तेजी से बढ़ते प्लास्टिक कचरे से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचाने और उसको सही ठिकाने लगाने के लिए कर्नाटक की शिफरा जेकब्स ने एक अभियान शुरू किया है। वो इस कचरे से मकान तैयार कराती हैं।
नई दिल्ली। प्लास्टिक आज एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। नदी नालों से लेकर खेत-खलिहानों तक, जल, जंगल, जमीन को प्लास्टिक प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। जितना प्लास्टिक रोजाना इस्तेमाल किया जाता है, उसका दस प्रतिशत भी रोजाना रिसाइकिल नहीं होता। नतीजा प्लास्टिक को या तो जला दिया जाता है या वो यूं ही पड़ा-पड़ा धरती को जहरीला बनाता रहता है। प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को देखते हुए कर्नाटक की शिफरा जेकब्स ने एक अभियान शुरू किया है। वो प्लास्टिक को रिसाइकिल कर सस्ते मकान बनाकर दे रही हैं।
महज 4.5 लाख रुपये में घर
'प्लास्टिक फॉर चेंज इंडिया फाउंडेशन' को चलाने वाली कर्नाटक की शिफरा जेकब्स प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल कर ऐसे मकान तैयार कर रही हैं, जो रहने लायक हैं। इनको बनाने में खर्च भी महज 4.5 लाख रुपये आ रहा है। ऐसे ही एक घर का निर्माण बंगलुरू में किया गया है। शिफरा जेकब्स संगठन उन लोगों के लिए काम कर रहा है, जो कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में कचरा बीनने का काम करते हैं। उनका मकसद इन लोगों के जीवन स्तर को सुधारना और उनके सिर पर छत देना है। उनके फाउंडेशन ने कमला नाम की एक महिला को प्लास्टिक कचरे से घर तैयार करके दिया है। जो देखने में सुंदर भी है और टिकाऊ भी। इस घर का निर्माण उनके फाउंडेशन ने हैदराबाद की एक कंस्ट्रकशन कंपनी के साथ मिलकर किया है। घर बनाने के लिए मुश्किल से रीसाइकिल होने वाले कचरे का यूज भी किया गया है। घर बनाने से पहले निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और उसकी मजबूती का भी टेस्ट किया गया था, ताकि लंबे समय तक घर टिका रहे। शिफरा का कहना है कि उनकी कोशिश है कि 2021 तक कचरा बीनने वालों के लिए बीस घर बनाकर दें।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.