यूपी के शाहजहांपुर की अर्शी को सिलिंडर वाली बिटिया के नाम से जाता है। 26 साल की अर्शी कोरोना के इस समय में अपनी स्कूटी पर सिलिंडर रखकर जरूरतमंदों को पहुंचा रही हैं।
नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर में सांसों पर संकट आ गया। देश में ऑक्सीजन की कमी से कोहराम मच गया। ऊपर से ऑक्सीजन की कालाबाजारी और स्टॉक ने जरूरतमंदों को परेशानी में डाल दिया। समय पर ऑक्सीजन न मिलने के कारण कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस दौरान देश के कई इलाकों से ऐसी खबरें आईं, जहां कुछ लोग देवदूत बनकर लोगों की मदद के लिए सामने आए और उनकी जान बचाई। यूपी के शाहजहांपुर की अर्शी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्हें उनके क्षेत्र में ऑक्सीजन वाली बिटिया के नाम से जाना जाता है। अर्शी ने संकट के समय अपनी स्कूटी पर ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर कोरोना मरीजों के घर पर पहुंचाने का काम किया ताकि उनकी जान बचाई जा सके।
पिता की बिगड़ी हालत से लिया सबक
कोरोना संकट के बीच एक दिन अर्शी के पिता की तबियत बिगड़ गई। जांच में पता चला कि वो कोरोना संक्रमित हैं। धीरे-धीरे उनका ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा था। चिकित्सकों ने उन्हें ऑक्सीजन की व्यवस्था करने को कहा। अर्शी की तमाम कोशिशों के बाद भी पिता को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही थी। निराश अर्शी ने एक व्हाट्सएप ग्रुप से मदद मांगी। ये ग्रुप उत्तराखंड की एक समाजसेवी संस्था थी। उन्होंने अर्शी की मदद की और उनके पिता की जान बच सकी। इस घटना ने अर्शी को अंदर तक हिला दिया। तब अर्शी ने तय किया कि व कोविड मरीजों को ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करेंगी और उस दिन से आजतक अर्शी जरूरतमंदों को स्कूटी पर ऑक्सीजन सिलिंडर रखकर पहुंचा रही हैं। अर्शी इस काम के लिए किसी से कोई पैसा नहीं लेतीं और निशुल्क सेवा करती हैं। अब तक वो दर्जनों मरीजों की मदद कर जान बचा चुकी हैं। उनके इस काम की क्षेत्र में तारीफ हो रही है और लोग इस होनहार बिटिया के काम को सलाम कर रहे हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.