सत्यभामा को पुलिस वर्दी पहननी थी और गांव के लोग कहते कि क्या करोगी, टीचर बनने की सोचो, लेकिन उन्होंने सबको अनसुना कर अपने दिल की सुनी और अपना मुकाम बनाया।
आगरा। बेटे का अगर कुछ सपना हो तो सब उसकी खूब हौसला अफजाई करते हैं और सफल होने के दस तरीके भी बताते हैं। बिना मांगे सलाह भी देते हैं, लेकिन अगर बेटियां कुछ करना चाहें, तो परिवार से लेकर समाज तक की नजरें टेढ़ी हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही जालौन के कुठौन की रहने वाली सत्यभामा के साथ भी हुआ। उनके पिता आर्मी में थे। पिता की वर्दी की इज्जत और रौब देखकर बचपन में ही सत्यभामा ने ठान लिया कि वो भी खाकी पहनेंगी। फिर चाहें वो सेना की वर्दी हो या पुलिस की। इसी सपने को पूरा करने के लिए वो दिन-रात जुट गईं। अपनी पढ़ाई-लिखाई और घर के कामकाज को निपटाने के साथ-साथ वह पुलिस में जाने के लिए दौड़ भी लगातीं। जब भी वह दौड़ने जातीं, परिवार के साथ-साथ गांव के लोग भी कहते कि तुम क्या पुलिस में जाओगी, शिक्षिका बनना सही रहेगा। आए दिन की रोक-टोक और तानों से से वह परेशान नहीं हुईं, बल्कि उनका इरादा और मजबूत होता गया।
पिता ने दिया साथ
सत्यभामा के पिता आर्मी में थे, तो उन्होंने बेटी को कभी नहीं रोका और हमेशा कहा कि उनका सपना जरूर पूरा होगा। पिता के सपोर्ट से सत्यभामा फूली नहीं समातीं और अपनी तैयारियों को और जीजान से करने में जुट गईं। पुलिस की परीक्षा दी और आज वो पुलिस सेवा में हैं। आगरा के सिंकदरा थाना में सिपाही के पद पर तैनात सत्यभामा का कहना है कि डर के आगे जीत है। अगर आप डरकर रुक गए तो सपने बीच में ही टूट जाएंगे।
ज्वॉइन करने से पहले खुद से पूछा सवाल
जब पुलिस परीक्षा का रिजल्ट आया तो सभ्यभामा ने परीक्षा पास कर ली थी। ये देख उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा, लेकिन उनके मन में एक अजीब सा भय था। चूंकि ग्रामीण क्षेत्र से थीं, तो नौकरी ज्वाइन करने से पहले उन्होंने खुद से ही सवाल किया कि क्या वह भीड़ भरे मेले में ड्यूटी कर पाऊंगी, क्राइम कंट्रोल के लिए रातभर दौड़भाग हो सकेगी, अंदर से आवाज आई, हां। तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। चुनौतियां आईं। कई बार रात में दबिश दी, डर लगा लेकिन इसको खुद ही खत्म किया। दफ्तर के काम सीखे। कई साथियों ने इसमें सहयोग नहीं किया लेकिन हार नहीं मानी। एक ने मना किया तो दूसरे से पूछा, धीरे-धीरे सब सीख लिया और आज - सत्यभामा गर्व से कहती हैं कि मुझे वर्दी से प्यार था और मैंने वर्दी पहनकर सपना पूरा किया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.