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सीमा की 'एक रुपया मुहिम’ से बच्चों को मिली शिक्षा

Published - Thu 05, Dec 2019

छत्तीसगढ़ में बिलासपुर की रहने वाली सीमा वर्मा की एक 'एक रुपया मुहिम’ से जहां गरीब बच्चों को शिक्षा मिल रही है, वहीं जरूरतमंदों की मदद भी हो रही है।

नई दिल्ली। आज के समय में एक रुपया कौन लेता है और कौन देता है, लेकिन एक रुपया की कीमत कम नहीं होती। इसी को ताकत बनाकर छतीसगढ़ के बिलासपुर की सीमा आज बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रही हैं। सीमा फिलहाल कानून की पढ़ाई कर रही हैं। इसके साथ-साथ वह समाजसेवा में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेती हैं। सीमा गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करती हैं। इसी के चलते उन्होंने एक मुहिम शुरू की थी, जिसका नाम था 'एक रुपया मुहिम’। इस मुहिम ने आगेचलकर एक अभियान का रूप ले लिया जो जरूरतमंद बच्चों के साथ-साथ असहाय लोगों की मदद भी कर रहा है। इसी मुहिम के तहत सीमा स्कूल, कॉलेज व अन्य स्ंस्थाओं में जाकर बच्चों और शिक्षकों को जागरूक करती हैं और उनसे एक-एक रुपयो लेती हैं। इससे जो भी धन इकट्ठा होता है, उससे वह जरूरतमंदों की मदद करती हैं। अब तक वह पचास से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों की स्कूल फीस दे चुकी हैं।

2016 में शुरू की मुहिम
सीमा ने ये मुहिम अगस्त 2016 में सीएमडी कॉलेज से शुरू की थी। उनकी मुहिम के पहले प्रयास में केवल 395 रुपये इकट्ठा हुए थे। इस चंद राशि से सीमा ने एक सरकारी स्कूल की छात्रा की फीस भरी और उसे कुछ स्टेशनरी खरीद कर दी। उस छात्रा की मदद करते समय उन्हें अहसास हुआ कि कोई भी योगदान छोटा नहीं होता। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि कुछ बड़ा करके ही अच्छा किया जाये, कभी-कभी छोटी-सी कोशिश का भी बड़ा असर हो जाता है।

ऐसे हुई शुरुआत
जब सीमा ग्रेजुएशन कर रहीं थीं, तो उनकी एक दोस्त, जो दिव्यांग थी, उसने ट्रायसाइकिल खरीदने में कॉलेज प्रशासन से मदद मांगी। कॉलेज प्रशासन ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कुछ किया नहीं। तब सीमा ने प्रयास शुरू किया, तो उन्हें पता चला कि दिव्यांगों को ये साइकिल फ्री मिलती है। लेकिन सीमा को ये बात नहीं पता थी। उन्होंने बेहद शरम महसूस की और जानकारी जुटाई। यहां से सीमा को एक नयी दिशा मिली। अपने शिक्षकों के सपोर्ट से उन्होंने जगह-जगह जाकर, खासकर कि शिक्षण संस्थानों में अलग-अलग विषयों पर बात करके युवाओं को सजग बनाने की योजना पर काम किया। सबसे पहले, इस तरह का सेमिनार उन्होंने अपने खुद के कॉलेज में ही किया। इस इवेंट में आने वाले सारे बच्चों से उन्होंने एक-एक रुपया दान करने के लिए कहा। वैसे तो यह सिर्फ एक विचार था कि इस तरह से सभी छात्रों को यह सेमिनार याद रहेगा कि उन्होंने एक रुपया यहाँ दान दिया है। लेकिन एक छोटे-से विचार को सीमा ने मुहिम बना दिया। सीमा ने इस पैसे से 33 बच्चों की मदद की और छात्रों की फीस भरी। वह स्कूलों में जाकर वे मोटिवेशनल स्पीच भी देती हैं। सीमा ने बताया कि पिछले तीन सालों में उन्होंने इस तरह के सेमिनार और अभियान में, एक-एक रुपया करके, दो लाख रुपये इकट्ठा किये हैं। इन रुपयों से वे 33 ज़रूरतमंद बच्चों की स्कूल की फीस के साथ-साथ उनकी किताब-कॉपी आदि का खर्च भी सम्भाल रही हैं। सीमा कहती हैं कि “मैंने अपने कानों से लोगों को मुझे ‘भिखारी’ कहते हुए सुना है। कोई कहता कि देखते हैं कितने दिन तक यह मुहिम चलती है। लेकिन मुहिम चली भी और लोग सहयोग भी कर रहे हैं।