सृजना का मानना है कि बचपन में ही किताबों से बच्चों का रिश्ता जोड़ा जा सकता है। अगर बचपन से ही उन्हें किताबें पढ़ने की आदत लगा दी जाए, तो यह ताउम्र साथ रहती है। इसलिए उन्होंने बेकार चीजों से यह खुला पुस्तकालय शुरू किया है।
सृजना सुब्बा पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग की रहने वाली हैं। बचपन से ही उन्हें किताबें से बहुत लगाव था। जैसा कि जिसे किताबों से लगाव होता है उसे लाइब्रेरी से भी बहुत लगाव होता है। इसलिए वह जब स्कूल में पढ़ाई कर रही थी तभी से उनका सपना एक लाइब्रेरी खोलने का था। स्कूल पूरा करने के बाद उन्होंने अध्यापन का प्रशिक्षण लेकर अभी एक स्कूल में पढ़ाती है। साथ ही कविताएं भी लिखती हैं। लाइब्रेरी खोलने का उनका उद्देश्य यही था कि बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित की जा सके।
नागरी फार्म चाय एस्टेट में लगभग 20 गांव शामिल हैं, जिसमें एक हजार परिवार रहते हैं। पर इस क्षेत्र में पुस्तकालय की सुविधा नहीं थी। यहां तीन बार पुस्तकालय खोलने की कोशिश हुई, पर किसी वजह से संभव नहीं हो पाया। इसलिए सृजना चाहती थी कि आने वाली पीढ़ी को उनकी तरह पुस्तकालय की कमी महसूस न हो। इसलिए उन्होंने अपने घर के पीछे बने गेराज में ही अपने खर्च से एक पुस्तकालय शुरू कर दिया। इसका नाम उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई लेखक मार्कस फ्रैंक जुसाक की किताब 'द बुक थीफ' के नाम पर रखा है, जिसमें एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो पढ़ने के लिए किताबें चुराती है।
बेकार चीजों का उपयोग
लाइब्रेरी खोलके के उनके जज्बे को इससे समझा जा सकता है कि उन्होंने पुस्तकालय बनाने के लिए गेराज के ही पुराने सामान का प्रयोग किया। इस पुस्तकालय में उन्होंने पुरानी जीप और बाइक के पार्ट्स का इस्तेमाल किया बखूबी किया है। पुराने टायरों को चमकीले रंगों से रंग कर उनमें बांस के टुकड़े लगाकर बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने पुरानी और खराब फ्रिज को किताबों की सेल्फ के लिए इस्तेमाल किया है। पूरे पुस्तकालय को बेकार चीजों से बनाया गया है।
बच्चों की पसंदीदा जगह
इस पुस्तकालय में कोई पुस्तकालयाध्यक्ष नहीं है। न ही किसी को बिल्कुल खामोश रहने की जरूरत है। यहां से किताबें ले जाने के लिए किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होती है। शोरगुल या किताबें बिखेरने पर बच्चों को डांटने के बजाय समझाया जाता है। अब बच्चे ही पुस्तकालय का रजिस्टर खुद संभालते हैं, क्योंकि अब यह उनकी पसंदीदा जगह बन गई है।
छोटी-सी पहल
यह पुस्तकालय आसपास के समुदाय के लिए बस एक छोटी-सी पहल है। सृजना मानती हैं कि हर किसी को अपने आसपास ऐसी पहल करनी चाहिए। इस पुस्तकालय में कुछ उनकी निजी किताबें हैं, तो कुछ दोस्तों और शुभ-चिंतकों ने दान में दी हैं। यहां हिंदी, अंग्रेजी और नेपाली भाषा की पांच सौ से ज्यादा किताबें हैं। बड़े-बुजुर्ग भी यहां आकर पढ़ते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.