'आग में तपने के बाद ही सोना खरा होता है।' यह कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी, लेकिन यह बात एकदम सटीक बैठती है प्रयागराज के करेली मोहल्ले में रहने वालीं सीरत फातिमा पर। सीरत ने घर का खर्च चलाने के लिए न केवल प्राइमरी स्कूल में बतौर शिक्षिका नौकरी की, बल्कि परिवार की जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए दिन-रात यूपीएससी की तैयारी की। बचपन अभाव में गुजारने वाली सीरत को प्रतियोगी परीक्षा में तीन बार निराशा भी हाथ लगी, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं खोया और आखिरकार साल 2017 में यूपीएससी में 810वीं रैंक हासिल कर आईएएस बनने का अपना सपना पूरा किया। आइए जानते हैं सीरत के इस संघर्ष और सफलता के सफर के बारे में....
नई दिल्ली। प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के करेली मोहल्ले में रहने वाली फातिमा के पिता अब्दुल गनी सिद्दीकी लेखपाल हैं, जबकि उनकी मां एक गृहिणी हैं। फातिमा जब महज चार साल की थी तभी से उनके पिता ने सपना देखा था कि उनकी बेटी बड़ी होकर आईएएस अफसर बने। समय-समय पर वह यह बात बेटी को बताते भी रहते थे। हालांकि परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। घर का खर्च लगातार बढ़ रहा था और कमाई जस की तस थी। फातिमा के कक्षा 12वीं की परीक्षा पास करते-करते परिवार की माली हालत काफी खराब हो चुकी थी। इसके बावजूद पिता ने फातिमा की पढ़ाई जारी रखवाई। फातिमा ने बीएससी की पढ़ाई की और इसके बाद उन्होंने बीएड की डिग्री ली। फातिमा यूपीएससी की तैयारी करना चाहती थीं, लेकिन परिवार अब इस स्थिति में नहीं था कि बेटी को आगे पढ़ा सके। परिवार की समस्या को समझते हुए फातिमा ने अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकालने के लिए एक प्राइमरी स्कूल में नौकरी करने का फैसला किया। हालांकि परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। उन्होंने जिस स्कूल को ज्वाइन किया वह उनके घर से 38 किलोमीटर दूर था। वहां तक पहुंचने के लिए रोजाना उन्हें 30 किमी बस का सफर करना पड़ता, इसके बाद आठ किमी पैदल चलना पड़ता था। इन सब के बीच भी फातिमा ने तैयारी जारी रखी।
तीन बार हाथ लगी मायूसी, पर कायम रखा हौसला
स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ फातिमा सिविल सेवा की तैयारी करती रहीं। फातिमा को पहले तीन प्रयासों में सफलता नहीं मिली, जिससे वह थोड़ी मायूस जरूर हुईं, लेकिन अपना हौसला नहीं खोया। तीसरे प्रयास में महज छह अंकों से वह सलेक्ट होने से रह गईं थीं। इसके बाद उन पर परिवार की तरफ से शादी का दवाब पड़ने लगा। कुछ दिन टाल-मटोल करने के बाद आखिरकार उन्होंने शादी के लिए हामी भर दी।
स्कूल-परिवार और तैयारी तीनों में बैठाया तालमेल
यूपीएससी के तीसरे प्रयास में विफल हो जाने के बाद फातिमा को परिवार के दबाव में शादी करनी पड़ी। एक मध्यमवर्गीय परिवार की शादीशुदा औरत के सिर पर कई जिम्मेदारियां होती हैं, लेकिन फातिमा को ये जिम्मेदारियां रोक न सकीं। फातिमा स्कूल में पढ़ाने के साथ समय निकालकर पढ़ाई भी करती थीं। फातिमा बताती हैं कि तीसरी बार लक्ष्य से चूकने के बाद उनके आत्मविश्वास में थोड़ी कमी जरूर आई थी, लेकिन उन्होंने इसे अपना नसीब मानने से इनकार कर दिया था।
'मांझी- द माउंटेन मैन' ने दी नई ऊर्जा
फातिमा बताती हैं, तीसरे प्रयास में असफलता के बाद वह थोड़ी मायूस थीं। तैयारी में भी पहले जितना मन नहीं लग रहा था। इसी बीच एक दिन नवाजउद्दीन सिद्दीकी की फिल्म मांझी- द माउंटेन मैन देखी। इस फिल्म को देखने के बाद उनके भीतर नई ऊर्जा का संचार हुआ। परिवार और पति ने भी हौसलाअफजाई की। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा। आखिरकार चौथे प्रयास यूपीएससी 2017 में उन्होंने 810वीं रैंक हासिल कर आईएएस बनने का अपना सपना पूरा किया। फिलहाल फातिमा इंडियन एंड ट्रैफिक सर्विस में तैनात हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.