मां-बाप दोनों के दुनिया से जाने के बाद हर कोई अपने आप को बेहद निसहाय और कमजोर समझने लगता है लेकिन स्नेहा ने अपने माता-पिता की यादों को ढाल बनाकर आगे बढ़ने का रास्ता बनाया। वह सैफ खेलों में स्वर्ण जीत चुकी हैं और उनकी आगे बढ़ने की कोशिश जारी है।
नई दिल्ली। चार साल के अंदर अपने पिता और माता दोनों को खोने वाली स्नेहा अक्सर अकेले में रोती हैं, लेकिन मां-बाप की यादें ही अब उनकी ढाल बन गई हैं। वह कमजोर पड़ती हैं, लेकिन मां-बाप की छवि आंखों के सामने आ जाती है और वह फिर से तैयारियों में जुट जाती हैं। इन्हीं यादों के सहारे 20 साल की स्नेहा ने बीते वर्ष दिसंबर में सैफ खेलों में स्वर्ण पदक जीता। मां-बाप के गुजरने के बाद भी वह लगातार राष्ट्रीय शिविर और राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियां करती रहीं।
लंबे समय से रह रहीं राष्ट्रीय शिविर में
उड़ीसा के मयूरभंज जिले की रहने वाली स्नेहा ने जुलाई 2019 में अपीहा (समोआ) में हुई राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में रजत जीता था। उससे कुछ दिन पहले ही उनकी मां की डायरिया से मृत्यु हो गई थी। अपने मां-बाप की इकतौली बेटी स्नेहा तब से लगातार राष्ट्रीय शिविर में ही रहती हैं। हालांकि उनके चचेरे भाई देवव्रत उनका ख्याल रखते हैं, लेकिन स्नेहा को अपने मां-बाप की कमी बहुत खलती है। वह शिविर में ज्यादातर अपना समय अपनी आदर्श मीराबाई चानू के साथ बिताती हैं। स्नेहा के पास इस वक्त नौकरी नहीं है। उन्होंने 55 किलो में सैफ खेलों में स्वर्ण जीता था, लेकिन राष्ट्रीय चैंपियनशिप में उनके पदक जीतने की सर्वाधिक संभावनाएं 49 किलो में हैं, जिसके चलते वह इस भार वर्ग में तैयारियां कर रही हैं। हालांकि यह चैंपियनशिप कोरोना के चलते रद्द हो गई है। स्नेहा कहती हैं कि वह राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतकर अपने मां-बाप को सच्चा तोहफा देना चाहती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.