शाहीन ने शिक्षा प्रणाली में असमानताओं को देखा, तो उससे हैरान रह गईं। फिर उन्होंने झुग्गियों और सड़कों पर घूमने वाले बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया।
शाहीन मिस्त्री हैं तो मुंबई की रहने वाली लेकिन, पिता बैंकर थे और एक अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी के लिए काम करते थे। इसलिए बचपन से ही कई देशों में रहने का मौका मिला। इस अलग-अलग देशों में उन्होंने पढ़ाई की। लेबनान, यूनान, इंडोनेशिया, अमेरिका आदि देशों में शाहीन की हाई स्कूल तक की पढ़ाई हुई। जैसे-जैसे शाहीन बड़ी हुईं उन्हें अपनी जन्मभूमि के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ने लगी। इस दौरान उनके मन में एक ही सवाल होता मेरे पास जो कुछ था, उसके लिए मैंने क्या किया है? इन विचारों ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। इस बीच, उन्होंने मुंबई शहर और झुग्गियों के बारे में जानने का फैसला किया। हालांकि वह अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में प्रवेश ले चुकी थीं पर भारत लौटकर दादी के पास रहने का फैसला किया। फिर मुंबई के जेवियर कॉलेज में दाखिला ले लिया। शाहीन ने खाली समय में मुंबई को जानने के घूमना शुरू कर दिया। उन्होंने मुंबई के निचने स्तर को जानने के लिए हर दिन कफ परेड में एक झुग्गी में जाना शुरू कर दिया, जहां एक लड़की उनकी दोस्त बनी। वह कहती हैं मैंने हमेशा देश की शिक्षा प्रणाली में असमानताओं के बारे में सुना था, पर जो मैंने देखा, उससे हैरान रह गई। फिर मैंने पढ़ाई के साथ झुग्गियों और सड़कों पर घूमने वाले बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया। मेरी कोशिश रंग लाई और मुझे इसे अपनी सोच के मुताबिक विस्तार देने में सफलता मिली।
ऐसे हुई शुरुआत
उन्होंने साल 1989 में पहले आकांक्षा केंद्र की स्थापना झुग्गियों में ही की, जिसमें 15 बच्चों को दाखिला दिया और स्वयंसेवकों के रूप में कॉलेज के दोस्तों को नियुक्त किया। यह एक गैर-लाभकारी शिक्षा परियोजना है, जिसमें कम आय वाले बच्चों को शिक्षा दी जाती है। मुंबई और पुणे में आकांक्षा के 60 से ज्यादा सेंटर चलते हैं।
टीच फॉर इंडिया
शाहीन झुग्गियों के अलावा अन्य बच्चों तक उत्कृष्ट शिक्षा की पहुंच आसान बनाना चाहती थी। इसलिए साल 2008 में टीच फॉर इंडिया की स्थापना की। टीच फॉर इंडिया फेलोशिप भारत के सबसे होनहार कॉलेज स्नातकों और युवा पेशेवरों को कम आय वाले स्कूलों में दो साल पढ़ाने और शैक्षिक खाई को पाटने में भूमिका निभाता है।
नानी से मिली प्रेरणा
शाहीन को अपनी शर्तों पर जीने की प्रेरणा नानी से मिली। उनकी नानी उस समय प्रेम विवाह किया था, जब लोगों को इस अवधारणा की समझ तक नहीं थी। उनकी नानी बच्चों को आम तौर पर निषिद्ध चीजों का पता लगाने में मदद करती थीं। वह 75 वर्ष की उम्र में चित्रकार बन गई।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.