प्रयागराज की रहने वाली, दिल्ली जैसे बड़े शहर में पढ़ने वाली अनिका पांडे आज उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में आदिवासियों का जीवन संवारने के लिए और उनको रोजगार उपलब्ध कराने के लिए खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन करना सिखा रही हैं।
नई दिल्ली। शहरों में रहने वाले और नामी कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की आंखों में आगे बढ़ने के बहुत सपने होते हैं। उनके सपनों की लिस्ट में गांव-देहात और आदिवासियों के लिए काम करने के आइडिया तो दूर-दूर तक नहीं होते। लेकिन कुछ आंखों में इन लोगों के लिए भी सपने होते हैं और वो युवा आंखे गांव के लोगों के लिए रोजगार दिलाने और उनके लिए काम करने के बारे में सोचती हैं। ऐसी ही एक युवा हैं अनिका पांडे। प्रयागराज के संपन्न परिवार में जन्मी अनिका ने दिल्ली में रहकर पढ़ाई की। बंगलुरू के ‘गोल्डमेन सेस असिस्ट मैनेजमेंट’ के लिए काम करने लगीं और सप्ताह के अंत में वह मैजिक बस फाउंडेशन के लिए वालंटियर के तौर पर भी काम करती। वो बच्चों की मेंटरिंग का काम करती हैं और उन्हें लाइफ स्किल सिखातीं। यहीं से उनको प्रेरणा मिली कि समाज के लिए कुछ करना चाहिए। वह ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली संस्था ग्राम विकास के साथ जुड़ीं और किसानों के लिए काम करने लगीं। किसानों के लिए काम करने के उद्देश्य से उन्होंने उड़ीसा के गजापति जिले और कोइनपुर पंचायत को चुना। वो इसलिए कि वो ग्रामीण परिवेश को जानना-समझना चाहती थीं।
मधुमक्खियों को बनाया किसानों का दोस्त
यहां रहते हुए अनिका ने देखा कि किसान मधुमक्खी के छत्ते से शहद निकलाने के लिए छत्तों को जला देते थे और मधुमक्खियों को मार देते थे, जिससे किसानों को ही नुकसान था, क्योंकि मधुमक्खी मर जाती थी, तो उनके द्वारा बनाए जाने वाला शहद नहीं बन पाता था। अनिका ने पाया कि किसानों के इनसे डर नहीं लगता और शहद बेचना भी पसंद है, तो क्यों न किसानों को मधुमक्खी पालन सिखाया जाए। हालांकि अनिका को इस काम का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए उन्होने सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्र से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली और इंटरनेट के जरिये इस पर काफी रिसर्च की। इसके बाद नवम्बर 2016 से 5 मधुमक्खी के बक्सों के साथ उन्होने अपने काम की शुरूआत की। आज अनिका 40 किसानों के साथ 200 मधुमक्खियों के बक्सों के रखरखाव का काम कर रही हैं।
बनाया किसानों का संगठन
अनिका ने किसानों को मधुमक्खी पालन से जोड़ने के लिए किसानों का एक संगठन बनाया, जिसको नाम दिया गया ‘जगत कल्याण हनी प्रोडेक्ट ग्रुप’। इस ग्रुप के हर किसान के पास 2 मधुमक्खी के डिब्बे हैं, जबकि शेष डिब्बों का रखरखाव अनिका खुद ही करती हैं। उनका मानना है कि जैसे ही किसान मधुमक्खी पालन को अच्छी तरह से सीख जायेंगे वो ये सारे डिब्बे किसानों को सौंप देंगी। यहां पर जो भी किसान इस काम को कर रहे हैं वो सभी भारतीय प्रजाति की मधुमक्खियां पाल रहे हैं। क्योंकि इटेलियन प्रजाति की मधुमक्खियां यहां के मौसम के हिसाब से सही नहीं हैं।
अनिका ने परेशानियों को दिखाया ठेंगा
अनिका के प्रयास से किसानों ने मधुमक्खी पालन कर शहद बेचना शुरू कर दिया है, तो इससे किसानों की कमाई भी बढ़ी है। लेकिन शुरुआत में किसी को उनके काम पर भरोसा नहीं था और कोई मदद करने को तैयार भी नहीं था। पर अनिका ने हार नहीं मानी। उन्होंने किसानों को अपने साथ जोड़ा। इसके बाद उन्होने 40 किसानों को 4-5 ग्रुप में बांट दिया। किसानों के साथ काम करते हुए उनकी मुलाकात एक ऐसे किसान के साथ हुई, जो उनकी बात बिल्कुल नहीं सुनता था और अनिका की हर बात पर हंसी उड़ाता था। अनिका ने उस किसान को हटाने की जगह उसे टीम लीडर बना दिया। उस किसान की खास बात ये थी कि उसमें लीडरशिप का गुण था इस कारण उसे रजिस्ट्रर बनाने और मधुमक्खियों की देखरेख का जिम्मा सौंप दिया गया। आज वो ही किसान अनिका की बातों को सबसे ज्यादा ध्यान से सुनता है। एक दिन अनिका अपने एक दोस्त के साथ कहीं जा रही थीं, तो उनके पास एक किसान दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि उसकी सारी मधुमक्खियां उड़ गई हैं। अनिका सब कुछ छोड़ स्कूटी पर सवार होकर उस जगह पहुंची जहां मधुमक्खियां रखी गई थीं। वहां उन्होने देखा कि सारी मधुमक्खियां उड़ कर पेड़ों पर बैठी हुई हैं। जिसके बाद वो खुद एक पेड़ पर चढ़ गई और रानी मक्खी को पकड़कर वापस डिब्बे में ले आई। इस तरह ना केवल मधुमक्खियां वापस डिब्बे में आ गई बल्कि अनिका को भी विश्वास हो गया कि वो अब बिना किसी एक्सपर्ट की मदद से इस काम को कर सकती हैं।
पैसा बचाकर खरीदते हैं नए डिब्बे
उन्होने इस प्रोजेक्ट को 3 लाख रुपये लगा कर शुरू किया है। यही वजह है कि जब कभी उनकी एक मक्खी भी भाग जाती थी तो उनको काफी नुकसान उठाना पड़ता था। हालांकि अब वो खुद और उसके साथ जुड़े किसान प्राकृतिक रुप से भी मधुमक्खियां पकड़ना सीख गये हैं। अनिका ने इन किसानों का एक ज्वाइंट अकाउंट भी खुलवाया है जिसमें वो हर डिब्बे के हिसाब से 100 रुपये डालते हैं। इस पैसे का इस्तेमाल वो नये डिब्बे खरीदने में करते हैं। इसके अलावा अनिका मधुमक्खी पालन में क्या-क्या दिक्कतें आ सकती हैं? और उनका कैसे समाधान निकाला जाता है। इस पर वो एक वीडियो उड़िया भाषा में तैयार करवा रही हैं। जिसे देखकर किसान खुद इस काम को कर आत्मनिर्भर बन सकें।
किसानों को होने लगा है फायदा
अनिका के प्रयास से अब हर किसान हर महीने डेढ़ से दो किलो शहद बेच लेता है। इस शहद की कीमत 3 सौ से 4 सौ रुपये प्रति किलो तक होती है। इससे किसान को खेती के अलावा अतिरिक्त आमदनी भी हो जाती है। किसानों की आमदनी करीब 25 प्रतिशत सालाना बढ़ गई है। अब इस अतिरिक्त आमदनी का इस्तेमाल किसान बेहतर जीवन जीने में करने लगे हैं। अनिका अपने इस काम को बढ़ाने के लिए इस इलाके में एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहती हैं। उनकी कोशिश है कि वो यहां के शहद को ‘हनी ग्राम विकास’ के नाम से बेचें।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.