तकनीक कमाल की चीज है। इसका सही इस्तेमाल किया जाए तो यह आपके लिए तमाम संभावनाओं दरवाजे खोल देती है। यह बात एकदम सटीक बैठती है उत्तराखंड के टिहरी-गढ़वाल इलाके में रहने वाली शशि रतूड़ी पर। शशि ने सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल कर न केवल अपने लिए बल्कि क्षेत्र की महिलाओं के लिए इनकम की नई राह बना दी। साथ ही अपनी संस्कृति से भी महानगरों के लोगों को रूबरू करा रही हैं।
नई दिल्ली। तकनीक कमाल की चीज है। इसका सही इस्तेमाल किया जाए तो यह आपके लिए तमाम संभावनाओं दरवाजे खोल देती है। यह बात एकदम सटीक बैठती है उत्तराखंड के टिहरी-गढ़वाल इलाके में रहने वाली शशि रतूड़ी पर। शशि ने सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल कर न केवल अपने लिए बल्कि क्षेत्र की महिलाओं के लिए इनकम की नई राह बना दी। साथ ही अपनी संस्कृति से भी महानगरों के लोगों को रूबरू करा रही हैं। शशि ने पहाड़ों पर मिलने वाले ‘पिस्यु लूण’(पहाड़ी नमक) जिस पर पहले स्थानीय लोग अमूमन ज्यादा ध्यान नहीं देते थे और इसे बेकार का सामान कह मुंह फेर लेते थे को ही अपनी आमदनी का जरिया बना लिया। आज वह और तमाम महिलाएं इसी पहाड़ी नमक की बदौलत हजारों रुपये कमा रही हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस बिजनेस के लिए इन महिलाओं को कुछ खर्च भी नहीं करना पड़ता। नमक को तैयार करने के लिए ये आज भी पारंपरिक सिल-बट्टे का ही इस्तेमाल करती हैं।
पढ़ाई के दौरान ही कुछ अलग करने की ठान ली थी
आज भले ही यह सब काफी आसान लगता हो, लेकिन शशि को इसके पीछे सालों मेहनत और लंबा बौद्धिक संघर्ष करना पड़ा है। 'नमकवाली' बिजनेस की नींव सालों पहले देहरादून के एक गांव में रहने वाली लड़की शशि के दिमाग में पड़ चुकी थी। आज 54 साल की हो चुकीं शशि पढ़ाई के दौरान ही सामाजिक गतिविधियों से जुड़ गईं थीं। वह अपने मौसा से काफी प्रभावित थीं। वह भी एक सामाजिक संगठन चलाते थे। शुरुआती दौर में शशि उनके संगठन से जुड़ीं और कई सामाजिक मुद्दों पर काम किया। इनमें पर्यावरण और नारी-सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दे प्रमुख थे।
पहाड़ों पर बदलाव देख बनाई समिति
शशि के मुताबिक जब वह युवा अवस्था में पहुंचीं तो महसूस किया कि पहाड़ों में तेजी से बदलाव हो रहा है। हरे-भरे जंगल वीरान हो रहे हैं। पहाड़ पर रहने वाले लोग अपनी संस्कृति और परम्पराओं से दूर होते जा रहे हैं। इन बदलावों ने शशि को झकझोर कर रख दिया। उन्होंने अपनी संस्कृति को सहेजकर रखने के लिए कुछ अलग करने की ठान ली। इसी दौरान उनकी शादी हो गई, लेकिन उनके इरादों में कोई बदलाव नहीं आया। सोच-विचार की लंबी जद्दोजहद के बाद शशि ने 1982 में महिला नवजागरण समिति की नींव रखी। इस समिति की मदद से ही उन्होंने अलग-अलग मुहिम पर काम किया। इनमें पहाड़ों की संस्कृति और कलाओं को सहेजकर रखना, पर्यावरण को बचाना, ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार के लिए संसाधन मुहैया कराना, इको-होम स्टे के चलन को बढ़ावा देना आदि। इन्हीं तमाम मुहिमों के बीच ‘नमकवाली’ की भी नींव पड़ी, जो आज दर्जनों महिलाओं की अजीविका का प्रमुख साधन बन गई है।
समूह बनने के साथ ही चल पड़ा बिजनेस
'नमकवाली' तकरीबन 12 महिलाओं का समूह है। यह समूह पहाड़ों पर सदियों से बनते आ रहे तरह-तरह के पहाड़ी नमक को खाने लायक बनाती हैं। स्थानीय भाषा में इसे ‘पिस्यु लूण’ कहा जाता है। शुरुआत में जब समूह ने इस नमक को तैयार किया तो संकट यह था कि इसे बेचे कहां। स्थानीय स्तर पर न तो इसके लिए बाजार उपलब्ध था न स्थानीय लोग इसके लिए पैसे देने को तैयार थे। इसके लिए शशि ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और इस नमक का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया। लोगों को इस नमक की खूबियां बताईं। जिन लोगों ने इसे लेने की इच्छा जाहिर की उन्हें ऑनलाइन मार्केटिंग और कूरियर के माध्यम से इसे भेजा। आज यह पहाड़ी नमक देश के बड़े-बड़े महानगरों में भेजा जा रहा है। आर्डर के अनुसार यह नमक तैयार होता है और इसे 50, 100 और 200 ग्राम के पैकेट्स में पैक किया जाता है। नमक को पैक करने, कूरियर करने और मार्केटिंग की पूरी जिम्मेदारी महिला नवजागरण समिति की है। शशि बताती हैं कि फिलहाल नमक उत्तराखंड के कई शहरों के साथ दिल्ली, मुंबई, चेन्नई समेत अन्य मेट्रो शहरों में भेजा जाता है। अब उन्हें 100 ग्राम से लेकर 10 किलो तक के आर्डर एक साथ मिलने लगे हैं। समूह हर महीने तकरीबन 35 किलो नमक बेच रहा है।
भा गया सबको नमक, प्रेरणा बनी रेखा
शशि इस बिजनेस का पूरा श्रेय अपनी सहयोगी रेखा कोठारी को देती हैं। रेखा से ही शशि को पहाड़ी नमक को मार्केट तक पहुंचाने की प्रेरणा मिली। रेखा अपनी शादी से पहले से ही महिला नवजागरण समिति की सदस्य हैं। पहले जब वे समिति की किसी मीटिंग या ट्रेनिंग में जाती तो अपने घर से यह ‘पिस्यु लूण’ ले जाती थीं। समिति में जब शशि और अन्य महिलाओं ने इसे चखा तो उन्हें बहुत पसंद आया। तभी इस नमक को मार्केट में लाने की योजना बन गई। रेखा चंबा इलाके के एक गांव की रहने वाली हैं, उन्होंने यह नमक बनाना अपनी मां से सीखा था। इसे तैयार करने में अलग-अलग तरह की लगभग 10 चीजें डालती हैं। इस नमक को सिलबट्टे पर पीसा जाता है। सामान्य के अलावा स्पेशल आर्डर पर फ्लेवर्ड पिस्यु लूण भी तैयार किया जाता है, जैसे लहसुन वाला नमक, अदरक वाला नमक, भांग वाला नमक आदि।
पिस्यु लूण की खासियत
यह नमक स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है। इसमें सेंधा नमक के साथ ही पहाड़ी जड़ी-बूटियों और पारंपरिक मसालों का उपयोग किया जाता है। इसे सलाद, फल, सब्जी किसी में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.