बढ़ती उम्र के साथ कल्कि सुब्रह्मण्यम को नहीं पता था कि वह एक किन्नर है। माता-पिता ने भी यह बात काफी दिन तक छुपाए रखी। लेकिन यौवनावस्था आने पर उन्हें लक्षण दिखने लगे। फिर कल्कि के जीवन में कुछ ऐसा हुआ कि वह बतौर किन्नर समाज के सामने आई और इस समुदाय के लिए काम करने लगीं।
नई दिल्ली। कल्कि की मानें तो एक लड़के के रूप में मेरा बचपन तमिलनाडु के कोयंबटूर के एक गांव में बीता। मैं एक पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखती हूं, और मेरे परिवार में पढ़ाई लिखाई को बेहद महत्व मिलता था। इसका असर मुझ पर भी पड़ा। बचपन से ही मैं पढ़ने-लिखने के प्रति उत्साहित और सक्रिय थी। लगभग16 वर्ष की उम्र तक मैं अपने शारीरिक पहचान के बारे में भ्रमित थी, लेकिन जल्द ही मेरे शरीर पर ट्रांसजेंडर होने के लक्षण दिखने लगे। कॉलेज में लड़कों ने मुझसे दोस्ती करने से इन्कार कर दिया। आसपास के लोग भी मुझे देखकर ताना मारते थे। लेकिन मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा और बिना किसी भेदभाव के मेरा समर्थन किया। मैंने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया और दो बार एमए की डिग्री हासिल की। मेरी जिंदगी में अहम बदलाव तब आया, जब एक दिन मेरे एक ट्रांसजेंडर दोस्त का अपहरण कर लिया गया। और उसके साथ दुष्कर्म किया गया। इस घटना से मैं विचलित हुई और ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्पीड़न के खिलाफ काम करने लगी। वह बताती हैं कि शारीरिक बदलाव होने पर परिवार तो मेरे साथ था, लेकिन बाहर के लोग मुझ पर ताने मारते थे। अंतत: मैंने बतौर ट्रांसजेंडर समाज के सामने आने का फैसला किया और ट्रांसजेंडर समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने लगी।
जागरूकता का काम शुरू किया
तमिलानाडु के ग्रामीण इलाकों में ट्रांसजेंडरों का जीवन सुधारने के लिए कल्कि काम करने लगीं। बाद में वह सहोदरी फाउंडेशन से भी जुड़ीं, जो कि ट्रांसजेंडरों के सामाजिक, कानूनी और आर्थिक सशक्तीकरण के लिए काम कर रही है। मेरे प्रयासों के चलते क्षेत्र में जागरूकता आई है, लोग भेदभाव करने के बजाय अब सम्मान देने लगे हैं।
कई किताबें लिखीं और वैवाहि वेबसाइट शुरू की
मेरे एक दोस्त ने मुझे शिल्प और संगीत वाद्ययंत्रों को बढ़ावा देने का परामर्श दिया। तब मुझे लगा कि उद्यमशीलता के क्षेत्र में भी काम करना चाहिए। इस तरह मेरी खुद की कमाई शुरू हुई। मैंने तमिल और अंग्रेजी में किताबें लिखीं और ट्रांसजेंडरों के लिए एक वैवाहिक वेबसाइट शुरू की। मेरे कामों के लिए मुझे पुरस्कार भी मिले हैं।
माता-पिता से किया वादा निभाया
एक ट्रांसजेंडर के रूप में जब मैंने समाज के सामने आने के बारे में अपने माता-पिता से बात की, तो वे टूट गए। वे मेरे भविष्य को लेकर भयभीत थे। उन्हें रोता देखकर मुझे दुख हुआ, मैंने उनसे वादा किया कि अगर वे मुझे इस तरह आगे आने देंगे, तो मैं उन्हें गर्व महसूस कराऊंगी। हालांकि वह मेरे संघर्ष का अंत नहीं था, लेकिन मैंने माता-पिता से किया हुआ अपना वादा निभाया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.