अब 81 साल की हो चुकीं सीता रानी ने गरीबी और मुफलिसी का ऐसा दौर देखा है जब उनके पास खाने को दो वक्त की रोटी नहीं थी। कई रातें उन्हें पानी पीकर ही काटनी पड़ीं। फिर उन्होंने अपने हुनर के दम पर अपनी तकदीर को बदलने का फैसला किया और उसमें कामयाब भी रहीं। आज गरीबी के कारण उनके आस-पास के किसी शख्स को भूखा न सोना पड़े इसलिए वह महज 10 रुपये में उन्हें भरपेट खाना खिलाती हैं।
नई दिल्ली। जिंदगी के कई रंग हैं। परेशानियां, खुशियां, उलझन, गरीबी, अमीरी सब जिंदगी के हिस्से हैं। दिक्कतों के दौर में जो शख्स समझदारी और साहस से काम लेता है आगे चलकर वही कामयाब होता है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं झारखंड में रहने वालीं सीता रानी जैन। अब 81 साल की हो चुकीं सीता रानी ने गरीबी और मुफलिसी का ऐसा दौर भी देखा है जब उनके पास खाने को दो वक्त की रोटी भी नहीं थी। कई रातें उन्हें पानी पीकर ही काटनी पड़ीं। फिर उन्होंने अपने हुनर के दम पर अपनी तकदीर को बदलने का फैसला किया और उसमें कामयाब भी रहीं। आज गरीबी के कारण उनके आस-पास के किसी शख्स को भूखा न सोना पड़े इसलिए वह महज 10 रुपये में भरपेट खाना खिलाती हैं। अपने आसपास रहने वाली दर्जनों लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई सिखाकर उनका जीवन भी संवार रही हैं।
आंदोलन के दौरान ट्रेन रोकने के लिए बैठ गईं थी पटरी पर
सीता रानी जैन बताती हैं कि जब वह युवा अवस्था में थीं तो उनकी जिंदगी में एक ऐसा दौर आया जब मेरा परिवार रास्ते पर आ गया, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। वह कभी स्कूल नहीं गई हैं, इस कारण मजदूरी छोड़ उनके पास कोई विकल्प नहीं था। इसी बीच उन्हें उनकी मां ने सिलाई-कढ़ाई के साथ खाना बनाने का हुनर सिखाया। यहीं से उनके जीवन में बदलाव आना शुरू हुआ। इसी दौरान बिहार से झारखंड को अलग करके राज्य बनाने का आंदोलन शुरू हो गया। बिहार से झारखंड पहुंची सीता रानी को महसूस हुआ कि इस जगह ने उन्हें जिंदगी का अहम सबक सिखाया है, इसलिए वह भी आंदोलन का हिस्सा बन गईं। इस दौरान एक बार ट्रेन को रोकने के लिए वह उसके सामने ही पटरी पर बैठ गईं। इस घटना के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तीन दिन जेल में रहना पड़ा।
कोई भूखा न सोये इसलिए शुरू किया होटल
सीता रानी की शादी रांची में हुई है। उनके 3 लड़के और एक लड़की है। गरीबी के दौर में सीता रानी वुमेंस कॉलेज के पास चाय-नाश्ता का स्टॉल लगाया करती थीं। इस दौरान उन्होंने कई गरीबों को देखा, जिनके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह भरपेट खाना खा सकें। ये गरीब नाश्ते से ही किसी तरह दिन काट लेते थे। यह बात सीता रानी को काफी अखरती थी। उनकी माली हालत में जब थोड़ा सुधार हुआ तो उन्होंने फिरायालाल के पास नॉर्थ पोल नाम से होटल खोली। यहां पर 10 रुपए में लोगों को भरपेट खाना खिलाया जाता है। सीता रानी लोगों से थाली के एवज में 10 रुपये लेने की वजह भी बताती हैं। उनका कहना है कि ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि खाना खाने आने वाले को भोजन की अहमियत का अहसास रहे। वह कहती हैं चार बच्चों सहित पूरे परिवार को बड़ी मुश्किल से संभाला है। आज भगवान ने इतना दिया है कि 2 रोटी खा भी लेती हूं और दूसरों को खिला भी देती हूं।
हर साल कपड़ों से बनती हैं मूर्तियां, विदेश तक में स्थापित हैं उनके बनाए गणपति
सीता रानी अपने हाथों से खूबसूरत कपड़े की मूर्तियां बनाती हैं। वह पिछले 20 साल से यह काम कर रही हैं। हर साल गणेश चतुर्थी पर दर्जनों गणपति की मूर्तियों को वह अपने परिचितों और आसपास के लोगों को भेंट करती हैं। साल भर में वे 100 से ज्यादा मूर्तियां बना लेती हैं। सीता रानी के मुताबिक दूसरों को गिफ्ट देने से मुझे खुशी मिलती है। वह 5 साल की उम्र से भगवान की मूर्तियां बना रही हैं।
सीएम कर चुके हैं सम्मानित
सीता रानी 1988 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के महिला मंच से जुड़ी। बिहार से अलग राज्य के लिए उन्होंने कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन किया। 6 अक्टूबर 1993 को नामकुम रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के सामने धरना देने बैठ गईं। इसके बाद वह काफी चर्चित हुई थीं। पूर्व केंद्रीय कोयला मंत्री शिबू सोरेन सीता रानी को जैन आंटी कहते हैं। 2015 में झारखंड के मुख्यमंत्री ने सीता रानी को सम्मानित करते हुए उनके लिए पेंशन का भी एलान किया था।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.