भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता कहती हैं कि अभी तक के खेल में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन सामने नहीं आया है। वो अभी इसका इंतजार कर रही हैं। आने वाले दिनों में ये देखने को मिल सकता है।
नई दिल्ली। भारतीय महिला हॉकी टीम में सविता पूनिया एक बेहतरीन गोलकीपर हैं। सविता ने कई मौकों पर भारतीय टीम को जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई है। सविता टीम के लिए हर समय तैयार रहती हैं और हॉकी खेलना ही उनका जीवन है। इस खेल के प्रति उनका जूनून भी काफी है। सविता हॉकी में भारत को ओलंपिक पदक दिलाना चाहती हैं और चाहती हैं कि भारतीय टीम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनें। इसके लिए वो टीम के साथ पूरी मेहनत भी कर रही हैं।
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहती हैं सविता
सविता कहती हैं कि टीम में खेलते हुए उन्होंने बहुत कुछ सीखा है और रोजाना सीखती भी हैं, लेकिन अभी भी उनको इंतजार है कि वो अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें और पुरानी नाकामियों को भुला दें। सविता कहती हैं कि मैं टोक्यो ओलंपिक में टीम के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहती हूं ताकि हम रियो ओलंपिक की नाकामी को भुला सकें। उस समय हम बिल्कुल नए थे और हमने गलतियां की। लेकिन टोक्यो में 2021 में हमारे पास इतिहास रचने का मौका है।’ उन्होंने कहा हम पिछले कई महीनों से मेहनत कर रहे हैं। हम हॉकी खेलने वाली दुनिया की शीर्ष टीमों के खिलाफ खेलने को बेताब हैं। हमने लॉकडाउन के दौरान जो वक्त बिताया है उसने मेरा धैर्य और बढ़ाया। हम साई केंद्र बंगलूरू में साथियों और सपोर्ट स्टाफ के साथ अच्छे में हैं।
की है कड़ी मेहनत
हरियाणा के सिरसा के जोधाकन गांव की रहने वाली सविता ने यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। एक लड़की वो भी हरियाणा की होने के नाते उनको कई तरह के दबावों का सामना करना पड़ा। उनको यहां तक पहुंचाने में दादा ने कड़ी मेहनत की और साथ दिया। दादा महिंदर सिंह ने उनको कभी हारने नहीं दिया। हालांकि शुरुआत में उनको हॉकी से इतना लगाव नहीं था, लेकिन दादा हर समय उन्हें प्रोत्साहित करते थे आखिर में सविता ने गोलकीपिंग को चुना। गांव में रहने वाली और सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली सविता के दादा हमेशा उनको प्रोत्साहित करते थे कि बेटियां घर से बाहर जाएं और कुछ अच्छा करें। बचपन में मां के बीमार पड़ने के दौरान उनका हौसला लगभग टूट सा गया था, लेकिन हारी नहीं मानी। पहली बार उन्होंने सिरसा के एक स्कूल में ट्रायल दिया और उनको राष्ट्रीय शिविर में बुलाया गया। ये 2001 की बात है। 2008 में वो भारतीय सीनियर हॉकी टीम का हिस्सा बनीं, लेकिन गोलकीपर बनने के लिए उनको इंतजार करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कोशिश नहीं छोड़ी और मेहनत करती रहीं। 2013 में उनका ये सपना भी पूरा हुआ।
रिया के प्रदर्शन से ली सीख
2017 एशिया कप जीतने वाली टीम में सविता पूनिया का योगदान सबसे शानदार रहा था। टीम ने शूटआउट में चीन को 5-4 से हराया। उनके प्रदर्शन के दम पर ही 13 साल बाद टीम को स्वर्ण पदक दिलाया। रियो ओलंपिक के खराब प्रदर्शन से सविता ने सीख ली और ठान लिया कि जो गलतियां रियो में की, उन्हें टोक्यो ओलंपिक में नहीं दोहराना है। और अब जब टोक्यो गेम्स को स्थगित कर दिया गया तो ऐसे में सविता को अपने साथियों के साथ फिटनेस पर काम करने और अभ्यास करने के लिए अतिरिक्त समय भी दे दिया है। सविता पुनिया और उनके साथी 1980 के दशक में ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहने वाली भारतीय महिला हॉकी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहराना चाहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.