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शूटर दादियां, जिन्होंने 60 की उम्र के पार जाकर दागी गोलियां

Published - Thu 09, May 2019

उत्तर प्रदेश, बागपत जिले के जौहड़ी गांव की रहने वाली चंद्रो और प्रकाशी तोमर की, जो शूटर दादी के नाम से प्रसिद्ध हैं। दोनों ने लगभग 65 और 57 की उम्र से शूटिंग शुरू की और 70 की उम्र तक करती रहीं।

shooter dadia

सुनीता कपूर
बागपत। उम्र 65 के पार और काम गोलियां दागना! ऐसा लगता है कोई फिल्मी कहानी हो, लेकिन है यह सच्ची कहानी। उम्र के ऐसे पड़ाव पर जब अधिकतर लोग खुद को उम्रदराज मानकर बहुत सारे कामों से अपना पीछा छुड़ाते हैं तब दो महिलाओं ने कुछ ऐसा कारनामा किया कि लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा  लीं। अब इन शूटर दादियों पर फिल्म बनने जा रही है। इस फिल्म का नाम सांड की आंख रखा गया है। भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू शूटर दादियां बनी हैं।  हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश, बागपत जिले के जौहड़ी गांव की रहने वाली चंद्रो और प्रकाशी तोमर की, जो शूटर दादी के नाम से प्रसिद्ध हैं। दोनों ने लगभग 65 और 57 की उम्र से शूटिंग शुरू की और 70 की उम्र तक करती रहीं। वर्तमान में उनकी उम्र 82 और 80 साल है।
 
कैसे शुरू हुई शूटिंग की कहानी
65 साल की उम्र तक चंद्रो तोमर एक आम महिला थीं, जिनके जिम्मे घर के काम करना और बच्चे पालना था, लेकिन अपनी पोती के साथ शूटिंग रेंज पर जाना मात्र एक संयोग ही था, जिसने उन्हें दुनिया की सबसे उम्रदराज महिला शूटर का तमगा दिलवा दिया। बात 1998-99 के आसपास की है जब चंद्रो तोमर शूटिंग की ट्रेनिंग दिलवाने के लिए अपनी पोती को लेकर गांव के ही शूटिंग रेंज पर पहुंचीं। चूंकि पोती की उम्र महज 11 साल थी, वह पिस्तौल चलाने से डर रही थी। पोती का हौसला बढ़ाने के लिए दादी चंद्रो तोमर ने पिस्तौल उठाई और निशाना लगा दिया। निशाना एकदम सधा हुआ लगा यानी दादी ने बुल्स आइ हिट कर दी। दादी के इस निशाने को सिर्फ एक इत्तेफाक मानते हुए जोहड़ी रायफल क्लब के कोच ने दादी से दोबारा निशाना लगाने को कहा। दूसरी बार भी निशाना सधा हुआ लगा। कोच ने देखा कि जिस हुनर को सीखने के लिए लोग दशकों मेहनत करते हैं दादी के पास वह सब पहले से ही मौजूद है, यानी सधे हाथ और जमी नजरें हैं, जो निशाना लगाने के लिहाज से जरूरी  हैं, हालांकि उसमें और निखार लाने की जरूरत थी तो कोच ने उन्हें ट्रेनिंग लेने की सलाह दी। घरेलू महिला होने के नाते रोजाना शूटिंग रेंज तक पहुंचना मु​श्किल था इसलिए बात सप्ताह में एक दिन सीखने और सिखाने के पर तय हुई और यहीं चंद्रो तोमर का शूटर दादी बनने का सफर शुरू हुआ।
 
विरोध में भी डटी रहीं
शूटर बनने का सफर शुरू करके चंद्रो तोमर ने आधी जंग तो जीत ली थी, लेकिन आगे की की राह बहुत मुश्किल थी। 65 की उम्र में जब आमतौर पर गांव की दूसरी औरतें घर के काम और अपने नाती-पोते पालतीं, चंद्रो उस उम्र में पिस्तौल चलाने और प्रतियोगिता जीतने की तैयारी करने लगीं। यह बदलाव ना उनके घर वालों को रास आ रहा था और ना ही गांव वालों को। गांव वाले उनका मजाक उड़ाते और कहते ‘बुढ़िया इस उम्र मे कारगिल जाएगी क्या?’ घर के बड़े और अपने पति से छुपकर चंद्रो ने अपनी ट्रेनिंग जारी रखी. इसी बीच उन्हें उनकी देवरानी प्रकाशी तोमर का साथ मिला, जो ख़ुद भी शूटिंग करना चाहती थीं। चंद्रो ने उन्हें भी अपने साथ शूटिंग रेंज पर ले गईं और प्रकाशो में भी वही गुण मिले जो चंद्रो में थे। जेठानी-देवरानी की जोड़ी जम गई और राह कुछ आसान हुई।
 
बच्चों ने दिया साथ
चंद्रो तोमर की पोती शेफाली के पति सुमित राठी ने बताया कि ‘दादी को गांव वालों के साथ-साथ घर के बड़ों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उनके बच्चों और पोते-पोतियों ने उनका साथ दिया। शुरुआती दिनों में जब वो इतनी फेमस नहीं थीं तब हम उन्हें कई बहानों से शूटिंग रेंज और प्रतियोगिताओं में पहुंचाते और वापस लाते। घर के बड़े जब कहते कि क्या करना है खेल कर या मेडल को बेकार कहते तो हम उन्हें बताते के मेडल असली सोने के हैं। इस तरह से दादी अपने खेल में आगे बढ़ीं और दुनिया को दिखा दिया कि सपने साकार करने की कोई उम्र नहीं होती है।’
 
700 मेडल हैं दोनों के नाम
चंद्रो व प्रकाशी तोमर ने अब तक विभिन्न शूटिंग प्रतियोगिताओं में कुल लगभग 100 मेडल जीते हैं, लेकिन माना यह जाता है कि उन्होंने 700 मेडल अपने नाम किए हैं। ऐसा इसलिए भी है कि उनके सिखाए बच्चे अपने मेडल दादियों के नाम कर देते हैं। चंद्रो ने 1999 में नार्थ ज़ोन शूटिंग प्रतियोगिता जीता और तब लाइम लाइट में आईं। अब तक वो शूटिंग में कुल 25 नैशनल चैम्पियनशिप जीत चुकी हैं. वहीं प्रकाशी दादी ने तो एक शूटिंग प्रतियोगिता में दिल्ली के डीआईजी को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। रात में जब सब सो जाते, तब चंद्रो पानी से भरा जग लेकर गन को पकड़ने, बैलेंस बनाने की घंटों प्रैक्टिस किया करती थीं।
 
अपना शूटिंग रेंज खोलने की तैयारी
उम्र अधिक होने के कारण अब चंद्रो तोमर प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पातीं, लेकिन कई शूटिंग रेंजेस में सिखाने जाती हैं। सुमित ने बताया कि लड़कियों को शूटिंग में बढ़ावा देने के लिए दादी गांव में ही एड्वांस लेवल का शूटिंग रेंज खोलने की तैयारी में हैं।
 
घर से आठ और गांव से 30 शूटर
5 बच्चों की मां और 15 पोते-पोतियों की दादी चंद्रो का संयुक्त परिवार है। परिवार बड़ा होने की वजह से घर की ही सात लड़कियां नैशनल लेवल की शूटर हैं, जिसमें उनकी बेटी सीमा और पोती शेफाली तो इंटरनैशनल शूटिंग प्रतियोगिता में हिस्सा ले चुकी हैं। गांव जौहरी से लगभग 30 से अधिक शूटर रजिस्टर्ड हैं।
 

बोली तापसी पन्नु, हम भी निभा सकती हैं उम्रदराज किरदार
कम लोगों को ही पता होगा कि इस फिल्म के मेकर्स पहले ये फिल्म बुजुर्ग कलाकारों को लेकर ही बनाना चाह रहे थे। फिल्म में अपनी उम्र से दोगुनी महिला का किरदार कर रहीं तापसी पन्नू कहती हैं, ‘इन किरदारों की उम्र के कुछ कलाकारों से फिल्ममेकर्स की बात होने की जानकारी मुझे अब मिली है। लेकिन मैं दूसरी बात कहती हूं। मैं 30 साल की हूं और अक्सर स्कूल जाने वाली लड़कियों के किरदार करती हूं। 50 के करीब के तमाम कलाकार हैं तो कॉलेज के स्टूडेंट्स बन रहे हैं लेकिन तब सवाल नहीं उठते। तो अब जब हम अपने से अधिक उम्र के किरदार कर रहे हैं तो सवाल क्यों?’
तापसी पन्नू भले उम्र को लेकर चली बात पर गुस्से में दिखीं हो लेकिन फिल्म की लीड हीरोइन भूमि पेडनेकर अपनी इस फिल्म में खूब मगन हैं। वह कहती हैं, ‘मुझे तो बहुत मजा आया ये किरदार करके क्योंकि ये किरदार ही इतना रोचक है। सांड़ की आंख मेरे लिए बहुत स्पेशल है। मैंने या तापसी ने अपनी से दूनी उम्र के किरदार कभी नहीं किए लेकिन ये कहानी इतनी प्रभावशाली है कि बाकी सारी बातें हाशिये पर चली गई हैं। हमारे ऊपर ये एक बड़ी जिम्मेदार थी और हम खुद को भाग्यशाली समझते हैं कि इन दो दादियों की कहानी हम इतने प्यार से शूट कर पाए।’