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कलम छोड़कर लिखने लगीं दिव्यांग बच्चों का भविष्य

Published - Sat 29, Feb 2020

मुंबई की सोनाली पत्रकारिता में स्नातक हैं, लेकिन सोनाली ने अपनी कलम से लिखना छोड़ा और दिव्यांग बच्चों का भविष्य लिखना शुरू किया है।

Sonali

नई दिल्ली। युवाओं को अगर उनकी पसंद की नौकरी मिल जाए, तो वो फूले नहीं समाते। पसंदीदा कार्यशैली हो तो कहने ही क्या। मुंबई की सोनाली श्यामसुंदर के साथ भी ऐसा ही था। सोनाली ने महाराष्ट्र से स्कूली पढ़ाई पूरी की और मुंबई के रूइया कॉलेज से स्नातक किया। पत्रकारिता में स्नातक सोनाली मीडिया में काम करने लगीं। नौकरी अच्छी चल रही थी और सोनाली अपने काम को बखूबी इंजॉय कर रहीं थीं, लेकिन उनको ऐसा लगता था कि उनको कुछ अलग करना है। बस इसी धुन में उन्होंने दिव्यांगों के लिए काम करने की सोची।

दिव्यांगों को मुख्यधारा से जोड़ना शुरू किया
समाज में एक बड़ा तबका ऐसा है, जो दिव्यांगों को अपनाने से डरता है। उनके हित की नहीं सोचता। दिव्यांगों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए सोनाली ने काम करना शुरू किया। पत्रकारिता में काम करने के दौरान जब सोनाली को कोई मुझे बीमार या गरीब दिखता था तो वो अपना काम खत्म करने के बाद उसका हाल-चाल लेने के लिए जाया करती थी, लेकिन बॉस को उनका ये सब करना पसंद नहीं था। वो बार-बार सोनाली को टोकते। सोनाली ने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद सोनाली ‘प्रेरणा’ और ‘मासूम’ जैसे एनजीओ के साथ जुड़ गईं। धीरे-धीरे सोनाली का रूझान सामाजिक कामों की ओर बढ़ता गया और जिसके बाद उन्होने तय किया कि वो सामाजिक क्षेत्र में ही काम करेंगी। वो दिव्यांगों से मिलतीं उनसे बातचीत करतीं। जब वो दिव्यांगों के लिये काम करने के बारे में सोच रही थी तभी उनकी शादी हो गई, लेकिन दिव्यांग बच्चों के लिए काम करने की इच्छा उनके मन में बनी हुई थी। एक दिन उन्होंने दिव्यांगों के लिये काम करने की अपनी इच्छा को अपने परिवार और पति के सामने रखा तो उन्होने तुरंत हामी भर दी। घरवालों के मिले सहयोग से सोनाली ने 2011 में उर्मी फाउंडेशन की स्थापना की। उन्होंने बीएमसी के स्पेशल स्कूलों को गोद लिया। इसमें वो दिव्यांग बच्चों को शिक्षित करने की कोशिश करती हैं।

दिव्यांगों के लिए तैयार करती हैं पाठ्यक्रम
आज सोनाली और उनकी टीम बीएमसी में पढ़ने वाले दिव्यांग बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करती हैं, जिसे बीएमसी दिव्यांगों के लिए बने स्कूल में लागू करता है। इसके अलावा शिक्षा और सामाजिक उत्थान में काम करने के लिए इनकी एक टीम है, जिसमें टीचर और डॉक्टर दोनों तरह के लोग हैं। इसके अलावा ये लोग स्लम की उन तंग गलियों में जाते हैं जहां पर व्हील चेयर भी नहीं जा सकती। वहां ऐसे लोगों को ये साफ सफाई और शिक्षा के बारे में बताते हैं। फिलहाल उर्मी फॉउंडेशन के 4 सेंटर मुंबई में काम कर रहे हैं। सोनाली और उनकी टीम एजुकेशन थेरेपी के तहत पहली क्लास से लेकर 5वीं तक के बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करती है। वो सबसे पहले दिव्यांग बच्चों को गिनती सिखाती हैं उसके बाद दूसरी चीजें सिखाई जाती हैं। बच्चों ने कितना सीखा इसके लिये ये हर 6 महीने में बाहर से इन बच्चों को जांचने के लिए निरीक्षक को बुलाते हैं और देखते हैं कि बच्चे में कितना सुधार हुआ है। इस रिपोर्ट को ये लोग बीएमसी के साथ भी साझा करते हैं। सोनाली ऑक्युपेशनल थेरपी के जरिये बच्चों को रोज मर्रा के काम से लेकर पेंसिल पकड़ना तक सीखाती हैं। आर्ट थेरपी में बच्चों को एक जगह पर बैठना सिखाया जाता है। अंत में बच्चों को टीच थेरेपी के जरिए अक्षर ज्ञान सिखाया जाता है। उर्मी फाउंडेशन में इस समय 13 सदस्य हैं। अब इनकी योजना मुंबई के स्लम में ही बीएमसी की मदद से अपने काम बढ़ाने की है। साथ ही महाराष्ट्र की दूसरी जगहों, खासतौर से गांवों में इस तरह के सेंटर खोलने की कोशिश में हैं।