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फेसबुक पर गरीबों की परेशानी जान मदद के लिए पहुंच जाती है यह महिला कांस्टेबल

Published - Thu 05, Dec 2019

जरुरतमंदों की मदद के लिए न तो संसाधनों की जरूरत है और न ही किसी लंबी-चौड़ी टीम की। ऐसा करने के लिए जरूरत है, तो सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति की। ये बात एकदम सटीक बैठती है छत्तीसगढ़ की युवा महिला कांस्टेबल स्मिता टांडी पर। महज 25 साल की उम्र में उन्होंने दूसरों की मदद करने का ऐसा बीड़ा उठाया कि उन्हें पूरे छत्तीसगढ़ में गरीबों के मसीहा के नाम से मशहूर हो गईं।

- फेसबुक फॉलोअर्स के मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बाद दूसरे नंबर पर हैं स्मिता
- राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मानित, पिता की मौत के बाद दूसरों की मदद करने का उठाया बीड़ा

नई दिल्ली। जरुरतमंदों की मदद के लिए न तो संसाधनों की जरूरत है और न ही किसी लंबी-चौड़ी टीम की। ऐसा करने के लिए जरूरत है, तो सिर्फ दृढ़ इच्छाशक्ति की। ये बात एकदम सटीक बैठती है छत्तीसगढ़ की युवा महिला कांस्टेबल स्मिता टांडी पर। महज 25 साल की उम्र में उन्होंने दूसरों की मदद करने का ऐसा बीड़ा उठाया कि उन्हें पूरे छत्तीसगढ़ में गरीबों के मसीहा के नाम से मशहूर हो गईं। कुछ ही वर्षों में स्मिता ने ऐसा मुकाम हासिल किया है, जिसे हासिल करने में दूसरों की पूरी उम्र गुजर जाती है। पुलिस कांस्टेबल की बेटी स्मिता ने दूसरों की मदद करने के लिए सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का बखूबी इस्तेमाल किया और देखते ही देखते छत्तीसगढ़ के लिए रोड मॉडल बन गईं। आज उनके फेसबुक फॉलोअर्स की संख्या 8 लाख से भी ज्यादा है। स्मिता अपने अच्छे कामों के लिए राष्ट्रपति से भी सम्मानित हो चुकी हैं। स्मिता की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उनके फॉलोअर्स की संख्या छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम रमन सिंह के बाद दूसरे नंबर पर है।

रुपये के अभाव में हुई पिता की मौत, जिसने बदल दी स्मिता की जिंदगी
सामान्य कद-काठी की स्मिता को दिखावा एकदम पसंद नहीं है। वह बिना किसी लाग-लपेट के सही को सही और गलत को गलत करने से नहीं हिचकिचाती हैं। दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहने वाली स्मिता अपनी इन्हीं आदतों के कारण आज लाखों लोगों की चहेती हैं। स्मिता के मुताबिक फेसबुक के जरिए लोगों की मदद का आइडिया उन्हें वर्ष 2013 में आया। उस समय वह पुलिस ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग कर रही थीं। इसी दौरान छत्तीसगढ़ पुलिस में कांस्टेबल उनके पिता शिव कुमार टांडी की तबीयत अचानक बिगड़ गई। पिता को अच्छे अस्पताल में इलाज की जरूरत थी, लेकिन घर में इतने रुपये नहीं थे कि उनका सही ढंग से इलाज कराया जा सकता। नतीजतन कुछ ही महीनों में उनका निधन हो गया। इस घटना से स्मिता को काफी धक्का लगा और उन्होंने सोचा कि दुनिया में ऐसे न जाने कितने लोग होंगे जो रुपयों के अभाव में अपनी जान गवां देते होंगे। इसके बाद स्मिता ने दूसरों की मदद करने का फैसला किया।

2014 में दोस्तों के साथ मिलकर फेसबुक पर बनाया जीवनदीप ग्रुप
पिता की मौत होने के बाद दूसरों की मदद के लिए स्मिता ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर 2014 में जीवनदीप के नाम से फेसबुक पर एक ग्रुप बनाया और गरीब बीमार लोगों की मदद करने लगीं। स्मिता अब तक 100 से ज्यादा गरीबों का अपने ग्रुप की मदद से इलाज कराकर उनकी जिंदगी बचा चुकी हैं। वह समय-समय पर निशुल्क हेल्थ कैंप का भी आयोजन कराती रहती हैं। स्मिता को जब भी ऐसे किसी गरीब बीमार व्‍यक्ति के बारे में पता चलता वे मदद करने के लिए पहुंच जाती हैं। स्मिता की इस पहल के बारे में जब छत्‍तीसगढ़ पुलिस के वरिष्‍ठ अधिकारियों को पता चला तो उन्‍होंने उन्हें सोशल मीडिया कंप्‍लेंट सेल में पोस्‍ट क‍रा दिया।

चार साल में फेसबुक पर बनाए 8 लाख 12 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स
छत्तीसगढ़ पुलिस की महिला सिपाही स्मिता तांडी बिना किसी विवाद में आए सोशल मीडिया पर खासी लोकप्रिय हैं। वह जब भी फील्ड पर जाती हैं, लोग उन्हें घेर लेते हैं और फोटो खींचवाने लगते हैं। वर्तमान में स्मिता के फेसबुक पर 8 लाख 12 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। स्मिता बताती है कि जब उन्होंने फेसबुक पेज बनाया तो शुरुआत में लोग उनकी पोस्ट पर उतना ध्यान नहीं देते थे। लेकिन उन्होंने धैर्य रखा। करीब एक महीने बाद रिस्पॉन्स मिलना शुरू हो गया। स्मिता का कहना है कि शायद शुरू में लोग उन्हें फर्जी मानते थे। स्मिता अपने फेसबुक ग्रुप में तमाम लोगों की प्रेरक कहानियां भी पोस्ट करती हैं, जिससे दूसरों को इससे सीख मिल सके।