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महंगी नौकरी छोड़ सब्जियां उगानी शुरू की और छा गया अनामिका का 'विलेज स्टोरी' स्टार्टअप

Published - Fri 30, Aug 2019

चकाचौंध भरी दुनिया को छोड़कर झारखंड की अनामिका बिष्ट ने बंगलुरू में एक स्टार्टअप शुरू कर शहरी जीवन को मजेदार बना दिया। 'विलेज स्टोरी' स्टार्टअप चला रहीं अनामिका शहरी जीवन में प्रयोगों को बढ़ावा दे रही हैं। उनका स्टार्टअप लोगों को 'स्क्वायर फीट फॉर्मिंग' करना सिखा रहा है।

नई दिल्ली। बंगलुरू में काम करने वाले युवा कारपोरेट घरानों की चकाचौंध और मोटी सैलरी का मोह देखकर इसी में फंसे रहते हैं और जीवन बिता देते हैं, लेकिन इस चकाचौंध भरी दुनिया को छोड़कर झारखंड की अनामिका बिष्ट ने बंगलुरू में एक स्टार्टअप शुरू कर शहरी जीवन को मजेदार बना दिया। 'विलेज स्टोरी' स्टार्टअप चला रहीं अनामिका शहरी जीवन में प्रयोगों को बढ़ावा दे रही हैं। उनका स्टार्टअप लोगों को 'स्क्वायर फीट फॉर्मिंग' करना सिखा रहा है। लोग दो हजार रुपए प्रति माह पर खेती के लिए जमीन के टुकड़े लेकर अपने मन की सब्जियां उगा रहे हैं।
 बचपन के ग्रामीण परिवेश से गहरे तक प्रभावित रही बिष्ट ने आधुनिकतम कृषि-प्रयोगों के साथ अपने पैशन को ही पेशे के रूप में ढाल लिया है। मुंबई के कॉलेज से साहित्य में ग्रेजुएशन, फिर निफ्ट, दिल्ली से गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग में मास्टर्स डिग्री की और उसके बाद बंगलुरू में आकर नौकरी करने लगीं। लेकिन काम से उनका मन उचट गया और उन्होंने कुछ नया करने की ठानी। एक दोस्त के सुझाव पर बेंगलुरू के जक्कुर में एक खाली पड़ी जगह देखने गईं। उन्होंने उस जमीन पर सब्जियों की खेती करनी शुरू की। उसी समय पहली बार उनके दिमाग में 'स्क्वायर फुट फॉर्मिंग' का आइडिया आया। स्टार्टअप शुरू करने से पहले उन्होंने एक ऐसी टीम तैयार की, जिन्हें खेती किसानी के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी हो। टीम बनने के बाद उन्होंने 15 अगस्त 2017 से शहरी लोगों के लिए सब्सक्रिप्शन फार्मिंग की शुरुआत कर दी। 'स्क्वायर फुट फॉर्मिंग' का कांसेप्ट है- 7×7 फीट की एक क्यारी किराए पर लेकर खुद की खेती करना।

लोग उनके संपर्क में आने लगे। उनकी टीम उन लोगों को प्राकृतिक और जैविक खेती के तरीके सिखाने लगी। दो हजार रुपए प्रति माह पर उपलब्ध कराई गई उस जमीन पर खेती के लिए विलेज स्टोरी टीम की ओर से उन्हे जमीन ही नहीं, सम्बंधित फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी, बीज, सैपलिंग, खाद, कॉकोपीट मुहैया करा दिए जाते हैं। इस तरह लोग वहां पालक, मेथी, धनिया, अजवायन, गोभी, हरा प्याज, लेट्स, लहसुन, सौंफ, चौलाई, नीम, मोरिंगा, हल्दी, तुलसी, एलोवेरा और फूलों की खेती करने लगे हैं। उन्हे भी लगता है कि खामख्वाह मॉडर्न होने से मुक्ति मिल गई है। अनामिका कहती हैं कि बिगड़ते पर्यावरण, केमिकलाइज खान-पान के दौर में आज हमें अपनी जड़ों की और लौटने की बहुत जरूरत है। हमें जैविक खाद्य को बढ़ावा देना ही होगा।

आज हम जो भोजन ग्रहण करते हैं, वह तरह-तरह की बीमारियां दे रहा है। इससे बचने का एक ही तरीका है, खुद उगाओ, खुद खाओ। जैविक फसलों की ऊर्जा हमारे जीवन को हरा-भरा रखेगी। अनामिका का कहना है कि वह गांव से हैं, तो शहर में आकर भी अपने भीतर के गांव को नहीं भुला सकीं। बचपन में खेतों में दौड़ना क्यारियों में सब्जी लगाना आदि उनके जेहन में हमेशा से था, इसलिए वो इस स्टार्टअप को सफल बना सकीं। अनामिका खुश हैं कि उनका पैशन उनके करियर को भी मजबूत बना रहा है और वो अपनी जड़ों से भी जुड़ी हुई हैं।