के बारे में बच्चों से नहीं करती बात, लेकिन एक दिन बेटी ने कहा कांग्रेट्स
संध्या कहती हैं कि मैं अपने बच्चों से अपने काम के बारे में कोई बात नहीं करतीं, लेकिन जिस दिन चार शवों का अंतिम संस्कार करने पर फोटो अखबार में आई तो बेटी (13 साल) तो पता चल गया तो कहा ''कांग्रेट्स'' मम्मी।
किसी पुण्य से कम नहीं यह काम
संध्या बताती हैं कि उनके पिता और ससुर दोनों पुलिस में काम कर चुके हैं इसलिए उनकी मां और सास भी उनके काम को समझती हैं क्योंकि ये कोविड का दौर हैं तो घर जाने के बाद साफ सफाई का भी विशेष ख्याल रखती हूं। किसी को मुखाग्नि देना मेरे लिए यह एक पुण्य का काम है। शायद पिछले जन्म का कुछ होता है तभी आपको ये सौभाग्य मिलता है। नहीं तो जिन लोगों का कोई नहीं होता आप उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं जो किसी पुण्य के काम से कम नहीं होता। वो कहती हैं कि अपने किसी रिश्तेदारों की मौत के दौरान वह कभी श्मशान घाट नहीं गईं क्योंकि हिंदू समाज में महिलाएं श्मशान नहीं जातीं, लेकिन अब ये मेरी ड्यूटी है। कोविड-19 के दौर में जब ऐसी भी खबरें आईं कि, कुछ मामलों में परिवारों वालों ने संक्रमित व्यक्ति का शव लेने से इंकार कर दिया या उनको अपने इलाके में दफनाने का विरोध भी किया। वहीं संध्या शिलवंत जैसे लोग भी हैं, जिनके लिए सबसे पहले फर्ज है। सबको इनसे सीख लेनी चाहिए।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.