मुंबई के पवई इंग्लिश हाई स्कूल की प्रिंसिपल को इस कोरोना संकट के समय अपने छात्रों द्वारा फीस न चुकाने की चिंता थी। उन्होंने इसके लिए एक मुहिम शुरू की और चालीस लाख रुपये जुटाकर छात्रों की फीस अदा कर रही हैं।
मुंबई। इस समय पूरा देश कोरोना संकट से जूझ रहा है। खासकर मुंबई में तो हालात बेहद खराब हैं। कोरोना संकट का सबसे बुरा असर बच्चों पर पड़ रहा है। स्कूल बंद होने के कारण उनकी पढ़ाई नहीं हो पा रही, तो कहीं माता-पिता की नौकरी छूट जाने या आर्थिक संकट के कारण वो स्कूल की फीस अदा नहीं कर पा रहे। कहीं तो जिन हाथों में किताब होने चाहिए, वे बेचारे मासूम मजदूरी करने को मजबूर हैं। छात्रों और परिजनों की इसी परेशानी को देखते हुए मुंबई के पवई इंग्लिश स्कूल की प्रिंसिपल शिर्ले पिल्लई ने एक मुहिम शुरू की और चालीस लाख का फंड जुटाया, जिससे छात्रों की पढ़ाई पर असर न पड़े।
प्रिसिंपल हों तो ऐसी
शिर्ले पिल्लई स्कूल प्रिंसिपल हैं। उन्होंने पाया कि इस संकट के समय में बहुत से परिवार स्कूल फीस न चुका पाने के कारण उनसे अनुरोध करते थे कि बच्चे का नाम काट दिया जाए। ये सुनकर उन्हें बेहद कष्ट होता था कि जो बच्चे अभी सीखना और चलना शुरू किए थे, उनकी शिक्षा पर संकट आ गया। उनका मन बेहद उदास हो गया, तो उन्होंने ऐसे बच्चों और परिवारों की मदद करने की ठानी, जिससे किसी बच्चे को पढ़ाई से दूर न होना पड़े। शिर्ले पिल्लई मुंबई के पवई इंग्लिश हाई स्कूल की प्रिंसिपल हैं। उन्होंने मुश्किल में पड़े छात्रों और परिवारों के लिए इंवेस्टर्स और कॉरपोरेट हाउसेज के साथ मिलकर चालीस लाख रुपये की रकम जमा की। उनका प्रयास है कि जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई में फीस के कारण कोई बाधा ना आए।
समय से उदास लेकिन हिम्मत नहीं हारी
35 साल से शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दे रहीं पिल्लई ने बताया कि आज तक उन्होंने अपने जीवन में ऐसा बुरा समय नहीं देखा। जब परिवारों, खासकर बच्चों को इतनी परेशानी से गुजरना पड़ा हो। कोरोना के कारण कई परिजनों की नौकरी गई, वो फीस देने में असमर्थ हैं। ऐसे में उन्होंने इन परिवारों के लिए आर्थिक मदद जुटाने की ठानी। हालांकि आर्थिक मदद जुटाने से पहले शिर्ले ने अपने स्कूल के बच्चों की सालाना फीस 25 प्रतिशत तक माफ कर दी थी, लेकिन इसके बावजूद कई परिवार ऐसे थे जो अपने बच्चों की फीस नहीं दे पा रहे थे।
शिर्ले का संकल्प किसी की पढ़ाई नहीं छूटने देंगी
शिर्ले पिल्लई का कहना है कि इस संकट के समय बच्चों का क्या दोष है, जो उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाए। उनके स्कूल में दिहाड़ी मजदूर से लेकर अच्छे घरों के बच्चे पढ़ते हैं। कई बच्चे बेहद होनहार हैं, लेकिन परिजन कोरोना संकट के कारण फीस नहीं चुका पा रहे। कई लड़कियां तो बेहद ही होनहार हैं। उनका कहना है कि किसी भी संकट के समय लड़कियों को सबसे पहले शिक्षा से वंचित किया जाता है इसलिए वो ऐसा नहीं चाहतीं कि प्रतिभा पीछे छूट जाए, इसलिए उन्होंने फैसला किया वो ऐसे बच्चों को सहायता देंगी। अपने इस प्रयास से उन्होंने स्कूल के ऐसे 200 बच्चों की फीस भरी है, जो इसे देंने में असमर्थ हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.