किसी काम को करने की ठान ली जाए तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। ये बात साबित कर दिखाई है दिल्ली की दो बेटियों ने। ढहाए जा चुके जर्जर स्कूल को फिर से संवार कर इसे पहले से कहीं बेहतर बना दिया है। आइए जानते हैं इनके जुनून और जज्बे के सफर के बारे में, जिसने गरीब बच्चों को अस्थाई ही सही पर स्कूल की छत तो नसीब ही करा दी।
नई दिल्ली। किसी काम को करने की ठान ली जाए तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। ये बात साबित कर दिखाई है दिल्ली की दो बेटियों ने। इन दोनों ने गरीब बच्चों की पढ़ाई ठप न हो इसलिए ढहाए जा चुके जर्जर स्कूल को फिर से संवार कर इसे पहले से कहीं बेहतर बना दिया है। स्कूल को संवारने के लिए दोनों ने 22 दिन तक दिन-रात मेहनत की और यहां पढ़ने वाले तकरीबन 250 बच्चों के लिए बांस, तिरपाल और टिन की मदद से स्मार्ट क्लास रूम तैयार कर डाले। दिल्ली की इन दोनों बेटियों का नाम है स्वाति जानू और निधि सुहानी। आइए जानते हैं इनके जुनून और जज्बे के सफर के बारे में, जिसने गरीब बच्चों को अस्थाई ही सही पर स्कूल की छत तो नसीब ही करा दी।
डीडीए ने जमींदोज कर दिया था स्कूल
यमुना खादर इलाके में स्थित प्राथमिक स्कूल वर्षों पुराना होने के कारण काफी जर्जर हो गया था। इसके बारिश में कभी भी ढह जाने का खतरा था। इसे ध्यान में रखते हुए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने स्कूल को जमींदोज कर दिया। इसके बाद दिल्ली सरकार ने इस स्कूल और यहां पढ़ने वाले 250 गरीब बच्चों की सुध लेने की जहमत नहीं उठाई। मजबूरन बच्चों को कई साल से पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ना पड़ रहा था। स्कूल की बदहाली और बच्चों की परेशानी के बारे में एक दिन दिल्ली में रहने वाली आर्किटेक्ट स्वाति जानू को पता चला तो वह खुद को वहां जाने से रोक नहीं पाईं। उन्होंने बच्चों को पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते देखा तो काफी दुख हुआ। उन्होंने यह बात अपनी सहेली निधि सुहानी को बताई तो वह भी परेशान हो गईं। उसी वक्त दोनों ने बच्चों के लिए स्मार्ट क्लास रूम बनाने का फैसला कर लिया।
कम्युनिटी आर्किटेक्ट हैं स्वाति और निधि
स्वाति और निधि दोनों कम्युनिटी आर्किटेक्ट हैं। स्वाति ने दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में ग्रेजुएट किया है। वे अर्बन डेवलपमेंट में एमएससी करने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी जा चुकी हैं। वहीं, निधि ने दिल्ली के स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर में ग्रेजुएट किया है। वे एमएचएस सिटी लैब में प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर हैं। दोनों ने स्कूल को संवारने के लिए पहले पूरी प्लानिंग की फिर इसे पूरा करने के लिए अन्य लोगों को जोड़ने और फंड जुटाने की योजना बनाई। लोग तो एनजीओ की मदद से मिल जाते, लेकिन फंड एक बड़ी बाधा के रूप में इनके सामने थी।
फंड के लिए नहीं मिले लोग, सोशल मीडिया से जुटाए पैसे
स्वाति जानू और निधि सुहानी ने स्कूल का प्रोजेक्ट लोगों को दिखाया और समझाया तो सभी ने इसकी सराहना की, लेकिन जैसे ही फंड का जिक्र आता सभी पीछे हट जाते। दोनों सहेलियों ने फंड के लिए काफी मशक्कत की, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखने पर दोनों ने सोशल मीडिया के जरिये फंड जुटाने की कोशिश की। यह तरकीब काम कर गई और कुछ ही दिनों में दोनों ने ढाई लाख रुपए जुटा लिए। इसके बाद दोनों कुछ और साथियों की मदद से स्कूल को संवारने का काम शुरू कर दिया। दोनों ने दिन-रात मेहनत कर महज 22 दिन में स्कूल को नए रंग-रूप में संवार कर खड़ा कर दिया। स्कूल को बांस, तिरपाल, टिन और पुआल की मदद से बनाया गया है। बच्चों को अलग-अलग बैठकर पढ़ने में कोई परेशानी न हो, इसलिए इसमें 6 से ज्यादा कमरे बनाए गए हैं। स्वाति और निधि ने स्कूल को 'मॉडस्कूल' नाम दिया है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.