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सारिका ने पोलियो को नहीं बनने दिया बाधा

Published - Thu 09, Jul 2020

ओडिशा की सारिका को दो साल की उम्र में पोलियो हो गया था, लेकिन सारिका ने बीमारी को कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। उनहोंने लक्षय का पीछा करना जारी रखा और आज वह मुंबई में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर के तौर पर कार्यरत हैं।

sarika

नई दिल्ली। ओडिशा का एक छोटा सा कस्बा है काटावांझी। यह कस्बा आधुनिक सुविधाओं से दूर है ही यहां शिक्षा का स्तर भी ज्यादा नहीं है। इस कस्बे में जन्म लेने वाली सारिका आज मुंबई में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर हैं। लेकिन यहां तक पहुंचना सारिका के लिए आसान नहीं है। कड़े संघर्षों से जूझती हुई सारिका की कहानी बेहद प्रेरणादायक है।

चिढ़ाते थे बच्चे
दो साल की उम्र में सारिका को पोलियो हुआ। गांव में योग्य चिकित्सक नहीं था और वो इसका मलेरिया समझकर इलाज करता रहा। इससे सारिका की हालत और बिगड़ गई। सारिका तकरीबन डेढ़ साल तक कोमा की स्थिति में बिस्तर पर ही पड़ी रही। बहुत इलाज के बाद 4 साल की उम्र में उन्होंने चलना शुरू किया। पोलियो की वजह से सारिका को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। बेहद मुश्किलों के बाद उनका स्कूल में दाखिला हुआ था। स्कूल में बच्चों ने उन्हें परेशान करते, ताने मारते, पत्थर तक मारते, लेकिन सारिका  ने हिम्मत नहीं हारी। वो डॉक्टर बनना चाहती थीं पर घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई जा सके। फिर भी सारिका ने बहुत कॉमर्स से ग्रेजुएशन पूरा किया। वो आगे और पढ़ना चाहती थी, तब घर वाले सारिका की शादी करवा देना चाहते थे। पोलियो की वजह से लड़का नहीं मिला। इसी बीच सारिका कोपता चला कि अब सीए के पेपर घर से भी दे सकते हैं। उन्होंने दोबारा पढ़ना शुरू किया। सारिका ने ये परीक्षा दी और टॉप किया।

अफसर बनना था लक्ष्य

सीए सारिका अफसर बनना चाहती थीं। यूपीएससी का एग्जाम देने के लिए घर में विरोध हुआ, लेकिन सारिका परिजनों को मनाने में कामयाब रहीं। परिवार ने उन्हें डेढ़ साल की मोहलत दी। सारिका को आईएएस के बारे में कुछ पता नहीं था। वो आईएएस तो नहीं बन पाईं, लेकिन अपनी मेहत से वो आईआरएस अफसर बन गईं।