श्वेता अग्रवाल पिता के साथ किराने की दुकान पर काम करती थीं। इस बीच परिवार को सम्मान दिलाने और कुछ बड़ा करने का सपना देखा और उसे पूरा भी किया।
नई दिल्ली। सपने अगर बड़े हो और उनको पूरा करने के लिए दिल से मेहनत की जाए, तो वो जरूर पूरे होते हैं। ये कहावत पश्चिम बंगाल की श्वेता अग्रवाल पर सटीक बैठती है। 2016 बैच की आईएएस अधिकारी श्वेता अग्रवाल की कहानी ऐसे लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है, जो असफलता से हार मान लेते हैं। पश्चिम बंगाल के हुगली में मारवाड़ी परिवार से ताल्लुक रखने वाली श्वेता के पिता किराने की दुकान चलाते थे। घर की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थीं। इसलिए पिता श्वेता को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा सके। पिता ने फिर भी बेटी को अपनी पहुंच के स्कूल में भेजा और शिक्षा दिलवाई। होनहार श्वेता खाली समय में पिता की दुकान में भी हाथ बंटातीं। श्वेता ने ने कॉलेज तक का सफर तय किया और बचपन में ही ठान लिया था कि वो आईएएस बनेंगी।
2013 में बैठीं परीक्षा में
श्वेता कॉलेज के साथ-साथ आईएएस परीक्षा की तैयारी भी कर रही थीं। 2013 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी और उनका रैंक 497 आया। लेकिन श्वेता इससे ज्यादा चाहती थीं। 2015 में वो दूसरी बार परीक्षा में बैठीं और 141वीं रैंक लेकर आईं। श्वेता की किस्मत उनसे दो कदम आगे चल रही थी और उन्हें इस बार भी आईएएस सर्विस नहीं मिली। श्वेता हारी नहीं। 2016 में उन्होंने यूपीएससी एग्जाम दिया और 19वीं रैंक हासिल की। इस बार उन्हें आईएएस सर्विस मिल ही गई।
तीन बार हुईं सलेक्ट, लेकिन मनचाहा पद नहीं मिला
यूपीएएसी एग्जाम श्वेता ने तीनों बार क्लियर किया, लेकिन मनचाहा आईएएस पद नहीं मिला तो हिम्मत नहीं हारी। पहली बार में उनकी 497 रैंक आयी थी और उन्हें आईआरएस सर्विस मिली थी। दोबारा में साल 2015 में श्वेता फिर सेलेक्ट हुयीं और इस बार रैंक आयी 141। दस नंबर से वे आईएएस का पद पाने से चूक गयीं। उन्हें आईपीस मिला पर उनकी आंखों में अभी भी आईएएस बनने का सपना घूम रहा था। आखिर 2016 में उन्होंने अपना मुकाम हासिल कर लिया। श्वेता इस सपने को पूरा करने के लिए नौ-नौ घंटे पढ़ाई करती थीं।
बचपन में ही बन गईं थी समझदार
परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, तो श्वेता बचपन से ही चीजों को बारीकी से समझने लगी थीं। पिता ने उन्हें बेहतर शिक्षा दी। अच्छे स्कूल में एडमिशन भी कराया, लेकिन महीने की मात्र 165 रुपये फीस देने में उनके पसीने छूट जाते थे। छोटी उम्र में ही श्वेता ने सीख लिया था कि कुछ बड़ा करना है। श्वेता बचपन में ही पढ़ाई और पैसे दोनों की अहमियत सीख गईं थीं।
परिवार की पहली ग्रेजुएट
श्वेता ने क्लास 12 में अपने स्कूल में टॉप किया। हालांकि उनके यहां लड़कियों को ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता था, लेकिन फिर भी श्वेता के परिजनों ने उन्हें आगे बढ़ाया। अपने परिवार और खानदान में ग्रेजुएशन करनी वाली श्वेता पहली लड़की हैं। उन्होंने सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया और वहां की टॉपर बनीं। इसके बाद श्वेता ने एमबीए किया और एमबीए पास करने के बाद एक एमएनसी में अच्छे पद पर जॉब करने लगीं। इस प्रकार श्वेता अपने परिवार के करीब 15 बच्चों में से पहली ग्रेजुएट थी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.