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कभी जवान बेटे की मौत से टूट चुकी मां कोरोना काल में सैकड़ों कारीगरों का बनी सहारा

Published - Mon 05, Oct 2020

जवान बेटे को खोने का गम एक मां से ज्यादा और कौन समझ सकता है। इस पीड़ा को सह पाना आसान नहीं होता। ऐसी पीड़ा से गुजरने के बाद खुद को संभालना और दूसरों की जिंदगी को संवारना हर किसी के बस की बात नहीं होती, लेकिन हम यहां एक ऐसी मां के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने न केवल खुद को संभाला, बल्कि आज सैकड़ों गरीब कारीगारों और दिव्यांग बच्चों का भविष्य भी संवार रही हैं। यहां हम बात कर रहे भुवनेश्वर में रहने वालीं उषाशी रथ की। आइए जानते हैं उनके जीवन के उतार-चढ़ाव और जरुरतमंदों के मदद के जज्बे के बारे में....

  • डिप्रेशन के कारण सालों की मेहनत से खोले दो स्कूल बंद कर घर में हो गई थीं कैद, फिर खुद को संभाला
  • काउंसिलिंग की ट्रेनिंग ले आज दिव्यांग बच्चों और गरीब कारीगरों का संवार रहीं जीवन
  • ई कॉमर्स वेबसाइट 'उत्कला डॉट कॉम' की शुरुआत कर ओडिशा के कलाकारों को दिया वैश्विक मंच

 
नई दिल्ली। उषाशी रथ एक संपन्न और शिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती हैं। इनके परिवार के ज्यादातर सदस्य या तो शिक्षक हैं या फिर शिक्षा के व्यवसाय से जुड़े हैं। इस कारण उन्हें बचपन से ही अच्छा माहौल मिला। वह पढ़ाई में शुरू से ही काफी अच्छी थीं। उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद ही उनकी शादी कर दी गई। शादी के बाद 1986 में वह पति के साथ मुंबई आ गईं। वह शुरू से ही समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं। यह बात उन्होंने अपने पति को बताई तो वह भी इसके लिए तैयार हो गए। इसके बाद उषाशी ने मॉन्टेसरी ट्रेनिंग ली और एक प्री स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगीं। कई  साल तक ऐसा करने के बाद उन्होंने साल 2001 में नवी मुंबई में 'स्टेपिंग स्टोंस' नाम से खुद का प्री स्कूल शुरू किया। उषाशी रथ की कड़ी मेहनत जल्द ही रंग लाई और इस स्कूल की दो ब्रांच खुल गई। उन्हें बच्चों को पढ़ाना काफी पसंद है। इस कारण वह अपना ज्यादातर समय इन बच्चों के बीच में ही बीताती थीं। उषाशी रथ की इस निष्ठा के कारण उन्हें साल 2009 में नवी मुंबई में 'बेस्ट वुमन इंटरप्रेन्योर' के अवार्ड से भी नवाजा गया था। उनका स्कूल और परिवार के साथ बेहतर तालमेल था। इस कारण उनके बेटे को भी बेहतर शिक्षा मिली और वह पायलट बन गया। इसके बाद उषाशी  को लगा अब वह पूरी जिंदगी बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में ही बिताएंगी, लेकिन नीयति को तो कुछ और ही मंजूर था।
 
अचानक बेटे की मौत से सबकुछ बदल गया

उषाशी रथ बताती हैं कि एक दिन अचानक उनके 21 साल के पायलट बेटे की मौत हो गई। इस घटना ने उन्हें पूरी तरह से हिला कर रख दिया। वह डिप्रेशन में चल गईं। कई महीनों तक किसी से ज्यादा बात नहीं की। सालों की मेहनत से खोले गए दोनों स्कूल भी उन्होंने बंद कर दिए। घरवाले भी नहीं समझ पा रहे थे कि उषाशी को इस सदमे से कैसे बाहर निकाला जाए। इसी बीच उनके पति की नौकरी अबूधाबी में लगी, तो उषाशी उनके साथ वहां चली गईं। लेकिन यहां भी उन्हें बेटे की कमी काफी खल रही थी। इसी बीच उन्हें अबूधाबी के एक इंडियन स्कूल की जानकारी मिली तो उन्होंने वहां पढ़ाने का फैसला किया। इसी दौरान उन्होंने साइकोलॉजिकल काउंसिलिंग में डिप्लोमा भी कंप्लीट कर लिया। इसके बाद वह फिर मुंबई लौट आईं और खुद का साइकोलॉजिकल काउंसिलिंग सेंटर खोला। काफी सोच-विचार के बाद उषाशी ने इस सेंटर का नाम 'नोशन' रखा। मुंबई आने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और प्रतिष्ठित संस्थान से करियर काउंसिलिंग में डिप्लोमा कोर्सेस किए। इसके बाद उन्होंने  'अन्वेषा' के नाम से दूसरे सेंटर की शुरुआत की।

'उत्कला' की मदद से कारीगरों को दिया डिजिटल प्लेटफार्म

मुंबई में कुछ साल रहने के बाद उषाशी पति के साथ भुवनेश्वर शिफ्ट हो गईं। यहां उन्हें अहसास हुआ कि भुवनेश्वर और इसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले ओडिशा के स्थानीय कारीगरों और बुनकर की हालत काफी दयनीय है। उनकी शानदार कला का कोई कद्रदान नहीं है। यह सब देखने के बाद उषाशी ने फैसला किया कि वह इन कारीगरों के लिए कुछ ऐसा करेंगी, जिससे इनके जीवन में बदलाव आएगा। उन्होंने यह बात अपने पति को बताई और उनके साथ ऐसे कई गांवों में गईं जहां ओडिशी कला के कुशल कारीगर रहते हैं। इन कारीगरों से बातचीत के बाद उषाशी इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि इनकी दुर्दशा का कारण इन्हें कोई वैश्विक प्लेटफार्म न मिलना है। इन कारीगरों के काम को सारी दुनिया तक पहुंचाने के लिए उषाशी ने 'उत्कला डॉट कॉम' के नाम से एक ई कॉमर्स वेबसाइट की नींव रखी।  इस वेबसाइट पर ओडिशा के हर क्षेत्र के हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम प्रोडक्ट आसानी से देखे जा सकते हैं। इस प्रयास के बारे में उषाशी कहती हैं कि मैं अपने बेटे के गम को भुलाने के लिए हर उस काम को करने में यकीन रखती हूं, जो कर सकती हूं। उत्कला भी मेरे ऐसे ही प्रयासों में से एक है। वे बच्चों के बीच खुशियां बांटकर अपना गम भुलाना चाहती हैं।

महिलाओं को बना रहीं सबल

उषाशी रथ ओडिशा की हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के साथ ही यहां की महिला कारीगरों के उत्थान को लेकर भी लगातार प्रयास कर रही हैं। वह उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ ही पारंपरिक कला के साथ तकनीक का तालमेल कैसे बैठाया जाए यह सीखा रही हैं। वह कहती हैं कि, मेरी जिंदगी अगर इन कारीगरों की मदद करने में किसी भी तरह से काम आ जाए तो ये मेरी खुशनसीबी होगी। मेरी संस्थाएं उत्कला और अन्वेषा मेरे लिए बच्चों की तरह ही है।