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खुद मौत के मुहाने पर खड़ी यह बेटी दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए कर रही संघर्ष

Published - Fri 10, Jan 2020

वह ब्रेन ट्यूमर के आखिरी स्टेज पर है, मेडिकल साइंस से उसकी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। उसे साफ मालूम है कि वह इस दुनिया में बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। फिर भी उसने हौसले का दामन नहीं छोड़ा है। जब उसे पता चला की वायु प्रदूषण के कारण कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी बढ़ रही है। उसके मामले में भी इसी को वजह मानी जा रही है। फिर क्या था श्रुचि ने ठान लिया कि जिस वजह से उसकी मौत होने जा रही है, वह किसी और के साथ ऐसा नहीं होने देगी। वह अपनी जिंदगी के जितने भी दिन बचे हैं, उनमें पौधे रोपेगी, ताकि दूसरों को शुद्ध हवा मिल सके।

नई दिल्ली। वह ब्रेन ट्यूमर के आखिरी स्टेज पर है, मेडिकल साइंस से उसकी उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। उसे साफ मालूम है कि वह इस दुनिया में बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। फिर भी उसने हौसले का दामन नहीं छोड़ा है। वह इस सच को स्वीकार कर चुकी है कि उसे चंद दिनों में ही दुनिया को अलविदा कहना पड़ेगा, लेकिन वह घर के किसी कोने में बैठकर रोने या मौत के करीब आते लम्हों के इंतजार में जिंदगी के बचे हुए पलों को बर्बाद नहीं करना चाहती। वह आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ ऐसा करना चाहती है कि लोग उसकी मौत के बाद भी उसे याद रखें। वह नहीं चाहती कि जिस वायु प्रदूषण की वजह से उसे इतनी कम उम्र में दुनिया छोड़नी पड़ रही है किसी और के साथ ऐसा हो। इसके लिए वह जिंदगी के बचे हुए गिनती के दिनों में ताबड़तोड़ पौधे लगा रही है। बहादुर बिटिया के इस साहस और हिम्मत की आज हजारों लोग तारीफ कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस हिम्मती युवती की खबरें छाई हुईं हैं। हम यहां बात कर रहे हैं गुजरात के सूरत शहर में रहने वाली श्रुचि वडालिया की। महज 27 साल की यह युवती कुछ महीने पहले तक अपने सुंदर भविष्य का ताना-बाना बुनने में व्यस्त थी। उसने अपनी जिंदगी के लिए बहुत सारे सपने संजो रखे थे। लेकिन उसकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। एक दिन अचानक उसके सिर में तेज दर्द हुआ तो वह जांच कराने डॉक्टर के पास पहुंची। जहां जांच के बाद पता चला कि उसे ब्रेन ट्यूमर है, वह भी आखिरी स्टेज का। यह सुनते ही श्रुचि की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। भविष्य के उसके सपनों का महल ताश के पत्तों की तरह ढह गया। डॉक्टरों ने श्रुचि को बचाने के लिए उसका इलाज शुरू किया। कई बार किमोथेरेपी की, लेकिन हालत में सुधार होने की बजाए तबीयत और बिगड़ती गई। इस बीच श्रुचि को पता चला की वायु प्रदूषण के कारण कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी बढ़ रही है। उसके मामले में भी इसी को वजह मानी जा रही है। फिर क्या था श्रुचि ने ठान लिया कि जिस वजह से उसकी मौत होने जा रही है, वह किसी और के साथ ऐसा नहीं होने देगी। वह अपनी जिंदगी के जितने भी दिन बचे हैं, उनमें पौधे रोपेगी, ताकि दूसरों को शुद्ध हवा मिल सके। श्रुचि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब तक 30,000 से ज्यादा पौधे लगा चुकीं हैं। वह अब भी यह काम तेजी से कर रही हैं। श्रुचि वडालिया कहती हैं ‘शायद मैं जल्द ही मर जाऊंगी, लेकिन मैं ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर लोगों की सांसों में रहना चाहती हूं।’

अपने हौसले से हजारों लोगों के दिलों में बनाई जगह
 ब्रेन ट्यूमर के आखिरी स्टेज पर होने के बाद भी श्रुचि वडालिया बिना किसी डर के शान से अपनी जिंदगी जी रही हैं। खुद गंभीर बीमारी से ग्रस्त है, फिर भी वायु प्रदूषण से किसी को कैंसर न हो, इसलिए वह पर्यावरण को बचाने के अभियान में जुटी हैं। दो साल में वह 30 हजार पौधे लगा चुकी हैं। उनके इस काम में अब अन्य लोग भी तेजी से जुड़ रहे हैं। हजारों लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं। सभी श्रुचि वडालिया की तारीफ कर रहे हैं।

शहर के लोगों के लिए लिखा भावुक संदेश
श्रुचि वडालिया ने पर्यावरण के प्रति शहर के लोगों को जागरूक करने के लिए एक भावुक संदेश लिखा है। इसमें उन्होंने अपनी बीमारी के पता चलने के बाद अपनी मनोदशा के बारे में बड़े मार्मिक ढंग से लिखा है। श्रुचि ने लिखा...... प्रिय शहरवासियों, मेरी जिंदगी का कितना समय बचा है, मुझे नहीं पता। जब मैं अपने दोस्त से बात कर रही थी, तब मुझे अचानक ही दिखना बंद हो गया। मैं बेहोश हो गई। मुझे हॉस्पिटल ले जाया गया। जांच के बाद डॉक्टर ने बताया- ब्रेन ट्यूमर है…। मुझे लगा कि डॉक्टर मजाक कर रहे हैं। मुझे उनकी बात पर भरोसा ही नहीं हुआ। उसके बाद मैंने तकरीबन 25 डॉक्टरों से जांच कराई। सभी का यही कहना था कि मुझे ब्रेन ट्यूमर है। आपको कोई कहे कि आपको कैंसर है, तो आपको कैसा लगेगा? मैं ब्रेन ट्यूमर वाली बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रही थी। दूसरे दिन मुझे आईसीयू से बाहर लाया गया, तब मैं जिंदगी के प्रति सचेत हो गई। क्योंकि मैंने अपनी जिंदगी में अनेक सपने देखे थे। अपने सपने के बारे में किसी से कुछ कहूं, इसके पहले ही मेरी जिंदगी सिमट गई। मेरे दिलो-दिमाग में तेज दर्द हो रहा था।

36 बार किमोथैरेपी और रेडिएशन थैरेपी से गुजरीं
श्रुचि वडालिया कहतीं हैं कि बीमारी का पता चलने के बाद वह कई दिनों तक यही सोचती रहीं कि, आखिर ये बीमारी मुझे ही क्यों हुई? दिन धीरे-धीरे बीतने लगे। सब कुछ नॉर्मल हो रहा था। जो आपको अच्छा न लगे, वही रोज-रोज करना भला किसे अच्छा लगेगा? कई दवाओं का भारी डोज रोज लेना पड़ रहा था। किमोथेरेपी, रेडिएशन थैरेपी के कारण रोज अस्पताल जाना बहुत की तकलीफदेह था। 36 बार किमोथैरेपी और उतनी ही बार रेडिएशन थैरेपी लेकर एकबार टूट ही गई। किमोथैरेपी के कारण पूरे बाल झड़ गए। कैंसर हो गया है, यह जानकर श्रुचि ने तय कर लिया कि अब जिंदगी कुछ अलग तरह से गुजारनी है।

 ... फिर एक दिन दिल ने कहा- पौधे लगाकर कई जिंदगियां बचा सकते हो श्रुचि
श्रुचि वडालिया कहती हैं कि अपनी बीमारी के बारे में पता चलने के बाद मुझे खुद से बात करने का बहुत सारा वक्त मिला। इसी दौरान मेरे दिमाग में एक विचार आया कि कैंसर को तो रोका नहीं जा सकता, लेकिन जिस कारण ऐसा हो रहा है, उसके प्रभाव को तो जरूर कम किया जा सकता है। वायु प्रदूषण को केवल पौधे रोक सकते हैं, तो क्यों  ने पौधे रोपे जाएं। मेरी जिंदगी तो खराब हो गई, पर भावी पीढ़ी की जिंदगी खराब न हो, इसके लिए मैंने पौधों को रोपने का काम शुरू किया। ब्रेन ट्यूमर होने के बाद मुझे लगा कि मुझे पर्यावरण बचाने की दिशा में कुछ करना चाहिए। वायु प्रदूषण के कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो रही हैं। मुझे कैंसर हो गया, पर लोगों को अब कैंसर नहीं होना चाहिए। इसलिए पिछले दो साल से पौधरोपण कर रही हूं। अब तक 30,000 पौधों का रोपण कर चुकी हूं। आप एक पौधा लगाकर अनेक लोगों की जिंदगी बचा सकते हैं। श्रुचि स्कूलों में जाकर भी बच्चों को जागरूक कर रही हैं।