शादी के बाद गंगा ने अपने ससुराल में महिलाओं को जल संकट से जूझते हुए देखा। गांव से सटी झील के संरक्षण का काम कोई नहीं कर रहा था। ऐसे में एक संगठन ने साथ दिया, तो गंगा वह अन्य महिलाओं के साथ झील को पुनर्जीवित किया।
एक मेहनती किसान से लेकर एक भरोसेमंद नेता तक, गंगा राजपूत ने एक लंबा सफर तय किया है। 30 वर्षीय गंगा, चौधरी खेरा गांव की रहने वाली है। यह गांव मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के में स्थित है, जो अपने धूल भरे वातावरण और पानी की कमी के कारण बदनाम है।
चौधरी खेरा में 12 एकड़ में की एक झील है। इसे चंदेला राजाओं ने बनवाया था, ताकि गांव में पानी की दिक्कत न हो। जब तक झील आबाद थी लोगों ने उसके पानी का खूब इस्तेमाल किया। लेकिन 4 दशक पहले अच्छे से रख रखाव न होने के कारण झील सूख गई। वहां के लोगों ने अंधविश्वास के चलते झील को आबाद करने की कोशिश भी नहीं की। गांव वालों के बीच एक कहानी प्रचलित थी कि जब एक सरपंच (ग्राम प्रधान) ने बाबा तालाब को पुनर्जीवित करने की कोशिश की, तो उन्होंने अपने दोनों बच्चों को खो दिया। इस अंधविश्वास के चलते गांव के लोगों ने झील की बिल्कुल परवाह नहीं की। धीरे-धीरे झील सूख गई, झील के सूखते ही गांव के सभी हैंडपंप भी सूख गए। झील सूखी तो लोगों ने उस जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया। कुछ लोग पशु बांधने लगे तो कुछ लोग खेती करने लगे।
झील और नल सूखने से लोगों को पानी लाने के लिए दूर तक जाना पड़ता था। खासकर महिलाओं के लिए बहुत परेशानी होती थी। हालत यह हो गए कि गांव में टैंकर से पानी आना शुरू हो गया। गंगा इसी गांव में व्याह कर आईं, तो उन्हें भी जल संकट से जूझना पड़ा। जब उन्हें पता चला कि अंधविश्वास के कारण जल संकट दूर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। तो उन्होंने गांव की महिलाओं से इसके समाधान की बात की। एक संगठन गांव में जल संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए पहुंचा, तो गंगा ने झील की बदहाली और पानी की कमी के मुद्दे को उठाया। यह भी कहा कि सहयोग मिले तो, हम सभी झील के संरक्षण के लिए तैयार हैं। उस संगठन ने उनकी मदद की। झील को पुनर्जीवित करने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने का वादा किया। साल 2019 में गंगा ने दो झील को पुनर्जीवित करने का वीड़ा उठाया। उनको देख गांव के अन्य लोगों ने भी मदद करनी शुरू कर दी।
मेहनत रंग लाई
झील को पुनर्जीवित करने के लिए क्षेत्र को साफ किया गया था, गाद को हटाया गया और एक चेक डैम का निर्माण किया गया। जब बारिश हुई, तो तालाब में पानी इकट्ठा हो गया और मानसून के महीनों में ग्राउंड वाटर में भी बढोतरी हुई। उनकी मेहनत रंग लाई। साल 2020 की गर्मियों में गांव के लोगों को किसी भी प्रकार से पानी की समस्या नहीं हुई। गंगा कहती हैं, 'जब उन्होंने काम करना शुरू किया तो गांव में फैले अंधविश्वास के कारण पुरुष कुछ भी करने से डर रहे थे, लेकिन महिलाओं ने बहुत साहस दिखाया।'
खराब थे हालात
विवाह के बाद जब गंगा इस गांव में आई, तो देखा कि महिलाएं पानी के लिए बोरवेल पर कतार में लगती थीं। पानी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता था। जिसके चलते घर जाने में देर होती थी और फिर घर में लड़ाई झगड़े होने लगते थे सो अलग। झील के संरक्षण का काम शुरू करने के एक वर्ष के भीतर ही बेहतर परिणाम देखने को मिले। कमजोर मानसून और औसत से कम वर्षा होने के बावजूद तालाब पानी से लबालब भर गया।
पति का साथ मिला
इस पूरी यात्रा में गंगा के पति ने उनका पूरा सहयोग किया। संगठन के सहयोग से कई लोगों ने मछली पालन शुरू कर दिया। साथ ही किसानों ने गेहूं, ज्वार, सोयाबीन जैसी फसलें उगानी शुरू कर दीं। इससे लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
कर्तव्य निभाया
गंगा कहती हैं, एक महिला के रूप में मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया है। मेरे लिए इसे अकेले करना असंभव था, और मुझे खुशी है कि अन्य महिलाओं ने जल संकट के समाधान के लिए किए जाने वाले प्रयासों में निरंतर साथ दिया। बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में पूरे परिवार की जरूरत के लिए पानी लाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है। इसलिए केवल महिलाएं ही इस दर्द और पीड़ा को समझ सकती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.