भाग-दौड़ और मतलबी होती जा रही दुनिया में आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो इंसानियत की मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसी ही एक युवा हैं तरुणा विधाय। तरुणा दिल्ली स्थित एक बड़े बैंक में मैनेजर हैं। 30 साल की तरुणा दिनभर अपनी नौकरी करने के बाद शाम को समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाने से पीछे नहीं हटती हैं। वह रोजाना गाजियाबाद के इंद्रापुरम् के एक हिस्से में स्थित झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने पहुंच जाती हैं।
नई दिल्ली। अच्छा मुकाम पाने के बाद अक्सर लोग अपने गरीब दोस्तों और रिश्तेदारों से मुंह फेर लेते हैं। उनके घर जाना तो दूर उनसे मिलने तक से कतराने लगते हैं। किसी आयोजन तक में जाने से बचने के लिए समय नहीं मिल पा रहा है का बहाना बना देते हैं। ऐसे में उनसे किसी बेबस, मजबूर या गरीब की मदद की अपेक्षा बेईमानी ही है। इन सब के बावजूद भाग-दौड़ और मतलबी होती जा रही दुनिया में आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो इंसानियत की मिसाल कायम कर रहे हैं। ऐसी ही एक युवा हैं तरुणा विधाय। तरुणा दिल्ली स्थित एक बड़े बैंक में मैनेजर हैं। 30 साल की तरुणा दिनभर अपनी नौकरी करने के बाद शाम को समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाने से पीछे नहीं हटती हैं। वह रोजाना गाजियाबाद के इंद्रापुरम् के एक हिस्से में स्थित झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ाने पहुंच जाती हैं। तरुणा नहीं चाहती कि ये गरीब बच्चे रुपयों और सुविधा के अभाव में एक बेहतर कल से वंचित हो जाएं। तरुणा साल 2012 से इस काम में जुटी हुईं हैं। मूलत: मेरठ की रहने वालीं तरुणा का बचपन भी गरीबी में बीता था। पिता एक छोटी सी दुकान के सहारे अपने तीनों बच्चों को पढ़ाते थे। तरुणा बचपन से ही पढ़ने में काफी होशियार हैं।
कॉपी-किताब के साथ खाने की सामग्री भी कराती हैं मुहैया
पेशे से बैंक मैनेजर तरुणा के मन में इन गरीब बच्चों के लिए खास स्थान है। वह इनका भविष्य संवारने के लिए तन-मन-धन से जुटी हैं। उन्हें इन गरीब बच्चों के साथ समय बिताना अच्छा लगता है। तरुणा के प्रेरित करने से अब उनके कुछ दोस्त भी इन बच्चों को पढ़ाने के लिए झुग्गी-झोपड़ियों में जाने लगे हैं। तरुणा इन गरीब बच्चों को पढ़ाने के साथ ही इनके लिए कॉपी-किताब, पेन, पेंसिल ही बल्कि खाने-पीने की सामग्रियां भी मुहैया कराती हैं। तरुणा ने बताया कि मैंने अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में देखा कि कैसे गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे पैसे के आभाव में अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। तभी मैंने सोच लिया था कि इनके लिए कुछ करूंगी और आज जितना मुझसे हो पा रहा है मैं कर रही हूं। तरुणा आज तकरीबन 1800 बच्चों का भविष्य संवारने में लगी हैं।
बैंक का काम निपटाने के बाद रोजाना पढ़ातीं है चार घंटे
तरुणा का बैंक शाम 5 बजे बंद हो जाता है। बैंक से निकलने के बाद तरुणा सीधे स्लम एरिया में रहने वाले इन बच्चों के पास पहुंचती हैं और उन्हें तीन से चार घंटे पढ़ाती हैं। इस दौरान वे उनके साथ खेलती भी हैं। वह बताती हैं के अब यह काम उनकी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है। शुरू-शुरू में दिनभर बैंक में काम करने के बाद इन बच्चों को पढ़ाने के बाद काफी थक जाती थी, लेकिन अब मजा आने लगा है, इन बच्चों के साथ समय बिताकर दिनभर की थकान कहीं गायब हो जाती है।
बच्चों के कारण ही शादी से कर दिया था इनकार
तरुणा के लिए यह सब इतना आसान नहीं था। पहले कुछ दिनों तो उनके परिवार को इसके बारे में जानकारी नहीं हुई। बाद में जब उन्हें पता चला तो वे नाराज हो गए। परिवार वालों ने यह काम छोड़कर अपनी जिंदगी पर ध्यान देने को कहा। जल्द शादी करने का दबाव भी बनाया। लेकिन तरुणा पीछे नहीं हटीं। उन्होंने परिवार वालों के सामने शर्त रख दी कि वह उसी से शादी करेंगी जो उनके इस काम में उनका सहयोग कर सके। तरुणा की लगन देख धीरे-धीरे परिवार वाले भी उनकी भावनाओं को समझने लगे और अपना सहयोग देना शुरू कर दिया। आज सभी को अपनी बेटी के कार्य पर गर्व है।
बच्चों की मदद के लिए बनाया एक ग्रुप
कुछ समय तक बच्चों को अकेले ही पढ़ाने के बाद तरुणा को महसूस हुआ कि इन बच्चों को पढ़ाई के साथ किताब-कॉपी के साथ अच्छे खाने की भी जरुरत है। वह अकेली इतने बच्चों की मदद नहीं कर सकती हैं। इस मुश्किल को आसान बनाने के लिए तरुणा ने अपने दोस्तों से बात की और एक ग्रुप बनाया। इस ग्रुप का नाम उन्होंने निर्भेद फाउंडेशन रखा। तरुणा ने गरीब बच्चों की मदद के लिए ग्रुप के हर सदस्य से दो-दो हजार रुपए की मदद ली और इनसे किताबें और स्टेशनरी का सामान खरीदकर बच्चों को बांटना शुरू किया। वे 100 बच्चों को चुनकर उन्हें खाने-पीने की सुविधा प्रदान कर रही हैं ताकि इन्हें पढ़ने के लिए काम न करना पड़े। तरुणा बच्चों को खाना भी मुहैया कराती हैं, जिसमें दाल, रोटी, और पराठे जैसा पौष्टिक आहार शामिल हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.