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ओलंपिक की जूडो प्रतिस्पर्धा में भारत की इकलौती उम्मीद सुशीला देवी

Published - Sun 18, Jul 2021

मणिपुर की रहने वाली 26 साल की सुशीला देवी अकेली ऐसी जूडो खिलाड़ी हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया है।

Sushila Devi

नई दिल्ली। ओलंपिक की उल्टी गिनती हो चुकी है। ऐसे में चुने गए खिलाड़ियों पर देश की निगाहें हैं। कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं, जो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले अकेले भारतीय खिलाड़ी हैं। ऐसा ही एक नाम है जूडो खिलाड़ी सुशीला देवी का। मणिपुर की ये युवा खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। इस 26 साल की खिलाड़ी का यह पहला ओलिंपिक होगा। सुशीला के अलावा और कोई और खिलाड़ी जूडो के लिए लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया है।
एशिया में सुशीला की रैंकिंग है 7
भारतीय जूडो खिलाड़ी सुशीला देवी की एशियाई रैंकिंग 7 है। इसी वजह से उन्हें ओलिंपिक कोटा  मिला। उनका का मानना है कि भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन भारतीय जूडो खिलाड़ियों को बहुत ज्यादा कॉम्पिटिशन नहीं मिल पाता। अगर उन्हें कॉम्पिटिशन मिले, तो ओलिंपिक कोटा हासिल करने वाले खिलाड़ियों की संख्या बढ़ेगी। साथ ही भारत के लिए ज्यादा से ज्यादा मेडल जीत सकेंगे। उन्होंने 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में देश के लिए सिल्वर मेडल जीता था।
घर से ही मिली जूडो में आने की सीख
सुशीला जहां जन्मीं वहां जूडो को बहुत बड़ा और सम्मानीय खेल माना जाता है। जब उन्होंने होश संभाला तो अपने चाचा को जूडो खेलते देखा। भाई भी जूडो की ट्रेनिंग कराते थे। परिवार का माहौल ही ऐसा था कि सुशीला का झुकाव जूडो की ओर हो गया और उन्होंने भी इसकी ट्रेनिंग शुरू की। उनके पिता इंटरनेशनल प्लेयर थे, जबकि भाई भी जूडो में नेशनल लेवल पर गोल्ड जीत चुके हैं। उनके चाचा, लिकमबम दीनित, जो एक अंतरराष्ट्रीय जूडो खिलाड़ी रहे हैं, दिसंबर 2002 में सुशीला को खुमान लम्पक ले गए। खुमान में उन्होंने बहुत कम उम्र में प्रशिक्षण शुरू किया। जूडो के प्रति उनकी ललक को देखते हुए परिवार ने उनका साथ दिया। 2003 से 2010 तक सुशीला मणिपुर के इंफाल में ट्रेड हुईं और फिर पटियाला के एनआईएस में चली गईं। 2017 में सुशीला ने मणिपुर पुलिस को ज्वाइन कर लिया।
चुनौतियों का किया सामना
सुशीला ने बचपन से अपने घर में परेशानियां देखीं थीं, लेकिन हौसला नहीं तोड़ा। पिता प्लेयर थे और प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, मां गृहणी थीं। परिवार बड़ा था, तो कई बार पिता की सैलरी से घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता। ऐसे में कई बार सुशीला को लगा कि उनका जूडो में आगे बढ़ने का सपना अधूरा रह जाएगा, लेकिन खुद को हिम्मत देकर सुशीला ने जूडो में प्रैक्टिस जारी रखी। सुशीला के साथ कई ऐसे मौके आए, जब कॉम्पिटिशन के लिए अपने शहर से बाहर जाना हुआ, लेकिन उनकी जेब खाली थी। खेल की तैयारी के लिए उनके पास न संसाधन थे और न पौष्टिक आहार। फिर भी  वो खेलती रहीं। कुछ समय बाद उनको साइ का हॉस्टल मिल गया, जिसमें डाइट से लेकर अन्य तरह की परेशानियों से उनको छुटकारा मिल गया। इसी बीच भारत सरकार की ओर से मिली स्कॉलरशिप ने उनको राहत दी और सुविधाएं मिलने लगीं। सुशीला के करियर में उतार का वक्त तब आया जब 2018 में उनकी हैम्स्ट्रिंग मांसपेशी फट गई थी और वे कई अहम प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाईं थीं। सुशीला डिप्रेशन में चली  गईं। उनको लगने लगा कि अब उनका करियर खत्म हो जाएगा, लेकिन उनके कोच जीवन शर्मा ने उन्हें हौसला दिया।
ओलंपिक पर है फोकस
 सुशीला 48 किग्रा कैटेगरी में कंपीट करेंगी। वे जूडो में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र खिलाड़ी हैं।  सुशीला देवी अपना ज्यादातर समय प्रैक्टिस में बिताती हैं। वो कहती हैं कि देश ने उनपर भरोसा किया है और चुना है, तो उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। उनका मिशन जूडो में भारत के लिए पदक लाना है। जूडो में पहली बार देश का प्रतिनिधित्व कर रहीं सुशीला कहती हैं कि हमारी तैयारी बेहतर है, लेकिन अनुभव की कमी है। मेरा लक्ष्य अपना बेस्ट देना है। वे कहती हैं कि भारत में जूडो को इतना महत्व नहीं दिया जाता, जितना अन्य खेलों को, दूसरा जूडो भारत में उतना लोकप्रिय भी नहीं है, जितना अन्य देशों में है। हमारे यहां प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन भारतीय खिलाड़ियों को ज्यादा कॉम्पिटिशन ही नहीं मिल पाता है। वे कहती हैं कि भारतीय खिलाड़ियों को जूनियर लेवल से ही कॉम्पिटिशन के लिए विदेशों में भेजना चाहिए। इससे हमें एक्सपीरियंस  मिलेगा।