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हर रात भूखे बच्चों का पेट भरने निकल जाती हैं शीतल

Published - Thu 09, Jul 2020

अहमदाबाद की शीतल शर्मा रात को शहर के रेस्तरां होटल, हॉस्टल से बचा हुआ खाना एकत्र करती हैं और सड़क पर रात बिताने वाले करीब चार सौ बच्चों का पेट भर रही हैं।

अहमदाबाद। देश में लाखों लोग भूखे पेट सो जाते हैं। उनकी चिंता न सरकार को है न हमें। लेकिन अहमदाबाद की एक बीस साल की लड़की शीतल शर्मा भूखे पेट सोने वाले इन्हीं लोगों के लिए जी-जान से जुटी हैं। वो रात में सड़क पर निकलकर सड़क पर सोने वाले करीब 400 बच्चों का पेट भरती हैं। अहमदाबाद की सड़कों पर खुले आसमान के नीचे सोते भूखे बच्चों को शीतल का इंतजार रहता है। शीतल रात में अहमदाबाद की सड़कों पर निकलकर भूखे इंसानों का पेट भरने का काम करती हैं। छात्रा शीतल शर्मा कहती हैं कोई भूखा नहीं सोना चाहिए।

बचपन से ही डली नींव
गुवाहाटी की रहने वाली शीतल शर्मा को लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। जब वो स्कूल में पढ़ती थीं, तो अपने स्कूल के रास्ते में पड़ने वाली स्लम बस्ती के बच्चों के लिए खाना ले जाती थीं और उन्हें खिलाती थीं। परिवार संपन्न होने के कारण कभी परिवार ने उनकी इस आदत पर टोका-टाकी नहीं थी। बड़ा होने पर जब वह परिवार संग अहमदाबाद आईं, तो उन्होंने सप्ताह में एक दिन रविवार को भूखे बच्चों को खाना खिलाती थीं। शुरुआत में शीतल ने अपने दोस्तों के साथ सौ-सौ इकट्ठा किए और उस पैसे से अपने-अपने घरों से खाना बनवाया। उसके बाद वो अनाथाश्रम और सड़क किनारे रहने वाले बच्चों को खाना खिलाना शुरू किया। इस तरह उनका अभियान शुरू हुआ।

दिया अखबार में विज्ञापन
चूंकि शीतल के लिए रोजाना जेब से गरीबों को भोजन कराना संभव नहीं था, तो उन्होंने इस काम में लोगों की मदद के लिए अखबार में विज्ञापन दिया। विज्ञापन में लिखा कि जो लोग अपने घर, रेस्तरां, होटल या पार्टी में बचे खाने को बर्बाद होने से बचाना चाहते हैं, उनसे संपर्क करें। हम उस खाने को ले जाएंगे और बांट देंगे। ये प्रयोग सफल रहा और लोग उनकी मुहिम से जुड़ने लगे। आज शीतल और उनकी टीम के पास खाने को उठाने और उसे बांटने के लिए एक वैन है। हर रात साढ़े दस बजे से 2 बजे तक शीतल और उनकी टीम करीब 400 बच्चों को खाना खिलाती है। इनमें ज्यादातर ट्रैफिक सिग्नल पर रहने वाले बच्चे हैं। इन बच्चों के साथ साथ वो गर्भवती महिलाओं को भी खाना खिलाते हैं।

400 बच्चों को खिलाती हैं भोजन
शीतल हर रात दो बजे अहमदाबाद के अलग-अलग इलाकों में जाकर करीब चार सौ बच्चों को खाना खिलाती हैं। इससे पहले वो इन बच्चों के लिए खाना शहर के रेस्टोरेंट, होटल और अलग-अलग हॉस्टल से इक्ट्ठा करती हैं और इस सारे खाने को एक वैन में भरकर इन बच्चों के बीच बांटने का काम करती हैं। 20 साल की शीतल शर्मा ये काम ‘फीडिंग इंडिया’ की मदद से कर रही हैं।

शुरू की मन की तमन्ना मुहिम
शीतल और उनकी टीम ने मन की तमन्ना नाम से एक मुहिम शुरू की है। इस मुहिम के जरिए वो बच्चों को उनकी पसंद का खाना महीने में एक दिन खिलाते हैं।  इस खाने में बच्चों की पसंद का खाना पाव भाजी, पिज्जा, बर्गर और चाउमिन शामिल होता हैं। इस पहल में आने वाला खर्च और वैन का खर्चा शीतल अकेले ही उठा रही हैं। इन बच्चों को वो काफी समय से खाना खिला रही हैं इस कारण ये बच्चे अब उनसे काफी घुल मिल गये हैं। इस साल ‘वर्ल्ड सैंडविच डे’ के दिन उन्होने बच्चों को खुद ब्रेड जैम और बटर लगाकर दिये। उस दिन उन्होने करीब ढाई हजार सैंडविच खुद तैयार किए।

सदीं से बचाने का भी है प्रयास
सड़क पर सोने वाले गरीब बच्चों की भूख शांत करने के साथ-साथ शीतल उन्हें सर्दी से बचाने के लिए भी काम कर रही हैं। इस काम के लिए उनकी टीम लोगों से घर-घर जाकर गर्म कपड़े, पुराने कंबल आदि मांगते हैं और गरीबों को इस्तेमाल करने के लिए दे देते हैं। बच्चों को खाने के लिए अपना बर्तन लाना होता है। इसका मकसद एक तो बच्चों में अपने बर्तन साफ करने की आदत डालना है। दूसरा अगर इन बच्चों को डिस्पोजबल में खाना दिया जाये तो वो उसे खाने के बाद फेंक देते हैं इससे गंदगी बढ़ती है। शीतल की कोशिश है कि वो और 3-4 वैन खरीदे ताकि अहमदाबाद के ज्यादा से ज्यादा स्लम इलाके में इस मुहिम को चालाया जा सके। इसके लिए कई लोगों से उनकी बातचीत चल रही है और काफी लोग उनकी इस मुहिम में साथ देने के लिए आगे भी आ रहे हैं।