Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

वो अधिकारी जो फर्ज के लिए लोगों के सामने घुटनों पर बैठ गईं

Published - Sun 26, Jul 2020

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में एडिशनल डीएफओ पूरबी महतो ने आदिवासियों को शिकार करने से रोकने के लिए उनके सामने घुटनों पर बैठ गईं और उनसे निवेदन किया कि वो जंगली जानवरों का शिकार न करें। पूरबी के इस जज्बे को हर कोई सलाम करता है।

purbi

नई दिल्ली। पंरपरा और अंधविश्वास की जड़ें आज भी भारत के कई इलाकों में बेहद मजबूती से बनी हुई हैं। खासकर आदिवासी समाज मे तो अशिक्षा और आधुनिकता की कमी के कारण इन्हीं पुरानी परंपराओं और अंधविश्वास को जीवन से जोड़कर देखा और निभाया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में भी प्रचलित है। इस परंपरा के अनुसार, यहां के आदिवासी समाज के लोग एक निश्चित दिन और तारीख को हाथ में डण्डे-लाठी खुखरी , नुकीले हथियार लेकर शिकार के लिए निकल जाते हैं और बेजुबान जानवरों का शिकार कर खुद को निडर दिखाते हैं। इन आदिवासियों को न कानून का डर होता है और न समाज का। लेकिन इन आदिवासियों को रोकने के लिए मिदनापुर की एडिशनल डीएफओ पूरबी मेहतों कुछ ऐसा कारनामा कर चुकी हैं कि वो आज ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसरों की सूची में शुमार हैं।

आदिवासियों के सामने घुटनों पर बैठीं
घटना पुरानी है, लेकिन आज के नवनियुक्त अफसरों के लिए एक सीख है। मिदनापुर में शिकार की परंपरा बेहद पुरानी है। ये परंपरा यहां के आदिवासी समुदाय में कई सौ सालों से चली आ रही है। इसके पंरपरा को निभाने के लिए हजारों आदिवासी हथियार लेकर जंगल की ओर कूच करते हैं और बेजुबान जानवरों का शिकार कर जश्न मनाते हैं। जब यहां का चार्ज एडिशनल डीएफओ पूरबी महतो को मिला, तो पूरबी ने तय कर लिया कि वो आदिवासियों को रोकेंगी। नियत दिन जब आदिवासी हथियार लेकर जंगल की ओर बढ़े, तो पूरबी ने वहां के बुजुर्गों से अपील की कि उन्हें रोकें, लेकिन फायदा नहीं हुआ। अंत में पूरबी आदिवासियों के सामने घुटनों के बल बैठ गईं और उनसे अपील की कि उन्हें भी मार दिया जाए। साथ ही पूरबी ने कहा कि जब तक मेरी सांस चल रही है मैं आपको आगे नहीं जाने दूंगी। उनकी अपील का ये असर हुआ कि आदिवासी रुक गए और लौट गए।

जागरुकता अभियान चलाती हैं पूरबी
आदिवासियों को वनजीवन को लेकर पूरबी जागरुकता अभियान चला रही हैं। वो आदिवासियों को बताती हैं कि जल, जंगल, जमीन और वन्य जीवन का महत्व कितना है। उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि क्षेत्र में वन्य जीव हत्या की दर में काफी कमी आई है और आदिवासी अब वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में काम करने लगे हैं।