जयपुर की सुमिति मित्तल राजस्थान पब्लिक कमीशन की परीक्षा पास कर चुकी हैं और दो कंपनियों की मालकिन भी हैं। पैसा और रुतबा दोनों उनके पास है, लेकिन सुमिति कारोबार के साथ-साथ स्लम में रहने वाले बच्चों को पढ़ाती भी हैं।
जयपुर। देखा जाता है कि अच्छी नौकरी लग जाए या थोड़ा पैसा पास आ जाए, तो लोगों के पैर जमीन पर नहीं पड़ते। लेकिन इस दुनिया में ऐसे लोग भी हैं, जो सबकुछ पास होने के बाद भी गरीबों के लिए काम करने से पीछे नहीं हटते। उनमें से एक हैं जयपुर की सुमिति मित्तल। सॉफ्टवेयर और रोबोटिक से जुड़ी दो कंपनियों की मालकिन सुमिति राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास कर चुकी हैं और जल निगम में सहायक इंजीनियर की नौकरी कर चुकी हैं। लेकिन इसके बावजूद भी समाज सेवा करती हैं। वह स्लम के बच्चों को पढ़ाने व वोकेशन ट्रेनिंग देने का काम कर रही हैं। जयपुर में वह प्रथम शिक्षा के नाम से संस्था चलाती हैं।
राजस्थान का एक बहुत ही सुंदर शहर है बीकानेर। इस शहर के लोग भी बेहद अच्छे और मददगार होते हैं। इसी शहर की रहने वाली सुमिति मित्तल उन सफल महिलाओं में से हैं, जो ऊंचे मुकाम पर पहुंचने के बाद भी जमीन से जुड़ी हुई हैं और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रही हैं। आज वह स्लम के गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी उठा रही हैं। पेशे से सिविल इंजीनियर सुमिति मित्तल की पढ़ाई-लिखाई बीकानेर से ही हुई। बारहवीं के बाद वह इंजीनियरिंग करेन के लिए जोधपुर आ गईं और यहीं से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी होते ही उनकी किस्मत ने उनका साथ दिया और राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास कर सहायक इंजीनियर के पद पर उनका चयन हो गया। कुछ समय नौकरी करने के बाद सुमिति को लगने लगा कि उन्हें कुछ और नया करना है। फिर क्या था नौकरी छोड़ी और खुद का कारोबार शुरू करने की ठानी और खुद की कंपनी ‘प्रथम सॉफ्टवेयर’ स्थापित की। कंपनी ने जड़े जमा लीं तो सुमिति के विदेश दौरे भी होने लगे कभी अमेरिका, कभी यूरोप, तो कभी जर्मनी आना जाना लगा रहता। यहां उन्होंने देखा कि हर बच्चा स्कूल जाता है। तब सुमिति के दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न गरीबी के कारण स्कूल न जाने वाले बच्चों के लिए कुछ शुरू किया जाए और यहां से शुरू हुआ सुमिति का समाज सेवा का अभियान।
पड़ी ‘प्रथम शिक्षा’ की नींव
2005 में सुमिति ने ‘प्रथम शिक्षा’ की स्थापना की। इस संस्था का काम जयपुर के स्लम में रहने वाले गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना और पढ़ने के जरूरी सामान की उपलब्धता करवाना था। इसकी शुरूआत सुमिति ने अपने घर के गैराज से की और जयपुर के श्यामनगर के स्लम में रहने वाले बीस बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। शुरू में माता-पिता बच्चों को भेजने में आनकानी करते थे। काफी समझाने पर ही वो बच्चों को पढ़ने भेजते। पिछले बीस सालों से सुमित स्लम के बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं और अभी तक हजार से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर चुकी हैं।
बीस बच्चों पर एक टीचर
उनकी संस्था ‘प्रथम शिक्षा’ में प्राइमरी स्कूल की तरह ही नर्सरी से पांचवीं तक की पढ़ाई कराई जाती है। हर क्लास में बीस बच्चों पर एक शिक्षक है। उनकी संस्था की खासबात ये है कि जब बच्चों के पास पढ़ने का समय होता है, तभी क्लॉस लगाई जाती है। ताकि बच्चों को काम धंधे के साथ-साथ पढ़ाई का भी समय मिल सके। उनके स्कूल में पढ़ने वाली ज्यादातर लड़कियां हैं और कक्षाएं शाम पांच बजे तक चलती हैं। खुद सुमिति लड़कियों की शिक्षा पर खासा ध्यान देती हैं। यहां पर पहली क्लास से ही बच्चों को कम्प्यूटर शिक्षा दी जाती है। साथ ही ये बच्चों को खेलकूद, ड्राइंग और क्राफ्ट की एक्टिविटी भी कराते हैं। ताकि बच्चों में आत्मविश्वास पैदा किया जा सके। ‘प्रथम शिक्षा’ स्कूल में 13 टीचर, 3 टीचर वॉलंटियर हैं एक प्रिंसिपल है और सबको सैलरी दी जाती है। जिस इमारत में स्कूल चलता है, उसमें सात कमरे दो हाल हैं।
लड़कियों को दी जाती है नर्सिंग की ट्रेनिंग
सुमिति बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ बड़ी उम्र की लड़कियों को नर्सिंग की ट्रेनिंग भी दिलवा रही हैं। दी जाती है। यहां से अब तक 200 लड़कियां नर्सिंग की ट्रेनिंग ले चुकी हैं और इन सभी को अलग अलग अस्पतालों में नौकरी भी मिल गई है। वहीं कुछ नया काम सीखने वाले लड़कों को 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पलंबर और इलेक्ट्रिशियन की ट्रेनिंग कराई जाती है। स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग के लिए हर बच्चे से 50 रुपये महीना फीस ली जाती है। ताकि कोर्स करने वाले छात्र गंभीर हों। अपनी फंडिंग के बारे में सुमिति का कहना है कि शुरूआत में उन्होने अपना पैसा लगाया, लेकिन आज इनके काम को देखते हुए लोग खुद ही इनसे जुड़ रहे हैं। इसके अलावा सुमिति की सॉफ्टवेयर कंपनी के 200 लोग भी उनको अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा देते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.