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गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए सुनीता ने बेच दिया अपना घर

Published - Sun 09, Aug 2020

सुनीता गरीब, वंचित बच्चों के लिए स्कूल खोलना चाहती थी, ताकि समाज में उनको बराबरी का महत्व मिल सके। देर से ही सही, अपना घर बेचकर उन्होंने ऐसे स्कूल की स्थापना की।

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महाराष्ट्र में पुणे के एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली सुनीता कुलकर्णी एक समाजसेविका और अध्यापिका हैं। पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बद पुणे के विशप स्कूल में कई वर्षों तक पढ़ाया। एक दौरान उन्हें अहसास हुआ कि समाज में प्रतिस्पर्धा, लैंगिक असमानता के बावजूद शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है, जो लोगों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से अन्य व्यक्तियों के बराबर खड़े होना संभव बनाती है। जब भी वह घर से बाहर निकलती थी अक्सर उन्हें सड़क के किनारे, सार्वजनिक जगहों पर गरीब, वंचित बच्चे दिख जाते थे। शिक्षा से वंचित उन बच्चों को देखकर वह दुखी हो जाती थीं और सोचने लगती थी कि एक दिन एक ऐसा स्कूल जरूर खोलूंगी, जहां गरीब, वंचित बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मिलेगी। आखिरकार 25 वर्षों तक बिशप स्कूल में पढ़ाने के बाद सुनीता ने अपना स्कूल खोलने का फैसला किया। लेकिन स्कूल खोलने के लिए पैसे चाहिए थे और उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह स्कूल खोल सकें। उनके पास पैसा एकत्र करने का एकमात्र विकल्प अपना फ्लैट बेचना था और उन्होंने यही किया। इस काम में उनके पति ने ने भी सुनीता का साथ दिया। वह बताती हैं, 'हमारे पास एकमात्र संपत्ति को छोड़ना एक कठिन निर्णय था। फिर भी, मुझे पता था कि यह शानदार परिणाम देगा। स्कूल शुरू हुए 25 साल हो चुके हैं और इसे सरकारी मान्यता भी मिल चुकी है। मात्र आठ छात्रों के साथ दो कमरों से शुरू हुए स्कूल का अब विस्तार हो गया है। यहां तकरीबन डेढ़ हजार छात्र पढ़ने आते हैं।'

आठ बच्चों के साथ शुरू किया स्कूल 

साल 1996 में सुनीता ने अपना फ्लैट बेचकर स्कूल के लिए पांच सौ वर्ग फुट का एक प्लॉट पुणे के कोंधवा क्षेत्र में खरीदा। तत्काल स्कूल के लिए दो कमरे बनवाए। अभी स्कूल में 26 कमरे हैं, जिनमें पुस्तकालय व अन्य सुविधाएं मौजूद हैं। शुरूआत में सिर्फ आठ छात्रों ने इसमें प्रवेश लिया। धीरे-धीरे अधिक बच्चों ने स्कूल में दाखिला लेना शुरू कर दिया।

दैनिक मजदूरी एकमात्र आय का जरिया

कोंधवा की अधिकांश आबादी दैनिक मजदूरी पर आश्रित है, जिनकी आय कम है। इसलिए, क्षेत्र के कई बच्चे औपचारिक शिक्षा तक प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यहां तक कि कम उम्र में काम करने की मजबूरी के चलते सरकारी स्कूलों में शामिल बच्चे भी पढ़ाई छोड़ देते थे।

सीएसआर से मदद

10वीं तक शिक्षा देने वाले सुनीता के स्कूल में बच्चे के पिता की आय और व्यवसाय को सत्यापित किया जाता है, ताकि जरूरतमंदों को प्राथमिकता दी जाए। शिक्षा को सुलभ और सस्ती बनाने के लिए छात्र न्यूनतम शुल्क देते हैं। इसके अलावा स्कूल के खर्च के लिए हमें सीएसआर से मदद भी मिलती है।