मूलत: आदिवासी होने के चलते प्रकृति और पेड-पौधों से प्रेम स्वाभाविक था। पति की मौत के बाद तुलसी ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर दिया।
तुलसी गौड़ा कर्नाटक के अंकोला के आदिवासी समाज से ताल्लुक रखती है। प्रकृति से इन्हें बहुत प्यार है। पेड़-पौधों को बच्चों की तरह प्यार करती हैं। वह कभी स्कूल नहीं गई और न ही कभी किताबी ज्ञान लेने का मौका मिला। फिर भी उन्हें पेड़-पौधों के बारे में उनकी किसी विशेषज्ञ से कही ज्यादा है। वह अब तक लाखों पेड़ लगा चुकी हैं। तुलसी का जीवन संघर्षों में बीता। वह जब महज दो साल की थी तभी उनके पिता का निधन हो गया। आजीविका चलाने के लिए मां और बहनों के साथ बचपन में काम करने जाना पड़ता था। करीब ग्यारह साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया। लेकिन कुछ वर्ष बाद ही पति की भी मौत हो गई। यह उनके जीवन में सबसे बड़ा दुख था। इस दुख से उबरने के लिए उन्होंने प्रकृति से ही प्रेम कर लिया। आदिवासी समुदाय अधिकतर वनोपज पर निर्भर रहता है। पर्यावरण संरक्षण का भाव विरासत में मिला। अपने आसपास बेतहाशा जंगलों की कटाई होते देख तुलसी पौधारोपण शुरू किया। अक्सर बारिश के मौसम के बाद उगने वाले छोटे पौधों को वह रोपती थी। इसी जुनून का असर था कि शैक्षणिक डिग्री न होने के बावजूद भी प्रकृति से जुड़ाव के चलते उनको वन विभाग में नौकरी मिल गई। तकरीबन चौदह वर्ष तक वन विभाग में नौकरी के दौरान उन्होंने हजारों की संख्या में पौधे लगाए, जो आज वृक्ष बन गए हैं। रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने यह काम छोड़ा नहीं है। भारत सरकार ने पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा की इसी उपलब्धि के लिए हाल ही में पद्मश्री से नवाजा है।
स्वयंसेवा
वह बताती है, पति की मौत के बाद मैंने प्रकृति के बीच एकांत तलाशना शुरू कर दिया। राज्य के वनीकरण कार्यक्रम में बतौर स्वयंसेवी काम करने लगी। वर्षों तक काम करने के बाद अंतत: वन विभाग ने मेरे प्रयासों को मान्यता दी। नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद विभाग से मुझे पेंशन मिल रही है, जिससे आजीविका चल रही है।
शिकारियों के खिलाफ
अपने आसपास के वातावरण को सुरक्षित करने के लिए तुलसी ने पौधे लगाए। साथ ही शिकारियों द्वारा वन्यजीवन को नष्ट करने से रोकने के लिए भी काम किया। वन विभाग के साथ काम करने के दौरान उन्होंने सरकार से बगान मालिकों द्वारा वनों को खत्म करने वाली प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई।
जंगलों की जरूरत
तुलसी कहती है, मैं पौधों और वनस्पतियों के पुनर्जनन की समस्याओं के बारे में जानती हूं। मैं अपना अधिकतर समय पौधे लगाने और बच्चों को जागरूक करने में बिताती हूं। हमें जंगलों की जरूरत है। जंगलों के न होने पर पर सूखा पड़ेगा, कोई फसल नहीं होगी, सूरज असहनीय रूप से गर्म हो जाएगा। अगर जंगल पनपे, तो देश भी बनेगा। हमें और अधिक जंगल बसाने की जरूरत है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.