महज छह साल की उम्र में घर-घर जाकर जूठे बर्तन साफ करना, कपड़े धोना, झाड़ू पोंछा करने जैसे काम करने के बाद भी पढ़ाई करने की ललक ऐसी कि समय नहीं मिलने पर भूखे पेट ही स्कूल चली जाती थीं। धीरे-धीरे बड़ी हुई तो पढ़ाई के साथ-साथ काम का दायरा भी बढ़ा और परिवार की हर जरूरतें पूरी करने लायक हो गई। लेकिन इस बीच कई ऐसे उतार-चढ़ाव आए और परेशानियों ने कोल्हापुर की अनुराधा को चारों ओर से घेर लिया। लेकिन अनुराधा घबराई नहीं, डटकर मुकाबला किया। ससुराल वालों ने दो बच्चों के साथ घर से निकाल दिया। इन हालातों को अपनी मजबूती बना अनुराधा आज बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ रही हैं। बच्चों को स्कूल भेज रही है और ससुराल में प्रताड़ित होने वाली महिलाओं का भी सहारा बन रही हैं।
यह हकीकत है महाराष्ट्र के कोल्हापुर की अनुराधा भौसले की। अत्यंत गरीबी के माहौल में पैदा हुई अनुराधा के परिवार को भी कई मुश्किल हालातों से गुजरना पड़ा था। पिछड़ी जाति में जन्म लेने के कारण समाज में कई बाध्यताओं और दुर्व्यवहार के चलते अनुराधा के दादा ने ईसाई धर्म अपना लिया था। इसके बाद परिवार को आर्थिक रूप से तो आराम मिला, लेकिन अनुराधा का बचपन अन्य सामान्य बच्चों की तरह नहीं गुजर सका। घर में कई भाई-बहन होने के कारण अनुराधा को छह साल की उम्र में ही कई घरों में जाकर काम करना पड़ता था। बर्तन साफ करने, झाड़ू पोंछा, कपड़े धोना जैसे कठिन काम वह छोटी सी उम्र में ही करने लगी। इसके बाद वे दौड़ती भागती स्कूल चली जाती थी, क्योंकि उसे पढ़ना भी था। कई बार देर होने पर वह भूखे पेट ही स्कूल निकल जाती थी। नन्हीं सी उम्र में बाल मजदूरी के साथ अनुराधा ने पढ़ाई को भी जारी रखा। सुबह 6 से 33 बजे तक वह घरों पर काम करती, उसके बाद पड़ने जाती थी। ग्यारह साल की उम्र में ही अनुराधा इतना कमाने लगीं कि अपनी सारी जरूरतों के लिए उन्हें माता-पिता पर निर्भर नहीं होना पड़ा और सभी काम के लिए वह खुद ही पैसों का इंतजाम करने लगी। चर्च की मदद से अनुराधा ने उच्च शिक्षा भी हासिल की। अनुराधा ने बचपन में ही बहुत कुछ सीख लिया था। गरीबी को उन्होंने बहुत करीब से देखा। ये भी जान लिया कि गरीब परिवारों में महिलाएं और बच्चे किन-किन समस्याओं से दो-चार होते हैं। अनुराधा बहुत ही छोटी उम्र में ही ये जान गई थीं कि बच्चे किन हालत में मजदूर बनते हैं और मजदूर बनने के बाद किस तरह से उनका बचपन उनसे छिन जाता है।
शादी के बाद भी नहीं बदली जिंदगी
अनुराधा को उम्मीद थी कि शादी के बाद उनकी जिंदगी बदल जाएगी। अनुराधा का पति अन्य जाति से था, लेकिन लड़का-लड़की और उनके परिवारवालों में बात बन गई और शादी कर दी गई। शादी के बाद कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक था। लेकिन, इसके बाद ससुरालवालों ने अनुराधा को परेशान करना शुरू किया। सास और ननद ने लड़ाई-झगड़े और मारपीट शुरू कर दी। ससुरालवाले घर का सारा कामकाज अनुराधा से ही करवाते। अनुराधा को सुबह 4 बजे उठना पड़ता और घर के काम करने पड़ते। पति से भी अनुराधा को कोई मदद नहीं मिलती। फिर भी वो सब सहती चली गई। लेकिन, अनुराधा के लिए उस समय ये सब सहना नामुमकिन हो गया जब उसे पता चला कि उसके पति का किसी दूसरी औरत से रिश्ता है। जब अनुराधा ने इसका विरोध किया तो ससुरालवालों ने दो बच्चों के साथ उन्हें घर से निकाल दिया। तीन हफ्ते तक अनुराधा अपने दो छोटे बच्चों के साथ अकेली और निसहाय महिला की झोपड़ी में रहीं।
एक ख्याल ने बदल दी जिंदगी
मुश्किलों से भरे समय में भी अनुराधा ने हार नहीं मानी। वे निराश नहीं हुईं। बल्कि, इन घटनाओं ने उन्हें और भी मजबूत बना डाला। घर से निकाले जाने के बाद झोपड़ी में रहते हुए अनुराधा को ये ख्याल आया कि जब एक पढ़ी-लिखी और नौकरी करने वाली महिला के साथ ही इतनी बदसलूकी की जा सकती है, तब अशिक्षित और घरेलू महिलाओं पर कितने अत्याचार होते होंगे। इस एक ख्याल ने अनुराधा की जिंदगी बदल दी। उन्होंने ठान ली कि वे अब से महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ेंगी। उन महिलाओं की मदद करेंगी जो नाइंसाफी और शोषण का शिकार हैं। चूंकि अनुराधा खुद बाल-मजदूर थीं और जानती थीं कि किस तरह और किन हालातों में बचपन कुचला जा रहा उन्होंने बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ने का मन बना लिया।
बच्चों को स्कूल भेजा, महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
अनुराधा जानती थीं कि गरीबी और बाल मजदूरी की समस्या आपस में जुड़ी हुई हैं। तंग हालात में ही मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल के बजाय मजदूरी करने भेजते हैं। अनुराधा ने बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए वीमेन एंड चाइल्ड राइट्स कैंपेन नाम की संस्था का गठन किया। इस संस्था के जरिए अनुराधा ने गरीब, विधवा, परित्यक्ता और जरूरतमंद महिलाओं को शिक्षित करने का काम शुरू किया। अनुराधा ने ऐसी महिलाओं को प्राथमिकता दी जो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेजने की सोच रही थीं। अनुराधा ने महिलाओं को उनके अधिकारों से भी अवगत कराना शुरू किया। उन्हें शोषण और नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाने और संघर्ष करने की प्रेरणा दी। महिलाओं को ऐसा प्रशिक्षण भी दिया जिससे वे स्वाभिमान से साथ कमाने लगीं। उन्होंने कई महिलाओं को रोजगार के रास्ते भी दिखाए। कई महिलाओं को सरकारी योजनाओं का लाभार्थी बनाया। कुछ ही महीनों में कोल्हापुर और आसपास के क्षेत्रों में अनुराधा जानी-मानी महिला कार्यकर्ता बन गई। दूर-दूर से महिलाएं उनकी सलाह और मदद लेने उनके पास आने लगीं।
शिक्षा का अधिकार कानून के लिए संघर्ष
भारत के दूसरे अन्य सामजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर अनुराधा ने 'शिक्षा का अधिकार' कानून की रूपरेखा तैयार की। इस कानून को संसद में पास करवाकर लागू करने के लिए खूब संघर्ष किया। अनुराधा ने गरीब, अकेली और जरूरतमंद महिलाओं को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के मकसद से एक और संस्था की शुरुआत की और इसका नाम 'अवनि'रखा। इसके जरिए भी अनुराधा ने कोल्हापुर और आसपास के इलाकों में महिलाओं के उत्थान और विकास के लिए दिन-रात मेहनत की। इतना ही नहीं, अनुराधा ने अपनी संस्थाओं के जरिए कई बाल मजदूरों को उनके मालिकों के चंगुल से मुक्त कराया। ईंट भट्टियों से कई बाल मजदूरों को मुक्त करवाया। उन्होंने दूसरे जोखिम-भरे काम करने के लिए नौकरी पर लगाए गए बाल-मजदूरों को भी मुक्त कराया और अपनी संस्थाओं के जरिए शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और भोजन की सुविधा उपलब्ध कराई। बाल मजदूरी से मुक्त करवाए गएबच्चों के लिए राहत शिविरों के अलावा स्कूल भी खोले।
विदेश तक अनुराधा की तारीफ
महात्मा गांधी के पोते अरुण 'अवनि' के कार्यों और कार्यक्रमों से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने एक विशाल जगह पर सारी सुविधाओं से लैस स्कूल खुलवाने में अनुराधा की मदद की। स्कूल का शिलान्यास तुषार गांधी और अरुण गांधी ने बच्चों के साथ मिलकर किया। अनुराधा के काम की तारीफ भारत ही नहीं, बल्कि विदेश में भी हुई। महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने में जुटे कई कार्यकर्ताओं ने अनुराधा के मॉडल का ही अनुसरण किया। अनुराधा भोसले ने पिछले कुछ सालों से भ्रूण हत्या और ट्रैफिकिंग के खिलाफ भी जंग शुरू कर दी है। आज अनुराधा की गिनती देश और दुनिया-भर में बाल अधिकारों और महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले शीर्ष कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवियों में होती है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.