संगीता गाला बोल नहीं सकतीं, लेकिन संगीता फिल्मी कलाकारों को बोलना सिखाती हैं। साइन लैंग्वेज सिखाने में माहिर संगीता कई नामी फिल्मी कलाकारों को फिल्मी किरदारों में फिट बैठने के लिए साइन लैंग्वेज सिखा चुकी हैं। आज बॉलीवुड में वो एक जाना पहचान नाम हैं।
नई दिल्ली। बॉलीवुड की कई ऐसी हिट फिल्में हैं, जिसमें किरदार बोलने सुनने में अक्षम होते हैं। इन किरदारों द्वारा किया गया अभिनय बिल्कुल वैसा ही है, जैसे वे असली में मूक बधिर हो। ऐसी हिट फिल्मों में संजय लीला भंसाली की खमोशी, ब्लैक, देवदास, गुजारिश, सांवरिया, रामलीला, अनुराग बासु की बर्फी, अनुराग कश्यप की मुक्काबाज शामिल है। इनमें साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल किया गया है। इन फिल्मों के लिए कलाकारों को किरदार में ढ़ालने वाली शख्सियत का नाम है संगीता गाला। संगीता न सुन पाती हैं न बोल पाती हैं, लेकिन अपनी मेहनत के दम पर आगे बढ़ने वाली संगीता का बॉलीवुड इंडस्ट्री में नाम है।
गुजराती परिवार से ताल्लुक रखने वाली संगीता के पिता काम की तलाश में मुंबई आ गए थे। वे मुंबई में फुटपाथ पर चाय बेचा करते थे। पिता ने मेहनत के दम पर एक छोटी दुकान फिर एक रेस्तरां खोला। हालात सुधरे तो उन्होंने शादी की। परिवार में पहला बेटा पैदा हुआ और उसके दस साल बाद संगीता ने जन्म लिया। जब संगीता दो साल की थीं, तो उनको बोलने में परेशानी होती थी, तब चिकित्सकों को दिखाने पर पता चला कि संगीता सुन नहीं सकती और बोलने में भी परेशानी होती है। चिकित्सकों ने बताया कि आपके बच्चे को डिस्लेक्सिया है जिसके कारण पढ़ने-लिखने में कठिनाई होगी। परिवार ने हार नहीं मानी और उनका दाखिला अंग्रेजी स्कूल में करवाया। बेटी को अच्छी परवरिश दी। संगीता होनहार थीं और स्कूल के दिनों में डांस, म्यूजिक, ड्रामा और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के कई अवार्ड जीते, खेल-कूद में भी मैंने अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी मैंने कई अवार्ड जीते। संगीता खेलकूद में अच्छी थीं, तो खेलों में भी आगे बढ़ती रहीं और 1985 में उन्होंने लॉस एंलेलेस में डेफ ओलंपिक में भारत की ओर से हिस्सा भी ले चुकी हैं। स्कूलों के दिनों से उनका सपना था कि बॉलीवुड में कुछ करें, लेकिन अपनी लाचारी के कारण कभी उस दिशा में आगे बढ़ने का नहीं सोचा। फिल्में हमेशा संगीता को अपनी ओर खींचती थीं। इसी जूनून ने उन्हें फिल्मों के और नजदीक ला दिया। नाना पाटेकर और मनीषा कोईराला की चर्चित फिल्म खामोशी के लिए एक प्रशिक्षक की तलाश थी, तो पता चलने पर संगीता गाला नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हियरिंग हैंडीकैप्ड गईं, लेकिन वहां के प्रमुख ने उन्हें मना कर दिया। लेकिन नाना पाटेकर ने उनके जूनून को समझा और एक मौका देने का आग्रह किया और फिर उन्हें फिल्म मिल गई। उन्होंने नाना पाटेकर, सीमा बिस्वास और मनीषा कोइराला को संकेत भाषा (साइन लैंग्वेज) सिखानी शुरू की। सेट पर एक दिन संगीता का बेटा आया, तो संजय लीला भंसाली ने पूछा कि क्या वो उनकी फिल्म में काम करेगा, क्योंकि उन्हें एक लड़के की तलाश थी, जो सीमा और नाना पाटेकर के बेटे का किरदार निभा सके। इस तरह काम का सिलसिला शुरू हुआ।
परेशानियों से जूझती रहीं लेकिन हारी नहीं
संजय लीला भंसाली ने हम दिल दे चुके सनम के के हिट होने पर एक पार्टी रखी और संगीता और उनके बेटे को भी बुलाया। संजय को पता चला की संगीता की माली हालत ठीक नहीं है, तो उन्होंने संगीता को अपने साथ काम करने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि वो देवदास बना रहे हैं, संगीता ने पूछा कि क्या सांकेतिक भाषा सिखानी है, संजय ने कहा कि मुझे क्रिएटिव लोगों की जरूरत है, तो तुम क्रिएटिव हो। इस तरह वो संजय के साथ जुड़ गईं। देवदास के सेट पर लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया तो संगीता ने सोच लिया कि वो काम नहीं करेगी, लेकिन संजय ने उन्हें समझाया कि दुनिया हमेशा अच्छी नहीं होती। सेट पर एश्वर्या और शाहरूख उनका सम्मान करते थे यहां कि तक जैकी श्रॉफ ने उनके बेटे की स्कूल की फीस तक भरी। फिल्म हिट हुई और संगीता ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कई कलाकारों को सिखा चुकी हैं संगीता
ऐश्वर्या राय, अमिताभ बच्चन,रानी मुखर्जी, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, सोनम कपूर, रणबीर कपूर, श्रिया पिलगांवकर, अनुराग कश्यप की अभिनेत्री ज़ोया के साथ को वे फिल्मी किरदार के लिए सांकेतिक भाषा सिखा चुकी हैं। रणवीर कपूर उनके खास दोस्तों में से हैं।
दिव्यांगों को सम्मान दिलाना लक्ष्य
संगीता बॉलीवुड में एक पहचाना जाने वाला नाम हैं। वो हमेशा इस कोशिश में रहती हैं कि मूक-बधिर समुदाय के लोगों के लिए काम करें, उन्हें आगे बढ़ाए। इंडस्ट्री में उन्हें सम्मान और काम दोनों मिले। वे इसके लिए प्रयासरत्त हैं और कई फिल्म संघों के संपर्क में भी हैं। वो एक ऐसा डेटाबेस तैयार कर रही हैं, जो मूक-बधिर हैं लेकिन काबिल हैं और फिल्मों में काम करना चाहते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.