पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में एडिशनल डीएफओ पूरबी महतो ने आदिवासियों को शिकार करने से रोकने के लिए उनके सामने घुटनों पर बैठ गईं और उनसे निवेदन किया कि वो जंगली जानवरों का शिकार न करें। पूरबी के इस जज्बे को हर कोई सलाम करता है।
नई दिल्ली। पंरपरा और अंधविश्वास की जड़ें आज भी भारत के कई इलाकों में बेहद मजबूती से बनी हुई हैं। खासकर आदिवासी समाज मे तो अशिक्षा और आधुनिकता की कमी के कारण इन्हीं पुरानी परंपराओं और अंधविश्वास को जीवन से जोड़कर देखा और निभाया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में भी प्रचलित है। इस परंपरा के अनुसार, यहां के आदिवासी समाज के लोग एक निश्चित दिन और तारीख को हाथ में डण्डे-लाठी खुखरी , नुकीले हथियार लेकर शिकार के लिए निकल जाते हैं और बेजुबान जानवरों का शिकार कर खुद को निडर दिखाते हैं। इन आदिवासियों को न कानून का डर होता है और न समाज का। लेकिन इन आदिवासियों को रोकने के लिए मिदनापुर की एडिशनल डीएफओ पूरबी मेहतों कुछ ऐसा कारनामा कर चुकी हैं कि वो आज ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की सूची में शुमार हैं।
आदिवासियों के सामने घुटनों पर बैठीं
घटना पुरानी है, लेकिन आज के नवनियुक्त अफसरों के लिए एक सीख है। मिदनापुर में शिकार की परंपरा बेहद पुरानी है। ये परंपरा यहां के आदिवासी समुदाय में कई सौ सालों से चली आ रही है। इसके पंरपरा को निभाने के लिए हजारों आदिवासी हथियार लेकर जंगल की ओर कूच करते हैं और बेजुबान जानवरों का शिकार कर जश्न मनाते हैं। जब यहां का चार्ज एडिशनल डीएफओ पूरबी महतो को मिला, तो पूरबी ने तय कर लिया कि वो आदिवासियों को रोकेंगी। नियत दिन जब आदिवासी हथियार लेकर जंगल की ओर बढ़े, तो पूरबी ने वहां के बुजुर्गों से अपील की कि उन्हें रोकें, लेकिन फायदा नहीं हुआ। अंत में पूरबी आदिवासियों के सामने घुटनों के बल बैठ गईं और उनसे अपील की कि उन्हें भी मार दिया जाए। साथ ही पूरबी ने कहा कि जब तक मेरी सांस चल रही है मैं आपको आगे नहीं जाने दूंगी। उनकी अपील का ये असर हुआ कि आदिवासी रुक गए और लौट गए।
जागरुकता अभियान चलाती हैं पूरबी
आदिवासियों को वनजीवन को लेकर पूरबी जागरुकता अभियान चला रही हैं। वो आदिवासियों को बताती हैं कि जल, जंगल, जमीन और वन्य जीवन का महत्व कितना है। उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि क्षेत्र में वन्य जीव हत्या की दर में काफी कमी आई है और आदिवासी अब वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में काम करने लगे हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.