सोनी टीवी के हिट रियलिटी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' का सीजन 11 शुरू हो चुका है। इसमें इस हफ्ते कर्मवीर स्पेशल एपिसोड का प्रसारण होगा। इसके पहले एपिसोड में महाराष्ट्र की एक बुजुर्ग महिला आएंगी। इनके सेट पर पहुंचते ही अमिताभ बच्चन उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद बड़े सम्मान से उन्हें हॉट शीट पर बैठाते हैं।
नई दिल्ली। सोनी टीवी के हिट रियलिटी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' का सीजन 11 शुरू हो चुका है। इसमें इस हफ्ते कर्मवीर स्पेशल एपिसोड का प्रसारण होगा। इसमें समाज के लिए कुछ अलग करके मिसाल बन चुके समाजसेवी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के सवालों के जवाब देते नजर आएंगे। इसके पहले एपिसोड में महाराष्ट्र की एक बुजुर्ग महिला आएंगी। इनके सेट पर पहुंचते ही अमिताभ बच्चन उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद बड़े सम्मान से उन्हें हॉट शीट पर बैठाते हैं। इस एपिसोड का प्रोमो भी इन दिनों यूट्यूब पर अब देख सकते हैं। प्रोमो में नजर आने वालीं बुजुर्ग महिला न केवल मानवता की मिसाल हैं, बल्कि सड़कों पर बेसहारा दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर 1400 बच्चों के लिए किसी भगवान से कम नहीं हैं। हम यहां बात कर रहे हैं सिंधुताई सपकाल की। सिंधुताई ने इन अनाथ बच्चों को न केवल सड़क से उठाकर उन्हें छत मुहैया कराई, बल्कि अच्छा खाना, कपड़ा और शिक्षा भी मुहैया कराई। इनमें से कई बच्चों की शादी भी हो चुकी है। वे अपने परिवार के साथ खुशी-खुशी जिंदगी बीता रहे हैं। सिंधुताई का परिवार बहुत बड़ा है। उनके 207 जमाई, 36 बहुएं और 1000 से अधिक पोते-पोतियां हैं। करीब 80 साल की उम्र में भी वो अपना काम बिना रुके करती जा रही हैं। वह किसी से मदद नहीं लेती हैं, बल्कि खुद स्पीच देकर पैसे जमा करने की कोशिश करती हैं।
खुद को कभी नहीं मिला प्यार पर 1400 बच्चों का दामन खुशियों से भर दिया
सिंधुताई सपकाल की जिंदगी की शुरुआत ही अभाव के बीच हुई। बचपन से ही उनकी परवाह करने वाला कोई नहीं था। बचपन में उन्हें चिंधी (फटे हुए कपड़े का टुकड़ा) नाम दिया गया। उन्होंने ठीक से होश संभाला भी नहीं था कि महज 10 साल की उम्र में उनकी शादी एक 30 साल के व्यक्ति से कर दी गई। पति से भी हमेशा प्यार के बदले गालियां और मार ही मिली। वह जब 9 माह की गर्भवती थीं तो पति ने उन्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए घर से निकाल दिया। वह बेसहारा सड़कों पर घूमती रहीं। मजबूरी में उन्हें अपनी बेटी को गोशाला में जन्म देना पड़ा। सिंधुताई बताती हैं कि उन्होंने अपने हाथ से अपनी नाल काटी थी। इन घटनाओं ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। एक बार तो उनके दिमाग में खुदकुशी करने तक की बात आई, लेकिन उन्होंने हालात से हारने की बजाए इससे लड़ने की ठानी और अपनी दुधमुंही बेटी के साथ रेलवे स्टेशन पर भीख मांगकर गुजर-बसर करने लगीं। इस दौरान ऐसे बच्चे उनके संपर्क में आए जिनका कोई नहीं था। इन बच्चों में उन्हें खुद की दर्द भरी कहानी नजर आई और उन्होंने उन सभी को गोद ले लिया। सिंधुताई खुद भूखी रहीं, लेकिन भीख मांगकर इन बच्चों का पेट भरा। धीरे-धीरे इसे ही उन्होंने अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया और जो भी बच्चा उन्हें अनाथ मिलता वो उसे अपना लेतीं। अब तक वो 1400 से अधिक बच्चों को अपना चुकी हैं। वो उन्हें पढ़ाती हैं, उनकी शादी कराती हैं और जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने में मदद करती हैं। ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं।
खुद की बेटी को ट्रस्ट को दे दिया गोद
बच्चों में भेदभाव न हो जाए इसलिए उन्होंने अपनी बेटी ममता को ‘श्री दगडुशेठ हलवाई, ट्रस्ट पुणे, महाराष्ट्र को गोद दे दिया। आज मामता बड़ी हो चुकी है और वो भी एक अनाथालय चलाती है। कुछ वक्त बाद उनका पति उनके पास लौट आया और उन्होंने उसे माफ करते हुए अपने सबसे बड़े बेटे के तौर पर स्वीकार कर लिया। सिंधुताई के इन कामों के लिए उन्हें 500 से अधिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है। उनके नाम पर 6 संस्थाएं चलती हैं जो अनाथ बच्चों की मदद करती हैं। सिंधुताई सपकाल को अब तक करीब 172 राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुके हैं। 500 से अधिक सम्मान से नवाजीं जा चुकी हैं। राष्ट्रपति भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। वर्ष 2010 में सिंधुताई सपकाल के जीवन पर आधारित मराठी शार्ट फिल्म "मी सिन्धुताई सपकाल" बनाई गई थी। जिसे 54 वे लंदन शार्ट फिल्म फेस्टिवल के लिए चुना गया था।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.